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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 301 साधर्म्यस्याविनाशित्वात् पुरुषस्थाण्वादिगतस्येति निर्णयः क्वास्पदं प्राप्नुयात्। साधर्म्यमात्राद्धि संशये क्वचिद्वैधर्म्यदर्शनान्निर्णयो युक्तो न पुनर्वैधात्साधर्म्यवैधाभ्यां वा संशये तथात्यंतसंशयात्। न चात्यंतसंशयो ज्यायान् सामान्यात् संशयाद्विशेषदर्शनात् संशयनिवृत्तिसिद्धेः / / अथानित्येन नित्येन साधादुभयेन या। प्रक्रियायाः प्रसिद्धिः स्यात्ततः प्रकरणे समा।३८३। उभाभ्यां नित्यानित्याभ्यां साधाद्या प्रक्रियासिद्धिस्ततः प्रकरणसमा जातिरवसेया, “उभयसाधर्म्यात् प्रक्रियासिद्धेः प्रकरणसमा” इति वचनात् / / किमुदाहरणमेतस्या इत्याहतत्रानित्येन साधान्नुःप्रयत्नोद्भवत्वतः। शब्दस्यानित्यतां कश्चित्साधयेदपरः पुनः॥३८४॥ तस्य नित्येन गोत्वादिसामान्येन हि नित्यता। तत: पक्षे विपक्षे च समाना प्रक्रिया स्थिता / 385 / तत्र हि प्रकरणसमायां जातौ कश्चिदनित्यः शब्दः प्रयत्नानांतरीयकत्वाद्घटवदित्यनित्यसाधर्म्यात् पुरुषप्रयत्नोद्भवत्वाच्छब्दस्यानित्यत्वं साधयति / पर: पुनर्गोत्वादिना सामान्येन साधर्म्यात्तस्य नित्यतां साधयेत् / अब प्रकरणसमा जाति के कहने का प्रारंभ करते हैं - नित्य, अनित्य और उभय (दोनों) के सधर्मपना होने से पक्ष और प्रतिपक्ष की प्रवृत्ति होने रूप जो क्रिया की प्रसिद्धि होती है उसको प्रकरणसम जाति कहते हैं // 383 / / __ नित्य और अनित्य के साधर्म्य से जो प्रक्रिया की प्रसिद्धि है, उससे प्रकरणसमा जाति जानना चाहिए। उभय के साधर्म्य से प्रक्रिया की सिद्धि हो जाने से प्रकरणसमा जाति है - ऐसा सूत्र का वचन है। इस प्रकरणसमा जाति का उदाहरण क्या है? ऐसा पूछने पर आचार्य कहते हैं - कोई वादी तो - “घट के समान पुरुष के प्रयत्नजन्य होने से शब्द अनित्य है"- इस प्रकार अनित्य के साथ शब्द का साधर्म्य होने से शब्द की अनित्यता को सिद्ध कर रहा है। और पुनः कोई वादी नित्य गोत्व आदि सामान्य के साथ तथा इन्द्रिय ग्राह्यत्व आदि के साथ साधर्म्य होने से शब्द की नित्यता को सिद्ध कर रहा है। इसलिये अनित्यत्व साधक पक्ष में और नित्यत्व साधक विपक्ष में समान प्रक्रिया होने से यह प्रकरणसमा जाति है।।३८४-३८५॥ इस प्रकरणसमा जाति में कोई विद्वान् कहते हैं कि घट के समान पुरुष प्रयत्न से उत्पन्न होने से शब्द अनित्य है। इस प्रकार अनित्य साधर्म्य से पुरुषप्रयत्न से उत्पन्न होने से शब्द को अनित्य सिद्ध करता है। दूसरा कोई विद्वान् गोत्व आदि सामान्य के साथ साधर्म्य होने से शब्द को नित्य सिद्ध कर रहा है। अर्थात् जैसे गोत्व आदि सामान्य इन्द्रियग्राह्य है, परन्तु नित्य है, उसी प्रकार शब्द भी इन्द्रियग्राह्य है इसलिए नित्य है। इस प्रकार शब्द की नित्य के साथ व्याप्ति सिद्ध करते हैं। इस प्रकरण में नित्य और अनित्य को सिद्ध करने वाले वादी और प्रतिवादी के उभय पक्ष को ग्रहण करने से पक्ष और विपक्ष में प्रक्रिया समान है। यह
SR No.004287
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2010
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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