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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 191 आत्माभावो हि भस्मादौ तत्कार्यस्यासमीक्षणात्। सिद्धः प्राणाद्यभावश्च व्यतिरेकविनिश्चयः // 166 / / वाक्रियाकारभेदादेरत्यंताभावनिश्चितः। निवृत्तिनिश्चिता तज्ज्ञैः चिंता व्यावृत्तिसाधनी // 167 // सर्वकार्यासमर्थस्य चेतनस्य निवर्तनं / ततश्चेत्केन साध्येत कूटस्थस्य निषेधनम् // 16 // ___ यथा हि सर्वकारणासमर्थं चैतन्यं कार्याभावाद्भस्मादौ निषेद्धुमशक्यं तथा कूटस्थमपि क्रमयोगपद्याभ्यामर्थक्रियाविरोधात्॥ क्षणिकत्वेन न व्याप्तं सत्त्वमेवं प्रसिद्ध्यति। संदिग्धव्यतिरेकाच्च ततोसिद्धिः क्षणक्षये // 169 // चेतनाचेतनार्थानां विभागश्च न सिद्ध्यति। चित्तसंताननानात्वं निजसंतान एव वा // 170 // न वेद्यवेदकाकारविवेकोत: स्वसंविदः। सर्वकार्येष्वशक्तस्य स त्वसंभवभाषणे // 171 // रूप व्यतिरेक की विशेषता से निश्चय किया गया है। (आत्मा के वचन, क्रिया, आकार, भोग, चेष्टा आदि विशेषों का भस्म आदि में अत्यन्ताभाव निश्चित है), अत: उस आत्मतत्त्व को जानने वाले विद्वानों के द्वारा भस्म आदि में आत्मा के साथ प्राणादि की निवृत्ति निश्चित कर दी गई है। व्यतिरेक व्याप्ति को जानने वाला व्याप्तिज्ञान साध्य और साधन की व्यावृत्ति को साध देता है॥१६५-१६६-१६७।। ___यदि सर्व कार्य करने में असमर्थ चेतन का निवर्तन किया जाता है तो फिर कूटस्थपने का निषेध करना किसके द्वारा सिद्ध होगा // 168 // - जिस प्रकार सम्पूर्ण कार्यों के करने में असमर्थ चैतन्य को भस्म आदि में कार्य का अभाव होने से, निषेध करने के लिए अशक्य है (अर्थात्-भस्म, मृतशरीर आदि में वचन, श्वास आदि कार्यों को करने वाले चैतन्य का अभाव है)। किन्तु सभी कार्यों को करने में असमर्थ चैतन्य का निषेध नहीं किया जा सकता है। उसी प्रकार कूटस्थपन का भी भस्म, आत्मा, शब्द आदि में क्रम और युगपत् अर्थक्रिया का विरोध हो जाने के कारण निषेध नहीं किया जा सकता (अर्थात् कूटस्थ नित्य वा सर्वथा क्षणिक से खेत में प्राप्त हुई भस्म अब खात होकर अन्न स्वरूप पर्यायों को धारण नहीं कर सकती, अत: सर्वथा नित्य वा क्षणिक सिद्ध नहीं हो सकता)। ___ इस प्रकार क्षणिक एकत्व से व्याप्त सत्त्व सिद्ध नहीं है, क्योंकि क्षणक्षयी पदार्थ में संदिग्ध और व्यतिरेक होने से सत्त्व हेतु असिद्ध है अर्थात् सत्त्व हेतु से क्षणिकत्व सिद्ध होने का अभाव है॥१६९॥ बौद्धों के यहाँ चेतन और अचेतन अर्थों का विभाग करना भी सिद्ध नहीं होता है तथा विज्ञानरूप चित्त की अनेक संतानें नहीं बन सकेंगी। अथवा अपने निज की कोई संतान ही नहीं बन सकेगी। अर्थात् क्षणिक दर्शन में चेतना, चेतन पदार्थ का विभाग, चित्त संतान का नानापना और स्वकीय निज संतान की सिद्धि नहीं हो सकती॥१७०॥ .. सभी कार्यों में अशक्त होरहे पदार्थ का सद्भाव करने में स्वसंवेदनज्ञान का इस वेद्याकार और वेदकाकार से पृथक् भाव सिद्ध नहीं हो सकेगा॥१७१।। अर्थात् विज्ञानाद्वैतवादी के स्वसंवेदन में वेद्य-वेदक भाव नहीं हो सकते, क्योंकि शुद्ध ज्ञान में वेद्य-वेदक भाव नहीं है। चेतन पदार्थों में अचेतन पदार्थ नहीं है,
SR No.004286
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2010
Total Pages438
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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