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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक * 188 पर्णकोयं स्वसद्धेतुर्बलादाहेति दूरगे। कार्यकारणभावस्याभावेपि सहभाविता // 160 // पित्रोर्ब्राह्मणता पुत्रब्राह्मण्ये पक्षधर्मकः। सिद्धो हेतुरतो नायं पक्षधर्मत्वलक्षणः॥१६१॥ नन्वाकाशकालादेर्धर्मित्वे भविष्यच्छकटोदयपल्वलोदकनैर्मल्यादेः साध्यत्वे कृत्तिकोदयत्वागस्त्युदयादेहेतुत्वे पक्षधर्मत्वयुक्तस्यैव हेतुत्वमतो नापक्षधर्मत्वलक्षणो हेतुः कश्चिदिति चेत् , किमेवं चाक्षुषत्वादि: शब्दानित्यत्वहेतुर्न स्यात्? न हि जगतो वा धर्मचाक्षुषत्वं महानसधूमः पक्षधर्मः। तथाहि-शब्दानित्ययोगि जगच्चाक्षुषत्वयोगित्वात् महोदधि जगन् महानसधूमयोगित्वादिति कथं न चाक्षुषत्वं शब्दानित्यत्वं साधयेत् महानसधूमो वा महोदधौ वह्नि तथा त्वया संभवादिति चेत् कृत्तिकोदयादेः कुतोन्वयसंभवः के बल से यह वट का वृक्ष है-इस प्रकार यह ज्ञान हो जाता है अतः अपने साध्य को सिद्ध कराने में सद्धेतु कहा गया है। यहाँ दूर में सूखे पड़े हुए पत्ते और वृक्ष का वर्तमान में कार्यकारण भाव सम्बन्ध न होने पर भी सहभाविता ग्रहण कर ली जाती है। इस हेतु में भी पक्षधर्मत्व नहीं है॥१६०॥ यह लड़का ब्राह्मण है क्योंकि इसके माता-पिता ब्राह्मण हैं। मातापिता का ब्राह्मणत्व माता-पिता में है और पक्ष कोटि में पुत्र है अत: पक्षधर्मत्वशून्य भी यह हेतु सिद्ध है। अत: यह वर्तना हेतु का निर्दोष लक्षण नहीं है॥१६१॥ शंका : आकाश, काल, देश आदि को धर्मी मान लेने पर और भविष्य में होने वाले रोहिणी उदय या वर्तमान में सरोवर के पानी की निर्मलता आदि को साध्य तथा कृत्तिकोदयपना, अगस्ति तारा का उदय, आदि को हेतु करने पर पक्षधर्मत्व लक्षण से युक्त ही को हेतुपना सिद्ध होता है अत: कोई भी हेतु पक्षधर्मत्व से रहित नहीं है। समाधान : इस प्रकार बौद्धों के कहने पर तो चाक्षुषता आदि भी शब्द की अनित्यता साधने का हेतु क्यों न होंगे? अवश्य होंगे। अत: जगत् का धर्म चाक्षुषत्व नहीं है-ऐसा नहीं समझना चाहिए। अर्थात् जगत् का धर्म चाक्षुषत्व ही है तथा रसोईघर का धुआँ भी जगत् रूप पक्ष का धर्म है। इसी को अनुमान द्वारा सिद्ध करते हैं। जगत् शब्द अनित्यता को धारने वाला है। क्योंकि नेत्र इन्द्रियजन्य प्रत्यक्ष के विषयपन को धारने वाला होने से; दूसरा अनुमान महान् बड़वानल को धारने वाले समुद्र से सहित जगत् अग्निमान है, रसोईघर के धुआँ का सम्बन्धी होने से। इस प्रकार चाक्षुषप्ना हेतु शब्द की अनित्यता को क्यों नहीं सिद्ध करेगा? अथवा रसोई घर का धुआँ (हेतु) महासमुद्र में अग्नि को क्यों नहीं सिद्ध करेगा? क्योंकि जगत् को पक्ष करने पर यह घटित हो जाता है। बौद्ध कहते हैं कि इस प्रकार चाक्षुषत्व के शब्द के अनित्यत्व के साथ अन्वय नहीं है, और महानस धूम का समुद्र की अग्नि के साथ अन्वय असम्भव है अतः हेतु का पहला रूप पक्षवृत्तिपना होते हुए भी दूसरा रूप सपक्षवृत्तिपना नहीं घटित होने से वे समीचीन हेतु नहीं हैं। इसके प्रत्युत्तर में जैन आचार्य कहते हैं कि यदि ऐसा है तो कृत्तिकोदय आदि को आकाशरूप पक्ष में बौद्धों ने अन्वय की संभावना कैसे मान
SR No.004286
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2010
Total Pages438
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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