________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 174 विरुध्यते, तल्लक्षणवाक्ये वाक्यांतरोपप्लवात् / न तु नैक लक्षणाल्लिंगाल्लिंगिनि ज्ञानमनुमानं यदभिनिबोधशब्देनोच्यते। किं तर्हि। त्रिरूपाल्लिंगादनुमेये ज्ञानमनुमानमिति परमतमुपदर्शयन्नाह;निश्चितं पक्षधर्मत्वं विपक्षे सत्त्वमेव च / सपक्ष एव जन्मत्वं तत्त्रयं हेतुलक्षणम् // 124 // केचिदाहुर्न तद्युक्तं हेत्वाभासेपि संभवात् / असाधारणतापायाल्लक्षणत्वविरोधतः॥१२५॥ असाधारणो हि स्वभावो भावलक्षणमव्यभिचारादग्नेरौष्ण्यवत् / न च त्रैरूप्यस्यासाधारणता तद्धेतौ तदाभासेपि तस्य समुद्भवात्। ततो न तद्धेतुलक्षणं युक्तं पंचरूपत्वादिवत्। कुत एव तदित्युच्यते;वक्तृत्वादावसार्वज्ञसाधने त्रयमीक्ष्यते। न हेतुत्वं विना साध्याभावासंभूष्णुतां यतः॥१२६॥ इदमिह संप्रधार्य त्रैरूप्यमानं वा हेतोर्लक्षणं विशिष्टं वा त्रैरूप्यमिति? प्रथमपक्षेन समाधान : पक्ष धर्मत्व, सपक्षसत्त्व और विपक्ष व्यावृत्ति, इन तीन रूप वाले लिङ्ग से अनुमान करने योग्य साध्य में ज्ञान होना अनुमान कहा गया है। बौद्धों के इस मत का खण्डन करते हुए आचार्य उत्तरपक्ष का स्पष्ट कथन करते हैं कि ये तीनों लक्षण तो हेत्वाभास में भी पाये जाते हैं। संदिग्ध साध्य वाले पक्ष में निश्चितरूप से वृत्ति होना और निश्चित साध्याभाववाले विपक्ष में हेतु का असत्त्व होना तथा निश्चित साध्य वाले सपक्ष में आधार-आधेयभाव रूप से जन्म लेकर रहना ये तीनों ही हेतु के लक्षण हैं ऐसा कोई बौद्ध कहते हैं, परन्तु इस प्रकार (बौद्ध) का कथन रूप (पक्ष धर्मत्व, सपक्षसत्त्व और विपक्ष व्यावृत्ति ये तीनों) हेतु का लक्षण-युक्तिपूर्ण नहीं है क्योंकि वह लक्षण हेत्वाभास में भी सम्भव है। लक्ष्य के अतिरिक्त अन्य पदार्थों में नहीं रहने वाले असाधारणधर्म को लक्षण कहते हैं। असाधारणपना न होने से त्रैरूप्य को हेतु के लक्षणपने का विरोध है॥१२४-१२५॥ अग्नि की उष्णता के समान अव्यभिचारी होने से असाधारण स्वभाव भाव ही लक्ष्य का लक्षण है। परन्तु बौद्धों द्वारा माने गये हेतु के त्रैरूप्य को असाधारणपना नहीं है, क्योंकि इस हेतु में और उसके आभासरूप हेत्वाभास में भी उस त्रैरूप्य की उपपत्ति होना दृष्टिगोचर होता है। अत: त्रैरूप्य को हेतु का लक्षण मानना युक्त नहीं है, जैसे कि पक्षसत्त्व, सपक्षसत्त्व, विपक्षव्यावृत्ति असत्प्रतिपक्षपना और अबाधितपना इन पाँच रूपों का धर्म पाञ्चरूप्य या उक्त चार रूपों का धर्म चातुरूप्य आदिक हेतु के लक्षण नहीं हैं। वह त्रैरूप्य हेतु का लक्षण नहीं है, यह कैसे जाना? ऐसी जिज्ञासा होने पर आचार्य उत्तर देते हैं बुद्ध को असर्वज्ञपना सिद्ध करने में वक्तापन, पुरुषपन आदि हेतुओं में वे तीनों रूप देखे जाते हैं, किन्तु साध्य के न रहने पर हेतु का नहीं होनापनरूप अन्यथानुपपत्ति के बिना वक्तृत्व आदि में हेतुपना नहीं है। हेतु के त्रैरूप्यलक्षण का वक्तृत्व आदि में व्यभिचार है, अत: त्रैरूप्य हेतु में असाधारण धर्म का अभाव होने से वह लक्षण नहीं बन सकता॥१२६॥ यहाँ पर यह विचार करने योग्य है कि सामान्यरूप से (यानी विशेषपन से रहित) त्रैरूप्य को हेतु का लक्षण मानते हैं? या किसी विशेषण से सहित इस त्रैरूप्य को हेतु का लक्षण कहते हैं? पहला पक्ष लेने