________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक *40 संयोगादि पुनर्येन सन्निकर्षोऽभिधीयते। तत्साधकतमत्वस्याभावात्तस्याप्रमाणता // 22 // सतींद्रियार्थयोस्तावत्संयोगे नोपजायते। स्वार्थप्रमितिरेकांतव्यभिचारस्य दर्शनात् // 23 // क्षितिद्रव्येण संयोगो नयनादेर्यथैव हि। तस्य व्योमादिनाप्यस्ति न च तज्ज्ञानकारणम् // 24 // संयुक्तसमवायश्च शब्देन सह चक्षुषः। शब्दज्ञानमकुर्वाणो रूपचिच्चक्षुरेव किम् // 25 // संयुक्तसमवेतार्थसमवायोप्यभावयन्। शब्दत्वस्य न नेत्रेण बुद्धिं रूपत्ववित्करः // 26 // श्रोत्रस्यायेन शब्देन समवायश्च तद्विदम् / अकुर्वन्नन्त्यशब्दस्य ज्ञानं कुर्यात्कथं तु वः // 27 // . तस्यैवादिमशब्देष शब्दत्वेन समं भवेत। समवेतसमवायं सद्विज्ञानमनादिवत // 28 // __ सन्निकर्ष को प्रमाण मानने वाले वैशेषिक का खण्डन - जैसे वैशेषिक ने संयोग, संयुक्तसमवाय, संयुक्त-समवेतसमवाय, समवाय, समवेतसमवाय और विशेषण-विशेष्यभाव-ये छह लौकिक सन्निकर्ष कहे हैं, तथा सामान्य लक्षण, ज्ञान लक्षण और योगज लक्षण नामक इन तीन अलौकिक संनिकर्षों का कथन किया है, उन संनिकर्षों को उस प्रमा का साधकतमपना न होने के कारण प्रमाणपना नहीं है। क्योंकि इन्द्रिय और अर्थ का संयोग होते हुए भी स्व और अर्थ की प्रमा उत्पन्न नहीं होती है। अत: एकान्तरूप से सन्निकर्ष के प्रमाण कारण में व्यभिचार देखा जाता है। पृथ्वी द्रव्य के साथ चक्षु, स्पर्शन आदि इन्द्रियों का जैसा संयोग है, वैसा उन चक्षु आदिकों का आकाश, आत्मा आदि के साथ भी संयोग सम्बन्ध है किन्तु वह संयोग उन आकाश आदि के ज्ञान का कारण नहीं माना गया है। यह अन्वयव्यभिचार है॥२२२३-२४॥ ___ यह सन्निकर्ष साधकतम न होने से प्रमाण नहीं है क्योंकि जहाँ-जहाँ सन्निकर्ष हो वह-वह प्रमाण ऐसा सन्निकर्ष के साथ अन्वय नहीं है। चक्षु का शब्द के साथ संयुक्त समवाय सम्बन्ध है परन्तु वह संयुक्त समवाय सम्बन्ध शब्द का ज्ञान नहीं करता हुआ चक्षु के द्वारा रूप का ही ज्ञान क्यों कर रहा है? अर्थात् जिस प्रकार चक्षु इन्द्रिय का रूप के साथ संयुक्तसमवाय नामका परम्परा-सम्बन्ध सन्निकर्ष प्रमाण होता हुआ, रूपज्ञान का कारण है, उसी प्रकार चक्षु का शब्द के साथ भी संयुक्तसमवाय सम्बन्ध है किन्तु वह संयुक्तसमवाय जब शब्द के चाक्षुष ज्ञान को नहीं कर रहा है, तो संयुक्तसमवाय द्वारा चक्षु इन्द्रिय रूप ज्ञान क्यों कराता है? इसी प्रकार चक्षु का रूपत्व जाति के साथ संयुक्तसमवेतसमवाय है। चक्षु से संयुक्त घट है, घट में समवाय सम्बन्ध से रूप रहता है और रूप में रूपत्व जाति का समवाय है अतः चक्षु का रूपत्व के साथ संयुक्तसमवेतसमवाय सन्निकर्ष है। उसी के समान शब्दत्व के साथ भी यही सन्निकर्ष है। चक्षु से संयुक्त आकाश है आकाश में समवेत शब्द है और शब्दगुण में शब्दत्व जाति का समवाय है, फिर नेत्र के द्वारा रूपत्व की वित्ति (ज्ञान) के समान शब्दत्व की बुद्धि को वह सन्निकर्ष क्यों नहीं कराता है? // 25-26 // चौथा सन्निकर्ष कर्णविवर में रहने वाले आकाश-द्रव्यरूप श्रोत्र का शब्द गुण के साथ समवाय सम्बन्ध है, आदि में उच्चारण किये गये शब्द के साथ होने वाला समवाय उस प्रथम उच्चरित शब्द के ज्ञान को न करता हुआ, आप वैशेषिकों के यहाँ अन्तिम शब्द के ज्ञान को कैसे करा सकेगा ? जब वैशेषिकों