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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक * 121 नैगमसंग्रहव्यवहारर्जुसूत्रशब्दसमभिरूद्वैवंभूता नयाः॥३३॥ किं कृत्वाधुना किं च कर्तुमिदं सूत्रं ब्रवीतीत्याहनिर्देश्याधिगमोपायं प्रमाणमधुना नयान्। नयैरधिगमेत्यादि प्राह संक्षेपतोऽखिलान् // 1 // प्रमाणनयैरधिगम इत्यनेन प्रमाणं नयाश्चाधिगमोपाया इत्युद्दिष्टं / तत्र प्रमाणं तत्त्वार्थाधिगमोपायं प्रपंचतो निर्देश्याधुना नयांस्तदधिगमोपायानखिलान् संक्षेपतोन्यथा च व्याख्यातुमिदं प्राह भगवान् / कथं? नयसामान्यस्य तल्लक्षणस्यैव संक्षेपतो विभागस्य विशेषलक्षणस्य च विस्तरतो नयविभागस्य अतिविस्तरतो नयप्रपंचस्य चात्र प्रतिपादनात् सर्वथा नयप्ररूपणस्य सूत्रितत्वादिति ब्रूमहे // नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ़ और एवंभूत ये सात नय हैं। यद्यपि प्रमाणों से नय भिन्न हैं फिर भी शब्दों द्वारा जानने योग्य विषय को बताने वाले श्रुतज्ञान के एकदेश को नय माना है॥३३॥ अब आगे क्या करने के लिए इस सूत्र को श्री उमास्वामी व्यक्त कर रहे हैं? इस प्रकार तर्की शिष्य की जिज्ञासा होने पर श्री विद्यानन्द आचार्य कहते हैं - - "प्रमाणनयैरधिगमः" ‘मति:स्मृतिः', 'श्रुतं मतिपूर्व' इत्यादि सूत्रों द्वारा तत्त्वों की अधिगति करने के प्रधान उपाय मूल प्रमाण का निर्देश (कथन) करके अब अधिगम के उपायभूत सम्पूर्ण नयों को संक्षेप में सूत्रकार कह रहे हैं। 'प्रमाणनयैरधिगमः' - इस सूत्र में 'नयैः' कहकर नयों को भी अधिगम का करण कहा जा चुका है॥१॥ “प्रमाणनयैरधिगमः" इस सूत्र के द्वारा प्रमाण और नय ये अधिगम करने के उपाय हैं, इस प्रकार कंथन किया गया है। - उन अधिगति के उपायों में तत्त्वार्थों के अधिगम के उपायभूत प्रमाण को विस्तार से निरूपण कर अब उन तत्त्वार्थों या उनके अंशों की अधिगति के उपायभूत सम्पूर्ण नयों को संक्षेप से और विस्तार, अतिविस्तार से व्याख्यान करने के लिए इस सूत्र को ग्रन्थकार ने कहा है। किस प्रकार से इस सूत्र में नयों का प्रतिपादन किया है? इसके उत्तर में विद्यानन्द आचार्य कहते हैं कि प्रथम ही नय सामान्य का एक ही भेद स्वरूप निरूपण और उस नय सामान्य के लक्षण का ही संक्षेपसे प्रतिपादन किया गया है तथा विभाग का अभिप्राय करते हुए नयों के विशेष दो भेद कर उनके लक्षण का और विस्तार के साथ नयों के विभाग का प्रतिपादन किया है। और भी नयों के विभाग का अत्यन्त विस्तार से नयों के भेद-प्रभेदों का इस सूत्र में विस्तृत कथन किया गया है। 'यहाँ प्रथम विचार के अनुसार सामान्य रूप से नय की संख्या का और नय के लक्षण का निरूपण करते हुए श्री विद्यानन्द आचार्य कहते हैं।
SR No.004287
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2010
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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