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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक * 404 चाप्तोपदेशात्प्रतिपाद्यस्य तत्संज्ञासंज्ञिसम्बन्धप्रतिपत्तिरागमफलमेव ततोऽप्रमाणांतरमिति चेत्तोप्तोपदिष्टोपमानवाक्यादपि तत्प्रतिपत्तिरागमज्ञानमेवेति नोपमानं श्रुतात्प्रमाणान्तरं, सिंहासनस्थो राजा मंचके महादेवी सुवर्णपीठे सचिवः एतस्मात्पूर्वत एतस्मादुत्तरत एतस्माद्दक्षिणत एतन्नामेत्यादिवाक्याहितसंस्कारस्य पुनस्तथैव दर्शनात्सोऽयं राजेत्यादिसंज्ञासंज्ञिसंबन्धप्रतिपत्तिः। षडाननो गुहश्चतुर्मुखो ब्रह्मा तुंगनासो भागवतः क्षीराम्भोविवेचनतुण्डो हंसः सप्तच्छद इत्यादिवाक्याहितसंस्कारस्य तथा प्रतिपत्तिर्वा यद्यागमज्ञानं तदा तद्वदेवोपमानमवसेयं विशेषाभावात्। यदि पुनरुपमानोपमेयभावप्रतिपादनपरत्वेन विशिष्टादुपमानवाक्यादुत्पद्यमानं श्रुतात्प्रमाणान्तरमित्यभिनिवेशस्तदा रूप्यरूपकभावादिप्रतिपादनपरत्वेन ततोऽपि विशिष्टाद्रूपकादिवाक्यादुपजायमानं विज्ञानं प्रमाणान्तरमनुमन्यतां, तस्यापि स्वविषयप्रमितौ शंका : यथार्थ वक्ता के उपदेश से शिष्य को वह संज्ञा-संज्ञियों के सम्बन्ध की प्रतिपत्ति होना आगमज्ञान का फल है अत: वह पृथक् प्रमाण नहीं है। समाधान : ऐसा कहने पर तो आप्तपुरुष द्वारा उपदिष्ट उपमान वाक्य से उस सादृश्य विशिष्ट गौ या गोविशिष्ट सादृश्य की प्रतिपत्ति भी आगमप्रमाण है। श्रुत से निराला उपमान प्रमाण नहीं हो सकता अत: उपमान वाक्य से उत्पन्न वह सम्बन्ध प्रतिपत्ति भी आगम प्रमाण है। प्रथम राजसभा में जाने वाले किसी नवपुरुष को दरबार में आने जाने वाले किसी मित्र ने समझा दिया कि मध्य में सिंहासनस्थ राजा, बायें और सुवर्ण के उच्चासन पर बैठी हुई स्त्री पटरानी और सुवर्ण : के पीठ पर बैठा हुआ मंत्री है। इससे पूर्व देश में और इससे उत्तर की ओर तथा इससे दक्षिण की ओर अमुक अमुक नाम वाले पदवीधर पुरुष हैं जो अमुक-अमुक ग्राम के हैं, इत्यादि वाक्य के संस्कारों को धारण करने वाले पुरुष को पुनः अन्यदा राजसभा में जाकर उसी प्रकार देखने से और यह वही राजा है, यह स्त्री महादेवी है, यह सुवर्ण पीठ पर बैठा हुआ मंत्री है, इत्यादि पहले गृहीत की गयी संज्ञायें और सम्मुख स्थित संज्ञा वाले जनों के सम्बन्ध की प्रतिपत्ति हो जाती है। छह मुखों से युक्त कार्तिकेय को गुह, चार मुख वाला ब्रह्मा, उन्नत नासिका वाला पक्षी विष्णु भगवान का वाहन, गरुड़ भागवत है। मिले हुए क्षीर और जल के पृथग्भाव करने में दक्ष, चोंच को धारने वाला पक्षी हंस होता है। सात-सात पत्तों के गुच्छों को धारने वाला जो वृक्ष है, वह सप्तच्छद है इत्यादि वाक्यों के संस्कार के धारक पुरुष को इस प्रकार राजा, कार्तिकेय, आदि की प्रतिपत्ति होना यदि आगमज्ञान माना गया है, तो उन्हीं के समान उपमान को भी आगम ज्ञान निर्णय कर लेना चाहिए। क्योंकि हंस, सप्तच्छद आदि के आगमज्ञानों से गौ के सदृशज्ञानरूप उपमान में कोई विशेषता नहीं पाई जाती है। _ यदि तुम्हारा, उपमान उपमेय भाव को प्रतिपादन करने में तत्पर होने के कारण विशेषताओं के धारक उपमान वाक्य से उत्पन्न उपमान प्रमाण श्रुत से पृथक् प्रमाण है, ऐसा अभिप्राय है तब तो रूपक अलंकार, उत्प्रेक्षा अलंकारयुक्त आप्तवाक्यों द्वारा कहे गये रूप्यरूपकभाव, उपमित उपमेयभाव आदि को प्रतिपादन करने में तत्पर होने के कारण उस उपमान वाक्य से भी विशिष्ट रूपक, उत्प्रेक्षा, अनन्वय आदि
SR No.004286
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2010
Total Pages438
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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