________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक * 236 तत्र पूर्वचरस्योपलब्धिः सिद्धांतवेदिनाम् / यथोदेष्यति नक्षत्रं शकटं कृत्तिकोदयात् // 276 // पूर्वचारि न निःशेष कारणं नियमादपि। कार्यात्मलाभहेतूनां कारणत्वप्रसिद्धितः॥२७७॥ न रोहिण्युदयस्तु स्यादमुष्मिन् कृत्तिकोदयात् / तदनंतरसंधित्वाभावात्कालांतरेक्षणात् // 278 // विशिष्टकालमासाद्य कृत्तिकाः कुर्वते यदि। शकटं भरणिः किं न तत्करोति तथैव च // 279 // व्यवधानादहेतुत्वे तस्यास्तत्र व वासना। स्मृतिहेतुर्विभाव्येत तत्त एवेत्यवर्तिनम् / / 280 // कारणं भरणिस्तत्र कृत्तिका सहकारिणी। यदि कालांतरापेक्षा तथा स्यादश्विनी न किम् // 281 // साध्यरूप अर्थ के साथ अविरुद्ध-कार्य-कारण भेदयुक्त हेतु की उपलब्धि पूर्वाचार्यों के अनुसार पूर्वचर, सहचर और उत्तरचरभेदों से तीन प्रकार की मानी गई है॥२७५॥ सिद्धान्त जानने वालों ने उन तीन भेदों में पूर्वचरहेतु की उपलब्धि का उदाहरण इस प्रकार प्रदर्शित किया है कि एक मुहूर्त के पीछे रोहिणी नक्षत्र का उदय होगा क्योंकि अभी कृत्तिका नक्षत्र का उदय है। यहाँ अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी इस क्रम के अनुसार शकट (रोहिणी) उदय का पूर्वचर कृत्तिका का उदय है॥२७६॥ पूर्व में रहने वाले सम्पूर्ण पदार्थ ही नियम से कारण नहीं हुआ करते हैं। क्योंकि जो पूर्ववर्ती है, वह कार्य के आत्मलाभ करने में कारण है, उन्हें कारणपने की प्रसिद्धि है। कृत्तिका उदय के समय में रोहिणी का उदय तो नहीं है क्योंकि उस कृत्तिका उदय के अव्यवहित उत्तरकाल में शकट उदय का सम्मेलन नहीं देखा जाता है, किन्तु मुहूर्त पीछे अन्यकाल में शकट का उदय होना देखा जाता है अतः शकट उदय और कृत्तिका उदय कार्यकारण भाव नहीं होने से कृत्तिका उदय का कारण हेतुओं में अंतर्भाव नहीं हो सकता है॥२७७-२७८॥ यदि कहो कि कृत्तिका के नक्षत्र का उदय विशिष्टकाल को प्राप्त कर शकट के उदय को कर देता है अत: कारण हेतु है तब तो एक मुहूर्त का व्यवधान देकर जैसे कृत्तिका रोहिणी को कर देती है, वैसे ही दो मुहूर्त का व्यवधान देकर भरणी और तीन मुहूर्त का व्यवधान देकर अश्विनीनक्षत्र ही शकट को क्यों नहीं उदयरूप बना देते हैं॥२७९॥ अधिक व्यवधान हो जाने से अश्विनी, भरणी को यदि उस रोहिणी के उदय का हेतुपना न मानोगे तब तो हम कहेंगे कि धारणा नामक अनुभव करते समय बहुत काल पहले हो चुकी वासनाएँ अधिक काल पीछे होने वाली स्मृति का कारण कैसे समझी जाएंगी? अश्विनी आदि में काल का व्यवधान होने से वे रोहिणी के उदय में कारण नहीं बनती हैं, ऐसा कहते हो तो काल व्यवधान होने से धारणा ज्ञान स्मृति का कारण कैसे बन सकता है, नहीं बन सकता, परन्तु बौद्धों ने धारणा को स्मृति में कारण माना है। इस प्रकार कार्य में व्यापार नहीं करने वाले पदार्थ को कारण नहीं मानना चाहिए।।२८०॥