________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 228 साध्यादन्यस्योपलब्धि पुनर्विभज्य निश्चिन्वन्नाह;साध्यादन्योपलब्धिस्तु द्विविधाप्यवसीयते। विरुद्धस्याविरुद्धस्य दृष्टस्तेन विकल्पनात् // 244 // साध्यादन्यस्य हि तेन सांध्येन विरुद्धस्योपलब्धिरविरुद्धस्य वा द्विधा कल्प्यते सा गत्यंतराभावात्। तत्र प्रतिषेधे विरुद्धोपलब्धिरर्थस्य तद्यथा। नास्त्येव सर्वथैकांतोऽनेकांतस्योपलंभतः // 245 // यावत्कश्चिन्निषेधोत्र स सर्वोनुपलंभवान् / यत्तदेष विरुद्धोपलंभोस्त्वनुपलंभनम् // 246 // इत्ययुक्तं तथाभूतश्रुतेरनुपलंभनं। तन्मूलत्वात्तथाभावे प्रत्यक्षमनुमास्तु ते॥२४७।। तथैवानुपलंभेन विरोधे साधिते क्वचित् / स्यात्स्वभावविरुद्धोपलब्धिवृत्तिस्तथैव वा // 248 // इसी कारण कार्य, कारण स्वरूप के द्वारा साध्य स्वभाव की उपलब्धि निश्चित की गई है अर्थात् द्रव्यार्थिक नय से सारे पदार्थों में उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य की उपलब्धि सिद्ध हो जाती है, फिर भी पर्याय की अपेक्षा अन्तर है। सो कहते हैं - अब साध्य से अन्य की उपलब्धिरूप हेतु का फिर विभाग कर निश्चय कराते हुए आचार्य कहते हैं साध्य से अन्य पदार्थ की उपलब्धि तो दोनों भी प्रकार की निश्चित जानी जा रही है। उस साध्य के साथ विरुद्ध हो रहे का उपलम्भ होना और उस साध्य से अविरुद्ध का उपलम्भ होना, इस प्रकार से हेतु के दो भेद किये जाते हैं। अर्थात् विरुद्धोपलब्धि और अविरुद्धोपलब्धि के भेद से हेतु दो प्रकार हैं // 244 // साध्य से अन्य की उस साध्य के द्वारा विरुद्ध हो रहे की उपलब्धि और साध्य से अविरुद्ध की उपलब्धि दो प्रकार कल्पित की गई है। अन्य उपाय का अभाव है। उनमें प्रथम विरुद्धोपलब्धि का कथन करते हैं हेतु के द्वारा अर्थ का निषेध (अभाव) सिद्ध करने पर विरुद्धोपलब्धि हेतु होता है जैसेवस्तु सर्वथा एकान्त (एकधर्मात्मक) नहीं है, क्योंकि अनेक धर्मों की उपलब्धि हो रही है। प्रश्न : 'जितने भी कोई यहाँ निषेध है, वे सभी अनुपलम्भयुक्त हैं अत: यह एकान्त से विरुद्ध अनेकान्त का उपलम्भ होना अनुपलम्भ हो जाता है।' उत्तर : यह कहना युक्तिरहित है क्योंकि इस प्रकार अनुपलम्भ सुना जाता है। उस अनुपलम्भ का मूल कारण प्रत्यक्ष है और उस प्रत्यक्ष का अभाव मानने पर तुम्हारे यहाँ प्रत्यक्ष प्रमाण अनुमान हो जाता है अर्थात् अनेकान्त के प्रत्यक्ष स्वरूप उपलम्भ से एकान्तों का अभाव अनुमित हो जाता है। ऐसी दशा में प्रत्यक्ष और अनुमान दोनों प्रतिष्ठित बने रहते हैं, अन्यथा नहीं // 245-246-247 // अर्थात् प्रत्यक्ष ज्ञान के द्वारा साधन को देखकर साध्य का ज्ञान किया जाता है, वह अनुमान ज्ञान है। ___उसी प्रकार अनुपलम्भ के द्वारा कहीं विरोध सिद्ध करने पर स्वभाव विरुद्ध की उपलब्धि की प्रवृत्ति होती है जैसे कि विशिष्ट उष्णता के अनुपलम्भ से अग्नि का अभाव सिद्ध किया जाता है अथवा, उसी प्रकार किसी साध्यरूप धर्मी में प्रत्यक्ष प्रमाण द्वारा हेतु के प्रसिद्ध हो जाने पर कहीं लिङ्गी का ज्ञान प्रवत होता