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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक * 216 यवबीजसंतानेन व्यभिचारस्तदंकुरसंताने क्वचित्साध्ये तद्वीजसंताने चोक्ष्यते तदंकुरसंतानेन यवबीजमात्ररहितदेशस्थेनेति न मंतव्यं विशिष्टदेशकालाद्यपेक्षस्य तदुभयस्यान्योन्यमविनाभावसिद्धेः स्वसाध्ये धूमादिवत्। धूमावयविसंतानो हि पावकावयविसंतानैरविनाभावी देशकालाद्यपेक्ष्यैवान्यथा गोपालघटिकायां धूमावयविसंतानेन व्यभिचारप्रसंगात्। संतानयोरुपकार्योपकारकभावोपि न शंकनीयः पावकधूमावयविसन्तानयोस्तदभावप्रसंगात्। न चैवं वाच्यं, तयोनिमित्तानिमित्तभावोपगमात् / पावकधूमावयविद्रव्ययोर्निमित्तानिमित्तभावसिद्धेस्तत्संतानयोरुपचारनिमित्तभाव इति चेन्न, शंका : ऊसर भूमि में स्थित जौ के बीजों की संतान से व्यभिचार आता है अर्थात् जब तक जौ पर्याय रहेगी तब तक जौ का सदृश परिणाम होती हुई संतान चलेगी। उन जौ के अंकुरों की संतान को साध्य करने पर और उन जौ के बीजों की संतान को हेतु बनाने पर ऊसर भूमि में बोये गये जौ के बीजों की संतान से व्यभिचार आता है तथा कहीं जौ के बीजों की संतान को साध्य बनाकर और जौ के अंकुरों की संतान को हेतु बनाने पर सामान्यरूप जौ के बीजों से रहित देश में स्थित उन जौ के अंकुरों की संतान करके भी व्यभिचार आता है। अर्थात् ऊसर भूमि में पड़े हुए जौ अपने कार्य अंकुरों को उत्पन्न नहीं करते हैं। इस प्रकार साध्य के न रहने पर हेतु के रह जाने से व्यभिचार दोष आता है। ___समाधान : ऐसा नहीं कहना चाहिए क्योंकि विशिष्ट देश, विशिष्ट काल तथा विशेषरूप आकृति आदि की अपेक्षा से उन कार्य कारणों के उभय का परस्पर में अविनाभाव सिद्ध है जैसे कि अपने साध्य अग्नि आदि को साधने में देश आदिक की अपेक्षा से धूम आदिक सद्धेतु माने गए हैं। ___ धूम स्वरूप अवयवी का उत्तरोत्तर पर्यायों में धूमस्वरूप सदृशपरिणमन धूमसंतान नियम से विशेष देश, काल, अवस्था आदि की अपेक्षा रखता हुआ ही अग्निस्वरूप अवयवी के उत्तरोत्तर समयों में परिणत हुई अग्निरूप संतानों के साथ अविनाभाव रखता है। अन्यथा (विशेषणों की अपेक्षा न रखकर) चाहे जिस धूम से अग्नि की ज्ञप्ति मानी जाएगी तो ग्वालिया की घड़िया या इन्द्रजालिया के घड़े में अग्नि के बिना धूमरूप अवयवी की संतान के ठहर जाने से व्यभिचार का प्रसंग आयेगा। इस प्रकार प्रायः सभी सद्धेतु व्यभिचारी बन जाएंगे। संतानों में परस्पर उपकारी उपकृतपना नहीं है। यह शंका भी नहीं करनी चाहिए क्योंकि ऐसा मानने पर अग्निरूप अवयवी की संतान और धूमस्वरूप अवयवी की संतान में भी उपकार्य उपकारकभाव के अभाव का प्रसंग आएगा किन्तु इस प्रकार धूम और अग्नि की संतानों में कार्यकारणभाव का अभाव नहीं कहना चाहिए, क्योंकि उनमें निमित्त-नैमित्तिकभाव विद्वानों ने स्वीकार किया है। अग्नि और धूमस्वरूप अवयवी द्रव्य में निमित्त नैमित्तिकभाव सिद्ध है। अत: उनकी संतानों में भी उपचार से निमित्त नैमित्तिकभाव मान लिया गया है। वस्तुत: संतानों मे उपकार्य उपकारकभाव नहीं है। ऐसा नहीं कहना चाहिए क्योंकि उन व्यक्तियों से भिन्न धूमसंतान और अग्निसंतान सिद्ध नहीं हैं। अर्थात् निमित्त अग्निसंतान से नैमित्तिक धूमसंतान की उत्पत्ति होना सिद्ध है।
SR No.004286
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2010
Total Pages438
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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