________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक * 373 ना निवासलक्षणं क्षेत्रं पदार्थानां न वास्तवम् / स्वस्वभावव्यवस्थानादित्येके तदपेशलम् // 37 // राज्ञः सति कुरुक्षेत्रे तन्निवासस्य दर्शनात् / तस्मिन्नसति चादृष्टे वास्तववस्याप्रबाधनात् // 38 // नन्वेवं राज्ञः कुरुक्षेत्रं कारणमेव तत्र निवसनस्वभावस्य तस्य तेन जन्यमानत्वादिति चेत् किमनिष्ट, कारणविशेषस्य क्षेत्रत्वोपगमात् कारणमात्रस्य क्षेत्रत्वेतिप्रसंगः॥ प्रमाणगोचरस्यास्य नावस्तुत्वं स्वतत्त्ववत् / नानुमागोचरस्यापि वस्तुत्वं न व्यवस्थितम् // 39 // न वास्तवं क्षेत्रमापेक्षिकत्वात् स्थौल्यादिवदित्ययुक्तं, तस्य प्रमाणगोचरत्वात् स्वतत्त्ववत् / न ह्यापेक्षिकमप्रमाणगोचरः सुखनीलेतरादेः प्रमाणविषयत्वसिद्धेः / संविन्मात्रवादिनस्तस्यापि तदविषयत्वमिति // संख्या और विधान में व्यापक व्याप्य भेद है अतः विधान से अतिरिक्त संख्या का उपदेश देना युक्तिसंगत है और वह. तत्त्वार्थों के विशद रूप से ज्ञान कराने में निमित्त कारण है। यहाँ तक संख्या का व्याख्यान कर दिया गया है। अब क्षेत्र का प्ररूपण करते हैं। पदार्थों का निवास लक्षण क्षेत्र वास्तविक नहीं है क्योंकि सम्पूर्ण पदार्थ स्वकीय-स्वकीय स्वरूप में व्यवस्थित रहते हैं। ऐसा कोई (सौगत मतानुयायी) कहते हैं। जैनाचार्य कहते हैं कि ऐसा कहना भी अपेशल (सुन्दर नहीं) है॥३७॥ वास्तविक कुरुक्षेत्र के होने पर ही यहाँ निवास करने वाले राजा का दर्शन होता है। तथा कुरुक्षेत्र के नहीं होने पर राजा का निवास नहीं देखा जाता है अत: वास्तविक क्षेत्र किसी प्रमाण से बाधित नहीं है॥३८॥ ... प्रश्न : इस प्रकार कुरुक्षेत्र राजा का ही कारण है क्योंकि वहाँ कुरुक्षेत्र में उस राजा के निवसन स्वभाव का जन्यमानत्व है अर्थात् कुरुक्षेत्र में उस राजा के निवास करना रूप स्वभाव की क्षेत्र रूप से उत्पत्ति होती है अतः राजा के क्षेत्र में आ जाने पर क्षेत्र स्थिति राजा की परिणति का उत्पादक कारण है। कारण से अतिरिक्त क्षेत्र कोई वस्तुभूत नहीं है। ____उत्तर : जैनाचार्य कहते हैं कि यह कथन हमको (जैनों को) अनिष्ट क्यों है ? अर्थात् अनिष्ट नहीं है क्योंकि कारण विशेष को हमने क्षेत्ररूप से स्वीकार किया है। कारण मात्र को क्षेत्र मानने में अति प्रसंग दोष आता है अतः कथञ्चित् कारण विशेष को क्षेत्र कहना हमें (जैनाचार्यों को) अभीष्ट ही है। स्वतत्त्व के समान प्रमाण गोचर (समीचीन ज्ञान का विषयभूत) यह क्षेत्र अवस्तु नहीं है। तथा अनुमान गोचर (अनुमान प्रमाण का विषय) होने से इस क्षेत्र के वस्तुत्व व्यवस्थित नहीं है (कल्पित है) ऐसा भी नहीं कह सकते // 39 // “आपेक्षिकत्व (क्षेत्र की अपेक्षा कल्पित) होने से निवासस्थान रूप क्षेत्र वास्तविक नहीं है। जैसे स्थूलत्व (स्थूलपना), छोटापना आदि कल्पित होने से वास्तविक नहीं हैं।" ऐसा कहना युक्तिसंगत नहीं है। क्योंकि प्रमाण का विषय होने से क्षेत्र पारमार्थिक है। जैसे समीचीन ज्ञान का विषय होने से स्वकीय अभीष्ट तत्त्व वास्तविक है।