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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 149 शब्दनयमुपवर्णयति - कालादिभेदतोर्थस्य भेदं यः प्रतिपादयेत् / सोत्र शब्दनयः शब्दप्रधानत्वादुदाहृतः॥६८॥ कालकारकलिंगसंख्यासाधनोपग्रहभेदाद्भिन्नमर्थं शपतीति शब्दो नयः शब्दप्रधानत्वादुदाहृतः / यस्तु व्यवहारनयः कालादिभेदेप्यभिन्नमर्थमभिप्रैति तमनूद्य दूषयन्नाह विश्वदृश्वास्य जनिता सूनुरित्येकमादृताः। पदार्थं कालभेदेपि व्यवहारानुरोधतः // 69 // करोति क्रियते पुष्यस्तारकऽऽपोंऽभ इत्यपि। कारकव्यक्तिसंख्यानां भेदेपि च परे जनाः // 70 // चार अर्थनयों का वणन कर अब शब्दनय का वर्णन करते हैं - जो नय काल, कारक, लिंग आदि के भेद से अर्थ के भेद को समझा देता है, वह नय यहाँ शब्द की प्रधानता से शब्दनय कह दिया गया है। (अर्थात् - शब्द के वाच्य अर्थपर दृष्टि कराने की अपेक्षा यह नय शब्दनय है। पहिले के चार नयों की दृष्टि शब्द के वाच्य अर्थ का लक्ष्य रखते हुए नहीं है, इसलिए वे अर्थ नय हैं।)॥६८॥ - भूत, भविष्यत्, वर्तमान, काल या कर्म, कर्ता, कारण आदि कारक अथवा स्त्री, पुरुष, नपुंसकलिंग, तथा एक वचन, द्विवचन, बहुवचन संख्या और अस्मद्, युष्मद्, अन्य पुरुष के अनुसार उत्तम, मध्यम, प्रथमपुरुष संज्ञाओं का साधन एवं प्र, परा, उप, सम् आदि उपसर्ग इस प्रकार इन काल आदि के भेदों से जो नय भिन्न अर्थ को कहता है; इस प्रकार शब्द नय का निरुक्ति से अर्थ लब्ध हो जाता है। शब्द की प्रधानता से शब्दनय कहा गया है। और इसके पूर्व में जो व्यवहार नय कहा गया है, वह तो काल आदि के भेद होने पर भी अभिन्न अर्थ को समझाये रखता है। उस व्यवहार नय का अनुवाद कर श्री विद्यानन्द स्वामी उसको दूषित कराते हुए कथन करते हैं - जो सम्पूर्ण जगत् को पहिले देख चुका है, वह विश्वदृश्वा कहा जाता है। जनिता यह ‘जनी प्रादुर्भावे' धातु के लुट् लकार का भविष्यकाल का व्यंजक रूप है। भूतकाल सम्बन्धी विश्वदृश्वा और भविष्यत्काल सम्बन्धी जनिता का समानाधिकरण होकर अन्वय हो जाना विरुद्ध है। किन्तु व्यवहार के अनुसार कालभेद होने पर भी इस राजा के “विश्व को देख चुका पुत्र होगा” इस प्रकार एक ही पदार्थ का ग्रहण किया जाता है। भावार्थ - व्यवहारनय विश्वदृश्वा और जनिता पदों का सामानाधिकरण्य कर एक अर्थ जोड़ देता है। इसमें विशिष्ट चमत्कार के अर्थ को निकालना व्यवहार नय को अभिप्रेत नहीं है, जो ही विश्वं दृक्ष्यति का अर्थ है, वही विश्वदृश्वा का अर्थ घटित हो जाता है। . पृथक् - पृथक् कालों का विशेषण लग जाने से अर्थ में भेद नहीं हो जाता है तथा 'देवदत्त: कटं करोति' देवदत्त चटाई को बुनता है और 'देवदत्तेन कटः क्रियते' देवदत्त करके चटाई बुनी जा रही है, यहाँ स्वतंत्रता और पराधीनता का भेद होते हुए भी व्यवहारनय उक्त दोनों वाक्यों का एक ही अर्थ मानता है। कर्ता कारक और कर्मकारक के भेद से अर्थ का भेद नहीं होता है। तथा एक व्यक्ति पुष्यनक्षत्र और तारका अनेक व्यक्ति, इस प्रकार एक अनेक या पुल्लिंग, स्त्रीलिंग का भेद होने पर भी दूसरे मनुष्य यहाँ अर्थभेद नहीं
SR No.004287
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2010
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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