________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक*३३४ केवलव्यतिरेकानुमानमन्यथानुपपत्त्येकलक्षणयोगादुपपन्नं पक्षस्य बाधकमिति भावः। अत्र हेतोरसिद्धतामाशंक्य परिहरन्नाह;चक्षुषा शक्तिरूपेण तारकागतमंजनं। न स्पृष्टमिति तद्धेतोरसिद्धत्वमिहोच्यते // 12 // शक्तिः शक्तिमतोन्यत्र तिष्ठतार्थेन युज्यते। तत्रस्थेन तु नैवेति कोन्यो ब्रूयाजडात्मनः // 13 // ___ व्यक्तिरूपाच्चक्षुषः शक्तिमतोन्यत्र दूरादिदेशे तिष्ठतार्थेन घटादिना शक्तींद्रियं युज्यते न पुनर्व्यक्तिनयनस्थेनांजनादिनेति कोन्यो जडात्मवादिनो ब्रूयात्। दूरादिदेशस्थेनार्थेन व्यक्तिचक्षुषः संबंधपूर्वक चक्षुः संबध्यते तद्वेदनस्यान्यथानुपपत्तेरितिचेत् स्यादेतदेवं यद्यसंबंधेन तत्र वेदनमुपजनयितुं नेत्रेण न शक्येत सिद्ध अनुमान के द्वारा उस चक्षु के प्राप्यकारीपन को साधने वाले पक्ष का बाधक हो जाता है, अर्थात् चक्षु का प्राप्यकारीपना अनुमान बाधित है यह तात्पर्य है। ___ इस केवल व्यतिरेकी अनुमान में दिये गए हेतु के असिद्धपन की आशंका कर पुन: उसका परिहार करते हुए आचार्य कहते हैं - ____ यदि वैशेषिक कहे कि शक्तिस्वरूप चक्षु के द्वारा आँख के ताराओं में लगा हुआ अंजन छुआ नहीं गया है अत: उस स्पृष्ट अनवग्रह हेतु का असिद्धपना यहाँ कहा जाता है। तो इसके उत्तर में जैनाचार्य कहते हैं कि शक्तिमान की शक्ति अन्य देश में स्थित अर्थ के साथ तो संयुक्तहो जाए परन्तु उसी शक्तिमान के देश में स्थित पदार्थ के साथ संयुक्त नहीं होवे, इस बात को जड़ आत्मा को मानने वाले नैयायिक या वैशेषिक के अतिरिक्त दूसरा कौन विद्वान् कह सकता है? अर्थात् कोई नहीं। शक्तिमान् चक्षु तो उत्तमांग में है और उसकी शक्तियाँ दूरवर्ती पर्वत आदि पदार्थों केसाथ जुड़ जाती हैं, क्या वे शक्तियाँ भी कहीं अपने शक्तिमान अर्थ को छोड़कर दूरदेश में ठहर सकती हैं? शक्तियाँ सशक्त में ही रहती हैं। ___ वे अपने शक्तिमान् आश्रय को छोड़कर अन्यत्र नहीं जा सकती हैं। अत: दूर देश में पड़े हुए पदार्थ के साथ तो चक्षु की शक्ति चिपट जाय, किन्तु चक्षु के अतिनिकट स्पृष्ट अंजन से न चिपटे, ऐसी बातों को ज्ञानी तो नहीं कह सकते हैं // 12-13 // ___शक्ति को धारने वाले व्यक्तिरूप चक्षु से अन्य स्थल पर दूर, अतिदूर आदि देशों में स्थित घट, आदि पदार्थों के साथ तो शक्तिरूप चक्षु इन्द्रिय संयुक्त हो जाती है, किंतु फिर चक्षु में स्थित अंजन, आदि के साथ संयुक्त नहीं होती है, इस सिद्धान्त को जड़आत्मवादी के सिवाय और कौन दूसरा विज्ञ कह सकेगा? अर्थात् चैतन्यस्वरूप आत्मा को कहने वाला विद्वान् ऐसी बातों को नहीं कह सकता है अत: हमारा स्पृष्ट अर्थ का अप्रकाशकपन हेतु असिद्ध हेत्वाभास नहीं है। ___ अतिदूर, व्यवहित आदि देशों में स्थित अर्थ के साथ व्यक्तिरूप तैजस चक्षु का पहले सम्बन्ध होकर शक्तिरूप चक्षु उन दूरदेशी पदार्थों के साथ सम्बन्ध कर लेती है क्योंकि उन दूरदेशी पदार्थों का ज्ञान अन्यथा (चक्षु का सम्बन्ध हुए बिना) सिद्ध नहीं हो सकता है, इस प्रकार वैशेषिकों के कहने पर जैनाचार्य कहते हैं कि इस प्रकार का कहना तो तब हो सकता था कि यदि सम्बन्ध नहीं करके उन दूरदेशवर्ती पदार्थों