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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक* 295 कारणाभावतः पूर्वमुत्पत्तेः प्रत्यवस्थितिः। यानुत्पत्त्या परस्योक्ता सानुत्पत्तिसमा भवेत् / 370 / शब्दो विनश्वरात्सैवमुपपन्नो भवत्वतः। कदंबादिवदित्युक्ते साधने प्राह कश्चन // 371 // प्रागुत्पत्तेरनुत्पन्ने शब्देऽनित्यत्वकारणं। प्रयत्नानंतरोत्थत्वं नास्तीत्येषोऽविनश्वरः॥३७२।। शाश्वतस्य च शब्दस्य नोत्पत्तिः स्यात्प्रयत्नतः। प्रत्यवस्थेत्यनुत्पत्त्या जातिायातिलंघनात् / 373 / उत्पन्नस्यैव शब्दस्य तथाभावप्रसिद्धितः। प्रागुत्पत्तेर्न शब्दोस्तीत्युपालंभः किमाश्रयः।३७४। सत एव तु शब्दस्य प्रयत्नानंतरोत्थता। कारणं नश्वरत्वेस्ति तनिषेधस्ततः कथम् // 375 / / उत्पत्तेः पूर्वं कारणाभावतो या प्रत्यवस्थिति: परस्यानुत्पत्तिसमा जातिरुक्ता भवेत्। “प्रागुत्पत्तेः कारणाभावादनुत्पत्तिसम” इति वचनात् / तद्यथा-विनश्वरः शब्दः पुरुषप्रयत्नोद्भवात् कदंबादिवदित्युक्ते साधने उत्पत्ति के पूर्व तालु आदि कारणों के अभाव में अनुत्पत्ति के द्वारा प्रत्यवस्थापन उठाया जाता है। वह दूसरे प्रतिवादी की अनुत्पत्तिसमा नाम की जाति कही गयी है। ऐसा समझना चाहिए। जैसे शब्द (पक्ष) विनाश स्वभाव वाला है (साध्य), मनुष्य के प्रयत्न द्वारा अव्यवहित उत्तर काल में उत्पत्ति वाला होने से (हेतु) कदम्ब आदि के समान। (अन्वय दृष्टान्त)। इस प्रकार वादी के द्वारा सिद्ध करने पर कोई प्रतिवादी कहता है कि उत्पत्ति के पूर्व नहीं स्थित (अनुत्पन्न) शब्द में अनित्यत्व का कारण प्रयत्नान्तर से उत्पन्न होता नहीं है। इसलिए शब्द अविनश्वर (नित्य) है। अर्थात् उत्पत्ति के पूर्व जब शब्द का उत्पादक कारण ही नहीं है, तो अकारणवान होने से शब्द नित्य है। इसके प्रत्युत्तर में जैनाचार्य कहते हैं कि - ... शाश्वत शब्द की उत्पत्ति प्रयत्नों से नहीं होती है। इसलिए अनुत्पत्ति के द्वारा दूषण देना अनुत्पत्ति समा जाति है। ऐसा कहने पर न्याय का उल्लंघन होता है अर्थात् शब्द कारणों से उत्पन्न नहीं होते हैं ऐसा कहना उचित नहीं है क्योंकि शब्द कारणों से उत्पन्न होते हैं, ऐसी प्रसिद्धि है। अत: जब उत्पत्ति के पूर्व शब्द विद्यमान ही नहीं है, तब प्रतिवादी के द्वारा “शब्द की उत्पत्ति कारणों से नहीं होती है" यह उलाहना देना किसके आश्रय रह सकता है? विद्यमान शब्द के नश्वरता का कारण प्रयत्नानन्तर से उत्पन्न होना हेतु सिद्ध ही है। अतः शब्द की नश्वरता का निषेध प्रतिवादी के द्वारा कैसे किया जा सकता है? // 370 - 375 // . साधन के अंग स्वरूप पक्ष, हेतु और दृष्टान्तों की उत्पत्ति के पूर्व साध्य के ज्ञापक कारणों का अभाव होने से प्रतिवादी के द्वारा प्रत्यवस्थान (प्रश्न या दूषण) उठाया जाता है। वही अनुत्पत्तिसमा जाति कही जाती है। ___ सो ही गौतम ऋषि ने न्याय दर्शन में कहा है - "उत्पत्ति के पूर्व कारण का अभाव होने से अनुत्पत्तिसम कहलाता है' इसी के न्यायभाष्य अनुसार सिद्ध करते हैं कि “शब्द विनाश स्वभाव (अनित्य) है, क्योंकि पुरुष के कण्ठ, तालु, जिह्वा आदि के प्रयत्नों से उत्पन्न होते हैं जैसे कदम्ब, कटक आदि प्रयत्नों से उत्पन्न होते हैं, अत: अनित्य हैं।" इस प्रकार वादी के द्वारा साध्य का साधन कर देने पर
SR No.004287
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2010
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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