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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 9 * विद्यानन्दाचार्य ने परमाणु से लेकर महास्थूलकाय तक पुद्गल तथा अनन्तानन्त जीव तथा धर्मादि द्रव्यों में छह द्रव्य और सात तत्त्वों की जो सिद्धि की है वह भव्यप्राणी के अन्तस्तल का स्पर्श करने वाली है। इनके गुणों का मन के द्वारा चिन्तन कर अपने परिणामों की विशुद्धि कर सकते हैं, अन्य कोई उपाय नहीं है। उनके चरणों में शत-शत वन्दन, शत-शत नमन, शत-शत अर्चन। इस कठिन ग्रन्थ के अथक परिश्रम पूर्वक सम्पादन और संशोधनकर्ता श्रीमान् पण्डित महोदय चेतनप्रकाश जी पाटनी को शुभाशीर्वाद है कि उनके आत्मचिन्तन रूप धर्म्यध्यान और ज्ञान की वृद्धि हो और अन्त में समाधिमरण हो, यही मेरी कामना और भावना है। गत् 40 वर्षों से मेरे प्रत्येक कार्य में जो सहयोगी रही हैं, अहर्निश मन-वचन काय से सेवा में तत्पर रही हैं, शारीरिक शक्ति क्षीण होने पर भी आर्यिका पद को स्वीकार कर जो अपने धर्म्यध्यान में लीन रहती हैं ऐसी आर्यिका श्री गौरवमती जी के संयम, ध्यान, ज्ञान की उत्तरोत्तर वृद्धि हो। वे यथाशक्ति तपश्चरण करके स्त्रीपर्याय का छेद करके स्वर्ग में उत्पन्न हों और वहाँ से च्युत होकर मनुष्यभव प्राप्त कर मोक्ष को प्राप्त करें, यही मेरी कामना, भावना और आशीर्वाद है। ग्रन्थप्रकाशन में सहयोगी श्री पन्नालालजी एवं श्रीमती सरोज पाटनी को तथा उनके परिवार को शुभाशीर्वाद / उनके जीवन में धार्मिक कार्यों की वृद्धि हो, अन्त में समाधिमरण हो, यही आशीर्वाद है। - आर्यिका सुपार्श्वमती
SR No.004286
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2010
Total Pages438
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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