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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक * 246 सहभूव्यापका दृष्टिर्नास्ति वेदकदर्शनैः। सहभावि मतिज्ञानं तत्त्वश्रद्धानहानितः // 328 // . सहभूव्यापिहेत्वाद्यदृष्टयोप्यविरोधतः। प्रत्येतव्याः प्रपंचेन लोकशास्त्रनिदर्शनैः // 329 // सहचरव्यापककार्यानुपलब्धिर्यथा नास्त्यभव्ये सम्यग्विज्ञानं दर्शनमोहोपशमाद्यभावात् / सहचरव्यापककारणानुपलब्धिर्यथा तत्रैवाधःप्रवृत्तादिकरणकाललब्ध्याद्यभावात्। सहचरव्यापककारणव्यापकानुपलब्धिस्तत्रैव दर्शनमोहोपशमादित्वाभावादिति समयप्रसिद्धान्युदाहरणानि / लोकप्रसिद्धानि पुनर्नाश्वस्य दक्षिणं शृग शृंगारंभकाभावादिति सहचरव्यापककारणानुपलब्धिः / दक्षिणशृंगसहचारिणो हि वामशृंगस्य व्यापकं श्रृंगमात्रं तस्य कारणं तदारंभकाः पुद्गलविशेषाः तदनुपलब्धिदक्षिणशृंगस्याभावं साधयत्येव / निषेध्य के सहचारी के निमित्त की अनुपलब्धि का यह उदाहरण है कि मेरी आत्मा में मति अज्ञान आदि नहीं है, क्योंकि दर्शन मोहनीय कर्म के उदय की असिद्धि है। उसी प्रकार मति अज्ञान का सहचारी मिथ्याश्रद्धान है। उस मिथ्याश्रद्धान का निमित्तकारण दर्शन मोहनीय कर्म का उदय है अतः यह सहचारी निमित्त-अनुपलब्धि है या सहचारी कारणानुपलब्धि है।।३२७॥ सहचर व्यापकानुपलब्धि इस प्रकार है कि मुझमें क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शनों के साथ होने वाला मतिज्ञान नहीं है, क्योंकि तत्त्वों के श्रद्धान की हानि है। यहाँ मतिज्ञान का सहचारी क्षयोपशम सम्यक्त्व है। उसका व्यापक तत्त्वश्रद्धान है अतः यह सहचर व्यापक अनुपलब्धि का दृष्टान्त है // 328 // सहचरव्यापक हेतु अनुपलब्धि या सहचर व्यापक कार्य-अनुपलब्धि भी अविरोध से विस्तारपूर्वक लोकप्रसिद्ध और शास्त्रप्रसिद्ध दृष्टान्तों द्वारा समझ लेनी चाहिए // 329 // सहचरव्यापक कार्य-अनुपलब्धि का दृष्टान्त इस प्रकार है। जैसे अभव्य में समीचीन ज्ञान नहीं है क्योंकि उसके दर्शनमोहनीय कर्म का उपशम, क्षय, क्षयोपशम का अभाव हैं। अभव्य में सम्यग्ज्ञान नहीं है क्योंकि अध:प्रवृत्त, अपूर्वकरण, अनिवृत्तिकरण, काललब्धि आदि का अभाव है। अर्थात् निषेध्य सम्यग्ज्ञान के सहचारी क्षयोपशम आदि सम्यक्त्व हैं। उनका व्यापक सम्यग्दर्शन सामान्य है। उसके कारण अधः प्रवत्तकरण, काललब्धि आदि हैं। उनकी अनुपलब्धि से सम्यग्ज्ञान का अभाव सिद्ध हो जाता है। सहचरव्यापककारण व्यापक अनुपलब्धि का उदाहरण यह है-अभव्य में सम्यग्ज्ञान के अभाव को साध्य करने पर दर्शन मोहनीय कर्म के उपशम आदि भावों के अभाव हेतु प्रसिद्ध है। अर्थात् निषेध्य सम्यग्ज्ञान के सहचारी क्षयोपशम सम्यक्त्व आदि हैं उनका व्यापक सम्यग्दर्शन है उसके कारण अध:करण आदि हैं। उन करणत्रय, आदि के व्यापक दर्शन मोह के उपशम आदि हैं। उनका अभाव होने से अभव्य में सम्यग्ज्ञान का निषेध सिद्ध किया जाता है। इस प्रकार आप्तोपज्ञ शास्त्रों के अनुसार अनेक उदाहरण प्रसिद्ध हैं। लोक में प्रसिद्ध अनुपलब्धि के उदाहरण इस प्रकार हैं-घोड़े के दक्षिण सींग नहीं है सींग को बनाने वाले पुद्गलस्कन्धों का अभाव होने से। यह सहचरव्यापककारण की अनुपलब्धि है।
SR No.004286
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2010
Total Pages438
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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