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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक *159 कः पुनरत्र बहुविषयः कश्चाल्पविषयो नय इत्याहपूर्व:पूर्वो नयो भूमविषय: कारणात्मकः। परः परः पुनः सूक्ष्मगोचरो हेतुमानिह / / 82 // तत्र नैगमसंग्रहयोस्तावन्न संग्रहो बहुविषयो नैगमात्परः। किं तर्हि, नैगम एव संग्रहात्पूर्वं इत्याहसन्मात्रविषयत्वेन संग्रहस्य न युज्यते। महाविषयताभावाभावार्थान्नैगमानयात् // 83 // यथा हि सति संकल्पस्तथैवासति वेद्यते। तत्र प्रवर्तमानस्य नैगमस्य महार्थता // 84 // संग्रहाद्व्यवहारो बहुविषय इति विपर्ययमपाकरोतिसंग्रहाद्व्यवहारोपि सद्विशषावबोधकः। न भूमविषयोशेषसत्समूहोपदर्शिनः // 85 // पुनः इन सात नयों में कौनसा नय बहुत ज्ञेय को विषय करता है? और कौनसा नय अल्प ज्ञेय को विषय करता है? साथ में कौन नय कार्य है ? और कौनसा नय कारण है? यह प्रश्न भी छिपा हुआ है। इसके उत्तर में आचार्य महाराज वार्तिक कहते हैं - - यहाँ पहिले - पहिले कहा गया नय तो बहुत पदार्थों को विषय करने वाला है और कारण स्वरूप है। किन्तु फिर पीछे-पीछे कहा गया नय अल्प पदार्थों को विषय करता है और कार्यस्वरूप है। यहाँ लौकिक कार्यकारण भाव विवक्षित है। शास्त्रीय कार्य कारण भाव तो अव्यवहित पूर्ववर्ती व्यापार वाले और उसके उपकार को झेलने वाले अव्यवहित उत्तरवर्ती पदार्थों में सम्भव है।।८२।। 1. सबसे पहिले उन नयों में यह विचार है कि नैगम व संग्रह, दो नयों में बाद में कहा गया संग्रहनय तो पूर्ववर्ती नैगम से अधिक विषयवाला नहीं है, तो क्या है? इसका उत्तर यही है कि नैगमनय ही संग्रहनय से पूर्व में कहा गया अधिक पदार्थों को विषय करता है। इस बात को स्वयं ग्रन्थकार कहते हैं - ___ सद्भूत पदार्थ और असद्भूत (अभाव) पदार्थ दोनों संकल्पित अर्थों को विषय करनेवाले नैगम नय से केवल सद्भूत पदार्थों को विषय करने वाला होने से संग्रह नय की अधिक विषयज्ञता उचित नहीं है। भावार्थ - संकल्प तो विद्यमान अथवा भूत भविष्यत् काल में हुए, होने वाले, या कदाचित् नहीं भी होने वाले अविद्यमान पदार्थों में भी हो सकता है किन्तु संग्रहनय केवल सद्भूत पदार्थों को ही जानता है, असद्भूत अर्थों को नहीं छूता है। अत: नैगम से संग्रह का विषय अल्प है। क्योंकि, जिस प्रकार सत् पदार्थों में संकल्प होता है, उसी प्रकार असत् पदार्थों में भी होता है। अत: उस असत् अर्थ में प्रवृत्ति करने वाले नैगमनय की महाविषयज्ञता है।।८३-८४ // संग्रह नय से व्यवहार नय अधिक विषय वाला है, इस विपर्ययज्ञान का ग्रन्थकार निराकरण करते ___ संग्रह नय से व्यवहार नय भी अल्पविषय वाला है। क्योंकि पूर्ववर्ती संग्रहनय तो सभी सत् पदार्थों को विषयं करता है और यह व्यवहारनय सत् पदार्थों के विषयभुत अल्पपदार्थों का ज्ञापक है। अतः सम्पूर्ण सत् पदार्थों के समुदाय को दिखलाने वाले संग्रह नय से व्यवहारनय अधिक विषयग्राही नहीं है।।८५॥
SR No.004287
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2010
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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