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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक *192 तदन्यतमासमर्थत्वे वा यथा समर्थे सभापतौ प्राश्निकेषु वचनं वादस्तथा समर्थयोर्वादिप्रतिवादिनोः साधनदूषणयोश्चेति व्याख्यानमनुपपन्नमायातमिति कश्चित् / तदसत्। वादिप्रतिवादिनोः साधनदूषणवचने क्रमतः प्रवृत्तौ विरोधाभावात्। पूर्वं तावद्वादी स्वदर्शनानुसारितया समर्थः साधनं समर्थमुपन्यस्यति पश्चात्प्रतिवादी स्वदर्शनालंबनेन दोषोद्भावनसमर्थसद्दूषणं तत्सामर्थ्य प्रतिपक्षविघातिता न विरुध्यते॥ का पुनरियं प्रतिपक्षविघातितेत्याहसा पक्षांतरसिद्धिर्वा साधनाशक्ततापि वा। हेतोविरुद्धता यद्वदभासांतरतापि च // 44 // साधनस्य स्वपक्षघातिता पक्षांतरसाधनत्वं यथा विरुद्धत्वं स्वपक्षसाधनाशक्तत्वमात्रं वा यथानकांतिकत्वादि साधनाभासत्वं, तदुद्भवने स्वपक्षसिद्धेरपेक्षणीयत्वात् / तदुक्तं / “विरुद्धं हेतुमद्भव्यवादिनं भी जैसे सभापति और सभ्य पुरुषों के समर्थ होने पर तत्त्व का निर्णय करने के लिए चर्चा करना वाद है; उसी प्रकार समर्थ वादी प्रतिवादी के साधन और दूषण के उपपन्न होने पर शास्त्रार्थ व्याख्यान होना असिद्ध है। अर्थात् समर्थ सभ्य और सभापति के होने पर ही शास्त्रार्थ हो सकता है। इस प्रकार कोई कहता है। जैनाचार्य कहते हैं कि इस प्रकार का कथन समीचीन नही है। क्योंकि क्रम से वादी के साधन के वचन में और प्रतिवादी के वचन में दूषण की प्रवृत्ति में विरोध का अभाव है। सर्वप्रथम वादी स्वकीय दार्शनिक सिद्धान्त के अनुसार अन्यथा अनुपपत्तिस्वरूप साधन का निरूपण करता है। उसके पश्चात् प्रतिवादी अपने दर्शन (सिद्धान्त) का अवलम्बन लेकर दोषों के उद्भावन में समर्थ समीचीन दूषण का प्ररूपण करता है। उस दूषण का प्रतिपक्ष का विघात करना रूप सामर्थ्य विरुद्ध नहीं है। अर्थात् वादी के हेतु को समीचीन दूषण देना विरुद्ध नहीं पड़ता है। प्रतिपक्षी का विघात क्या है? ऐसी जिज्ञासा होने पर आचार्य कहते हैं - गृहीत पक्ष से पक्षान्तर की सिद्धि हो जाना अथवा प्रकृत साध्य को साधने वाले हेतु का अशक्तपना भी प्रतिपक्ष का विघातक है। तथा वादी के हेतु का विरुद्धपना जिस प्रकार प्रतिपक्ष का विघातक है उसी प्रकार वादी के हेतु का अन्य हेत्वाभासों के द्वारा दूषित कर देना भी प्रतिपक्ष का विघातक है। वाद में किसी का घात मारन ताड़न नहीं है, अपितु परस्पर में हेतु को दूषित करना, साध्य के साधन में दूषण देना ही विघात है॥४४॥ वादी के द्वारा ग्रहण किया हुआ पक्ष प्रतिवादी का प्रतिपक्ष है। प्रतिवादी श्रेष्ठ दूषण के द्वारा वादी के साधन का विघात कर देता है। अत: वादी के हेतु का निज पक्ष का विघात क्या है? आचार्य इसका उत्तर देते हैं - साधन के पक्षान्तर का साधनत्व ही साधन की स्वपक्षघातिता है। अर्थात् वादी या प्रतिवादी के साधन (हेतु) को समीचीन हेतुओं से खण्डन कर देना ही पक्षघातिता है। जैसे विरुद्धत्व, स्वपक्ष साधन अशक्तत्व मात्र प्रतिपक्ष का घातक है अथवा जैसे अनैकान्तिक विरुद्ध आदि हेत्वाभास भी प्रतिपक्ष के विघातक हैं। परन्तु उन हेत्वाभास आदि दोषों के उद्भावन (प्रकट) करने में प्रतिवादी को अपने पक्ष की सिद्धि करना अपेक्षणीय है अर्थात् प्रतिवादी स्वकीय पक्ष को सिद्ध
SR No.004287
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2010
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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