________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक * 333 बाह्यं चक्षुर्यदां तावत् कृष्णतारादि दृश्यताम् / प्राप्तं प्रत्यक्षतो बाधात् तस्यार्थाप्राप्तिवेदिनः // 9 // शक्तिरूपमदृश्यं चेदनुमानेन बाधनम्। आगमेन सुनिर्णीतासंभवद्बाधकेन च // 10 // व्यक्तिरूपस्य चक्षुषः प्राप्यकारित्वे साध्ये प्रत्यक्षेण बाध्यते पक्षोनुष्णोग्निरित्यादिवत्। प्रत्यक्षतः साध्यविपर्ययसिद्धेः। शक्तिरूपस्य तस्य तथात्वसाधनेनुमानेन बाध्यते तत एव सुनिर्णीतासंभवद्बाधकेनागमेन च। किं तदनुमानं पक्षस्य बाधकमित्याह;तत्राप्राप्तिपरिच्छेदि चक्षुः स्पृष्टानवग्रहात्। अन्यथा तदसंभूतेना॑णादेरिव सर्वथा // 11 // वाली उस चक्षु की प्रत्यक्ष से ही बाधा उपस्थित होती है क्योंकि बाह्य दीखने वाली चक्षु दूर से ही जानती है, पदार्थ का स्पर्श करके नहीं; स्पर्श करके जानना-यह प्रत्यक्ष बाधित है तथा, दीखने में नहीं आने वाली कोई शक्तिरूप चक्षु तो अनुमान प्रमाण से बाधित है। बाधक प्रमाणों का असंभव होनापन जिसका निर्णीत है, ऐसे आगम प्रमाण द्वारा भी प्राप्यकारी साधने वाला अनुमान बाधित है॥९-१०॥ . लौकिक जनों में प्रसिद्ध गोलकस्वरूप व्यक्तिरूप चक्षु का प्राप्यकारीपना साध्य करने पर तो प्रतिज्ञास्वरूप पक्ष प्रत्यक्षप्रमाण करके ही बाधित हो जाता है, जैसे कि अग्नि ठण्डी है, यह पक्ष स्पर्शनप्रत्यक्ष करके बाधित है क्योंकि, शीत साध्य से विपरीत उष्णपना अग्नि में प्रत्यक्ष प्रमाण के द्वारा सिद्ध है, उसी प्रकार प्रसिद्ध दृश्यमान गोलकरूप चक्षु का प्राप्यकारीपन साध्य से विपरीत अप्राप्यकारीपना चाक्षुषप्रत्यक्ष या स्पार्शन प्रत्यक्ष से सिद्ध है। यदि नैयायिक उस शक्तिरूप चक्षु का उस प्रकार प्राप्यकारीपना सिद्ध करेंगे, अर्थात् गोलकचक्षु के कृष्ण तारा के अग्रभाग में स्थित चक्षु की शक्ति विषय को प्राप्त कर ज्ञान कराती है - ऐसा मानेंगे तब उनका पक्ष अनुमान प्रमाण से बाधित होता है। (इसी से ही, साध्य से विपरीत अप्राप्यकारीपन की सिद्धि हो जाने से) वैशेषिकों का अनुमान सदोष होता है तथा जिसके बाधक प्रमाणों का असम्भव होना निर्णीत है, उस आगम से भी नैयायिकों का पक्ष बाधित है “अपुढे पुण पस्सदे रूवं" छुए बिना ही चक्षु द्वारा रूप या रूपवान् पदार्थ देख लिया जाता है, इत्यादि आगम प्रसिद्ध है। पक्ष का बाधक वह अनुमान कौनसा है? इस प्रकार वैशेषिकों की जिज्ञासा पर आचार्य कहते हैंचक्षु, जिस पदार्थ के साथ चक्षु की प्राप्ति नहीं है, उस अप्राप्त अर्थ की ज्ञप्ति कराने वाली है। सर्वथा स्पर्श किये गये अंजन, पलक आदि का अवग्रहज्ञान कराने वाली नहीं होने से। अन्यथा (अप्राप्य अर्थ के परिच्छेदी को माने बिना) चक्षु को वह स्पृष्ट पदार्थ का अवग्रह नहीं होना सर्वथा असम्भव है। अर्थात्-चक्षु इन्द्रिय स्पर्श करके अवग्रह नहीं कर सकती। यदि स्पर्श करके अवग्रह नहीं है अर्थात् जो इन्द्रियाँ प्राप्त अर्थ की ज्ञप्ति कराती हैं, वे छुये हुए अर्थ का अवग्रह अवश्य कराती हैं॥११॥ परन्तु चक्षु छूए पदार्थ का अवग्रह नहीं कराती है। . साध्य के अभाव में नहीं होना व्यतिरेक व्याप्ति है। उस केवल व्यतिरेक व्याप्ति वाले हेतु से उत्पन्न वैशेषिकों का अनुमान तथा स्याद्वादी सिद्धान्त में अन्यथानुपपत्ति नामक एक लक्षण वाले हेतु के योग से