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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक *189 तदवस्थत्वादन्यथा सर्वत्रेदमुपलभे नेदमुपलभेहमिति विकल्पद्वयानुत्पत्तावपि दृष्टव्यवहारप्रसंगात्। तदन्यव्यवच्छेदविकल्पाभावेपीदानीं तेनानुभवननिश्चये तदेवानुमाननैष्फल्यमिति यत्किंचिदेतत्। एतेनानुमानादनुभवस्य पूर्वोत्तरक्षणव्यवच्छेदः सिद्ध्यतीति निराकृतं स्वतस्तेनाध्यक्षतो व्याप्तेरसिद्धः, परतोनुमानात् सिद्धावनवस्थाप्रसंगात् / विपक्षे बाधकप्रमाणबलाद्व्याप्तिः सिद्धेतिचेत् / किं तत्र बाधकं प्रमाणं? न तावदध्यक्षं तस्य क्षणिकत्वनिश्चायित्वेनाक्षणिकत्वे बाधकत्वायोगात् / नाप्यनुमानं क्षणिकत्वविषयं "तथा देखता हुआ भी नहीं देख रहा हूँ" इत्यादि ग्रन्थ वाक्य का विरोध वैसे का वैसा ही अवस्थित रहेगा अन्यथा सर्वत्र मैं इसको प्राप्त कर रहा हूँ देख रहा हूँ इसको प्राप्त नहीं कर रहा हूँ, इसको नहीं देख रहा हूँ , इस प्रकार दो विकल्पों के उत्पन्न न होने पर भी प्रत्यक्ष किये गये पदार्थों के निश्चय कराने का प्रसंग आयेगा। अर्थात् जैसे इतर पदार्थों का निषेध करने पर ही प्रकृत पदार्थों का निर्णय होता है-वैसे ही पूर्वोत्तर क्षणों का निषेध करने पर ही मध्यवर्ती परिणामों का अवधारण हो सकता है। यदि उन पूर्वोत्तर क्षणवर्ती ज्ञान क्षणों के अन्तराल का विकल्प नहीं होने पर भी वर्तमान क्षण में उस विकल्प के द्वारा केवल संवेदन के अनुभव का निश्चय कर लिया जाता है तो वही अनुमान ज्ञान की निष्फलता है इसलिए सौगत के कथन में कोई सार नहीं है। (व्यर्थ का बकवाद है)। ___ इस उपर्युक्त अनुमान के द्वारा “अनुभव के पूर्वोत्तर क्षणवर्ती परिणामों के व्यवधान की सिद्धि होती है" इसका भी निराकरण कर दिया है, क्योंकि अनुमान में व्याप्ति की आवश्यकता होती है। परन्तु स्वतः इस साध्य के साथ हेतु की प्रत्यक्ष प्रमाण रूप से व्याप्ति की असिद्धि है, अर्थात् सत्त्व आदि हेतुओं के साथ रहने वाला क्षणों का मध्यवर्ती अन्तराल प्रत्यक्ष गम्य नहीं है। तथा व्याप्ति सर्व देश और काल में रहने वाली है और प्रत्यक्ष सर्वदेश काल में नहीं रहता है। दूसरे अनुमान (दूसरों के द्वारा कथित अनुमान) से पूर्वोत्तर क्षण के मध्यवर्ती अन्तराल रूप साध्य की सिद्धि करने पर अनवस्था दोष का प्रसंग आता है अर्थात् उस अनमान को सिद्ध करने के लिए व्याप्ति की आवश्यकता होती है। . यदि कहो कि विपक्ष में बाधक प्रमाण के बल से व्याप्ति सिद्ध हो जाती है, तो वह बाधक प्रमाण क्या है ? उसमें प्रत्यक्ष ज्ञान तो बाधक हो नहीं सकता क्योंकि तुम्हारे सिद्धान्त में प्रत्यक्ष ज्ञान क्षणिकत्व का निश्चय करता है, अतः उसके अक्षणिकत्व में बाधा देने का अयोग है। क्षणिकत्व को विषय करने वाला अनुमान ज्ञान भी विपक्ष में बाधक प्रमाण नहीं है क्योंकि, स्वयं अनुमान में पूर्वोत्तर क्षणवर्ती मध्यम अन्तराल की व्याप्ति असिद्ध है। पूर्वोत्तर क्षण के मध्यवर्ती व्यवधान को सिद्ध करने वाले प्रथम अनुमान से इस क्षणिकत्व सिद्ध करने वाले अनुमान की व्याप्ति सिद्ध करोगे तो 'अन्योऽन्याश्रय' दोष आयेगा क्योंकि विपक्ष में हेतु के सद्भाव का बाधक अनुमान की उत्थापक व्याप्ति
SR No.004285
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2010
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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