________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक * 409 अङ्गप्रविष्ट के बारह भेद हैं - 1. आचाराङ्ग इसमें यतियों के आचार का वर्णन है। इसके पदों की संख्या अठारह हजार 2 सूत्रकृताङ्ग 3. स्थानाङ्ग 4. समवायाङ्ग - इसमें ज्ञान, विनय, छेदोपस्थापना आदि क्रियाओं का वर्णन है। इसके पदों की संख्या छत्तीस हजार है। - एक, दो, तीन आदि एकाधिक स्थानों में षड्द्रव्य आदि का निरूपण है। इसके पदों की संख्या बयालीस हजार है। - इसमें धर्म, अधर्म, लोकाकाश, एक जीव असंख्यात प्रदेशी है, सातवें नरक का मध्यबिल, जम्बूद्वीप, सर्वार्थसिद्धि का विमान और नन्दीश्वर द्वीप की वापी इन सबका एक लाख योजन प्रमाण है, इत्यादि वर्णन है। इसके पदों की संख्या चौसठ हजार है। इसमें जीव हैं या नहीं इत्यादि प्रकार के गणधर के द्वारा किये गये साठ हजार प्रश्नों का वर्णन है। इसके पदों की संख्या दो लाख अट्ठाईस हजार 5. व्याख्याप्रज्ञप्ति 6. ज्ञातृकथा . - - इसमें तीर्थंकरों और गणधरों की कथाओं का वर्णन है। इसके पदों की संख्या पाँच लाख पचास हजार है। 7 उपासकाध्ययन - - इसमें श्रावकों के आचार का वर्णन है। इसके पदों की संख्या ग्यारह लाख सत्तर हजार है। 8 अन्तः कृतदश - प्रत्येक तीर्थंकर के समय में दस-दस मुनि होते हैं जो उपसर्गों को सहकर मोक्ष पाते हैं। उन मुनियों की कथाओं का इसमें वर्णन है। इसके पदों की संख्या तेईस लाख अट्ठाईस हजार है। 9.. अनुत्तरोपपादिकदश - प्रत्येक तीर्थंकर के समय दस-दस मुनि होते हैं जो उपसर्गों को सहकर पाँच अनुत्तर विमानों में उत्पन्न होते हैं। उन मुनियों की कथाओं का इसमें वर्णन है। इसके पदों की संख्या बानवे लाख चवालीस हजार है। 10. प्रश्नव्याकरण - इसमें प्रश्न के अनुसार नष्ट, मुष्टिगत आदि का उत्तर है। इसके पदों की . संख्या तेरानवे लाख सोलह हजार है। 11. विपाकसूत्र - इसमें कर्मों के उदय, उदीरणा और सत्ता का वर्णन है। इसके पदों की संख्या एक करोड़ चौरासी लाख है। 12. दृष्टिवाद - नामक बारहवें अङ्ग के पाँच भेद हैं - 1. परिकर्म, 2. सूत्र, 3. प्रथमानुयोग, . 4. पूर्वगत और 5. चूलिका। इनमें (1) परिकर्म के पाँच भेद हैं - 1. चन्द्र प्रज्ञप्ति ___- इसमें चन्द्रमा की आयु, गति, वैभव आदि का वर्णन है। इसके पदों की संख्या छत्तीस लाख पाँच हजार है। 2. सूर्यप्रज्ञप्ति - इसमें सूर्य की आयु, गति, वैभव आदि का वर्णन है। इसके पदों की संख्या पाँच लाख तीन हजार है।