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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 347 अतैजसांजनापेक्षि चक्षू रूपं व्यनक्ति यं। नातः समानजातीयसहकारि नियम्यते // 46 // तैजसमेवांजनादि रूपप्रकाशने नेत्रस्य सहकारि न पुन: पार्थिवमेव तत्रानुद्भूतस्य तेजोद्रव्यभावादित्ययुक्तं प्रमाणाभावात् / तैजसमंजनादि रूपावभासने नयनसहकारित्वाद्दीपादिवत्यप्यसम्यक्, चंद्रोद्योतादिनानैकांतात्। तस्यापि पक्षीकरणान्न व्यभिचार इति चेन्न, हेतोः कालात्ययापदिष्टत्वप्रसंगात् / पंक्षस्य प्रत्यक्षानुमानागमबाधितत्वात् तस्य प्रत्यक्षेणातैजसत्वेनानुभवात्। न तैजसश्चंद्रोद्योतो प्रमाणपना नहीं मानने पर तो) तुम्हारे यहाँ अन्धकार पदार्थ सिद्ध नहीं हो सकता। अर्थात् जैनों के अभीष्ट सिद्धान्तानुसार यदि अन्धकार को पौद्गलिक तत्त्व माना जायेगा तो उन्हीं के अभीष्ट अनुसार चक्षु का अतैजसपना भी सिद्ध हो जाएगा॥४५॥ अर्थात् तैजस अपनी समान जाति वाले अन्य तैजस पदार्थ को सहकारी चाहता है। सो उनका यह कहना भी ठीक नहीं, क्योंकि अतैजस अंजन या काजल की अपेक्षा रखने वाली चक्षु जिस रूप को व्यक्त करती है, उसमें चक्षु का सहकारी कारण कोई समान जाति का तैजस पदार्थ अपेक्षणीय नहीं है। भावार्थ : समानजातीय तैजस पदार्थ ही नेत्रों का सहकारी है, यह नियम नहीं किया जा सकता है, क्योंकि चश्मा आदि अन्य पदार्थ भी सहकारी होते हैं।॥४६॥ (वैशेषिक) तेजोद्रव्य से बने हए अंजन आदि पदार्थ स्वरूप को प्रकाशने में नेत्र के सहकारी कारण हैं किन्तु वे अंजन आदि विवर्त केवल पार्थिव ही नहीं हैं, क्योंकि उन अंजन आदि में अप्रकट तेजोद्रव्य का सद्भाव है अतः तैजस नेत्र के तैजस पदार्थ ही सहायक हुए। - वैशेषिकों का यह कथन युक्तिरहित है, क्योंकि अंजन आदि में छिपे हुए तेजोद्रव्य के सद्भाव का साधक कोई प्रमाण नहीं है। यदि वैशेषिक यह अनुमान प्रमाण देवें कि अंजन, चश्मा आदि तैजस पदार्थ हैं - रूप को प्रकाशने में नेत्रों के सहकारी कारण होने से, जैसे दीपक, बिजली आदि पदार्थ के प्रकाशन में सहकारी कारण हैं। वैशेषिकों का यह अनुमान समीचीन नहीं है, क्योंकि चन्द्र उद्योत, माणिक्य प्रकाश आदि के द्वारा इनमें व्यभिचार दोष आता है। वे तैजस नहीं होते हुए भी नेत्रों के सहकारी हैं। यदि वैशेषिक उनको पक्ष नहीं होते हुए भी अंजन आदि के साथ पक्ष कोटि में कर लेंगे और मान लेंगे कि इससे व्यभिचार नहीं होगा, तो ऐसा नहीं समझना चाहिए, क्योंकि ऐसी दशा में नयन सहकारित्व हेतु को बाधित हेत्वाभास होजाने का प्रसंग आएगा। अंजन, चन्द्रोद्योत आदि में तैजसपना साधने पर प्रत्यक्ष, अनुमान, आगम प्रमाणों से पक्ष बाधित हो जाता है, क्योंकि उन अंजन, उद्योत आदि का प्रत्यक्ष प्रमाण द्वारा अतैजसस्वरूप अनुभव में आ रहा है अतः काले अंजन, पीले उद्योत, अभासुर चश्मा आदि का तैजसपना प्रत्यक्षबाधित है। वैशेषिकों ने भी इनको पार्थिव माना है। तुम्हारे अनुमान में इस अनुमान प्रमाण से ही बाधा यों आती है कि चन्द्रोद्योत तैजस नहीं है, नेत्रों को आनन्द का कारण होने से जल, कर्पूर, ममीरा आदि के समान / इस प्रकार अनुमान से बाधा होने के कारण तुम्हारा नयनसहकारित्व हेतु सत्प्रतिपक्ष हेत्वाभास भी है। प्रायः अतैजस, शीतल पदार्थ ही नयनों
SR No.004286
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2010
Total Pages438
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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