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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक * 265 सकलादेशत्वमस्तु / विवक्षितास्तित्वमुखेन शेषानंतधर्मात्मनो वस्तुनस्तथावृत्त्या कथनात् / स्यान्नास्त्येवेत्यस्य च नास्तित्वमुखेन, स्यादवक्तव्यमेवेत्यस्यावक्तव्यत्वमुखेन, स्यादुभयमेवेत्यस्य च क्र मार्पितोभयात्मकत्वमुखेन, स्यादस्त्यवक्तव्यमेवेत्यस्य चास्त्यवक्तव्यत्वमुखेन, स्यान्नास्त्यवक्तव्यमेवेत्यस्य च नास्त्यवक्तव्यत्वमुखेन स्यादुभयावक्तव्यमेवेत्यस्य चोभयावक्तव्यत्वमुखेनेति प्रत्येकं सप्तानामपि वाक्यानां कुतो विकलादेशत्वं ? प्रथमेनैव वाक्येन सकलस्य वस्तुनः कथनात् द्वितीयादीनामफलत्वमिति चेत् , तदाप्येकसप्तभंग्या सकलस्य वस्तुनः प्रतिपादनात् परासां सप्तभंगीनामफलत्वं किं न भवेत् ? प्रधानभावेन स्वविषयधर्मसप्तकस्वभावस्यैवार्थस्यैकया सप्तभंग्या प्रकथनात् , स्वगोचरधर्मसप्तकांतराणामपराभिः सप्तभंगीभिः कथनान्न तासामफलत्वमिति चेत्, तर्हि प्रथमेन वाक्येन स्वविषयैकधर्मात्मकस्य वस्तुनः प्रधानभावेन कथनात् है ही, “इस एक भंग को भी सकलादेशपना सिद्ध हो जायेगा, क्योंकि विवक्षित अस्तित्व धर्मकी प्रधानता से शेष बचे हुए अनन्त धर्मात्मक वस्तु का अभेद वृत्ति या अभेदोपचार से कथन हो जायेगा, तथा 'स्यानास्ति' इस एक वाक्य के द्वारा नास्तित्व की प्रधानता से सम्पूर्ण वस्तु का कथन हो जाता है अतः 'कथंचित् नास्ति' यह पद भी सकलादेशी है। - स्यादवक्तव्यं' कथञ्चित् वस्तु अवक्तव्य है-इस अकेले पद को सकलादेशीपना है-क्योंकि अवक्तव्य की मुख्यता से सम्पूर्ण अनन्त धर्मात्मक वस्तु का अभेद वृत्ति या अभेद उपचार से कथन हो जाता है। इसी प्रकार कथञ्चित् अस्ति नास्ति रूप क्रम से अर्पित (विवक्षित) उभयात्मक वस्तु की मुख्यता से शेष अनन्त धर्मात्मक वस्तु का कथन हो जाता है। ‘कथञ्चित् अस्ति अवक्तव्य है' इस कथन के भी सकलादेशपना है-क्योंकि अस्ति अवक्तव्य की मुख्यता से सर्व अनन्त धर्मात्मक वस्तु का कथन हो जाता है। ___कथञ्चित् ‘नास्ति अवक्तव्य' इस अकेले वाक्य के भी सकलादेशीपना सिद्ध हो जाता है-क्योंकि नास्ति अवक्तव्य की मुख्यता से सकल अनन्त धर्मात्मक वस्तु का प्रतिपादन हो जाता है। 'कथञ्चित् अस्ति नास्ति अवक्तव्य' इस वाक्य के भी सकलादेशीपना है क्योंकि अस्ति नास्ति अवक्तव्य की मुख्यता से शेष अनन्त धर्मात्मक वस्तु का प्रतिपादन हो जाता है। इस प्रकार सातों ही वाक्यों / के पृथक्-पृथक् विकलादेशपना क्यों नहीं है? अर्थात् विकलादेशीपना भी है। प्रथम कथित 'स्याद् अस्ति' वाक्य के द्वारा सम्पूर्ण वस्तु का कथन हो जाने से 'नास्ति' आदि वाक्यों का कथन करना निष्फल हो जाता है। “ऐसा कहने पर तो एक सप्तभंगी के द्वारा सकल वस्तु का प्रतिपादन हो जाने से शेष सप्तभंगियों का कथन करना भी निष्फल क्यों नहीं होगा ? / यदि कहो कि स्वकीय विषयभूत सातों धर्म स्वरूप अर्थ का प्रधान रूप से एक सप्तभंगी के द्वारा कथन किया जाता है तथा स्वकीय विषयभूत अस्ति आदि सप्त धर्मों से पृथक्भूत अन्य एकत्व आदि धर्मों का दूसरी एकत्वादि सप्तभंगी के द्वारा कथन किया जाता है अत: उन अनेक सप्तभंगियों का कथन निष्फल नहीं है अर्थात् एकत्वादि सप्तभंगियाँ स्वकीय नियत धर्मों का मुख्यता से कथन करती हैं तब तो प्रथम वाक्य (स्याद् अस्ति) के द्वारा स्वकीय विषयभूत एक धर्म स्वरूप वस्तु का प्रधान रूप से निरूपण किया गया है और दूसरे (नास्ति) आदि वाक्यों
SR No.004285
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2010
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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