________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक * 323 न च तद्रव्यार्थतः सतां पर्यायार्थतोऽसतां धर्माणां धर्मी विरुद्ध्यतेऽन्यथैव विरोधात्। ततो द्रव्यपर्यायात्मार्थों धर्मी व्यक्तः प्रतीयतामव्यक्तस्य व्यंजनपर्यायस्योत्तरसूत्रे विधानात्। द्रव्यनिरपेक्षस्त्वर्थपर्यायः केवलो नार्थोत्र तस्याप्रमाणकत्वात्। नापि द्रव्यमानं परस्परं निरपेक्षं तदुभयं वा तत एव। न चैवंभूतस्यार्थस्य विवर्तानां बह्वादीतरभेदभृतामवग्रहादयो विरुध्यते येन एवैकं मतिज्ञानं यथोक्तं न सिदध्येत्॥ अतएव कथचित् भेद-अभेद-आत्मक वस्तु के निर्णीत हो जाने से निष्पन्न अथवा नहीं निष्पन्न बहु, बहुविध आदि धर्मों की एक धर्मी में उसके परतंत्र रहने की असिद्धि नहीं है अर्थात् - धर्म धर्मियों में परस्पर पराधीनता है तथा उनके साथ कथंचित् तादात्म्य रूप से परतंत्रता की व्यवस्था है। ___उस वस्तु में द्रव्यार्थिकनय से विद्यमान और पर्यायार्थिक नय से अविद्यमान धर्मों का आधारभूत धर्मी विरुद्ध नहीं है। अन्यथा (जिस अपेक्षा से विद्यमान और उसी अपेक्षा से अविद्यमान अथवा जिस अपेक्षा से अविद्यमान और उसी अपेक्षा से विद्यमान माना जाता है तो) विरोध आता है परन्तु भिन्न-भिन्न अपेक्षाओं से मानने पर अनेकान्तों में यथार्थ रूप से वस्तु संस्कृत हो जाती है। अतः द्रव्य और पर्यायों के साथ तदात्मक अर्थ ही यहाँ व्यक्त अधिक प्रकटधर्मी समझ लेना चाहिए। व्यंजन पर्याय स्वरूप अव्यक्त धर्मी का उत्तरवर्ती “व्यंजनस्यावग्रहः" इस सूत्र में विधान किया जाएगा। सर्वथा द्रव्य निरपेक्ष केवल अर्थ पर्याय ही यहाँ अर्थ विवक्षित नहीं है, क्योंकि उस अकेली अर्थ- पर्याय को ही वस्तुपने की ज्ञप्ति करना अप्रामाणिक है तथा पर्यायों से रहित केवल द्रव्य को ही यहाँ अर्थ नहीं लिया गया है, क्योंकि केवल द्रव्य को - पर्यायों से रहित जानना अप्रामाणिक है। अथवा परस्पर की अपेक्षा नहीं रखने वाले केवल द्रव्य या पर्याय ये दोनों भी यहाँ अर्थ नहीं हैं क्योंकि यह प्रमाण सिद्ध नहीं है। अर्थात् : आत्मा की अपेक्षा नहीं रखने वाला ज्ञान और ज्ञान की अपेक्षा नहीं रखने वाला आत्मा जैसे प्रमाण का विषय नहीं हैं, उसी प्रकार द्रव्य की अपेक्षा नहीं रखने वाला निराधार पर्याय और पर्यायों की अपेक्षा नहीं रखने वाला आधेय रहित द्रव्य, ये दोनों भी कोई पदार्थ नहीं हैं अतः परस्परापेक्षा द्रव्य और पर्यायों के साथ तदात्मक वस्तु ही अर्थ है। इस प्रकार वस्तुभूत अर्थ के बहु, बहुविध और उनसे इतर अल्प, अल्पविध आदि भेदों को धारने वाले पर्यायों को विषय करने वाले अवग्रह आदिक ज्ञान विरुद्ध नहीं हैं जिससे यथार्थ कहा गया एक मतिज्ञान सिद्ध नहीं हो सके। अर्थात् : द्रव्य, पर्याय, आत्मक अर्थ के बहु आदिक बारह भेद वाले पर्यायों को विषय करने वाले अवग्रह आदि और स्मृति आदिक मतिज्ञान ही हैं। वे सब मतिज्ञान की अपेक्षा एक हैं। प्रसंग प्राप्तों में विशेष नियम करने के लिए तथा शिष्यों की व्युत्पत्ति के लिए सूत्रकार अग्रिम सूत्र . कहते हैं -