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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक * 345 जीवत्वसाधन: व्यवहारादौपशमिकादिभावसाधनश्च, निश्चयत: स्वप्रदेशाधिकरणो व्यवहारतः शरीराद्यधिकरणः, निश्चयतो जीवनसमयस्थितिः व्यवहारतो द्विसमयादिस्थितिरनाद्यवासनस्थितिर्वा, निश्चयतोनंतविधान एव व्यवहारतो नारकादिसंख्येयासंख्येयानंतविधानश्च / प्रमाणतस्तदुभयनयपरिच्छित्तिरूपसमुदायस्वभाव इत्यादयो जीवादिष्वप्यागमाविरोधान्निर्देशादीनामुदाहरणमवगंतव्यम् // न केवलं निर्देशादीनामधिगमस्तत्त्वार्थानां किं तर्हि; सत्संख्याक्षेत्रस्पर्शनकालांतरभावाल्पबहुत्वैश्च // 8 // परिणामों का स्वामी है। व्यवहार नय से परद्रव्य के सम्बन्ध के निमित्त से होने वाले क्रोधादि सभी परिणामों का स्वामी है, तथा उपचरित असद्भूत व्यवहार नय से घर, पुत्र, स्त्री, गाय, भैंस आदि का भी स्वामी है। निश्चयनय से जीव का साधन स्वकीय ज्ञान दर्शन आदि जीवत्व ही है, स्वभाव भाव का ही आत्मा साधन (कारण) है जो कि पारिणामिक भाव है और व्यवहार नय से उपशम सम्यक्त्व, क्रोधादि विभाव भाव का आत्मा साधन है, कारण है अथवा इनके द्वारा जीव की सिद्धि होती है इनमें ही दश प्राणगर्भित हैं। निश्चय से जीव का अधिकरण स्वकीय आत्मप्रदेश ही हैं क्योंकि निश्चय नय से आत्मा अपने प्रदेशों में ही रहती है और व्यवहार नय से शरीर, घर, भूमि आदि भी जीव के अधिकरण हैं। निश्चय नय से अनादिकाल से अनन्त काल तक जीवित रहने के समयों तक जीव की स्थिति है अर्थात् आत्मा अनादि काल से अनन्त काल तक रहता है। व्यवहार नय से दो समय से लेकर अनादि अवसान सहित है अर्थात् एक पर्याय में रहने के कारण जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट तैंतीस सागर प्रमाण स्थिति है अथवा दश प्राणों का धारक आत्मा अनन्त काल तक रहता है। निश्चय नय से जीव अनन्त प्रकार का है और व्यवहार नय से नरकादि गतियों के भेद से संख्यात, असंख्यात और अनन्त प्रकार के हैं अर्थात् इस प्रकार जीव, अजीव, आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा, मोक्ष रत्नत्रय आदि के भी निर्देश आदि कथन करना चाहिए। तथा प्रमाण से यह जीव उन निश्चय और व्यवहार दोनों नयों के द्वारा उत्पन्न ज्ञप्ति स्वरूप के विषयभूत समुदायों का स्वभाव है अर्थात् आत्मा ज्ञान स्वरूप है, यह जीव का निर्देश है। इस प्रकार निर्देश आदि छहों अनुयोगों का जीव, अजीव आदि सातों तत्त्वों में आगम के अविरोध से निर्देश आदि का उदाहरण जानना चाहिए अर्थात् संक्षेप से जीवादि पदार्थों का अधिगम प्रमाण और नयों के द्वारा होता है और विस्तार से इस निर्देश आदि के द्वारा जानना चाहिए। केवल निर्देश आदि के द्वारा ही जीवादि पदार्थों का अधिगम नहीं होता है, तो जीवादि पदार्थों के जानने के दूसरे उपाय कौन से हैं ? ऐसी जिज्ञासा होने पर कहते हैं: सत् , संख्या, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अन्तर, भाव और अल्पबहुत्व के द्वारा भी जीवादि पदार्थों का अधिगम होता ह॥८॥
SR No.004285
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2010
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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