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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक - 63 लौकिकमपि हि वचनमर्थं ब्रवीति, बोधयति, बुध्यमानस्य निमित्तं भवतीत्युच्यते वितथार्थाभ्यधायि च दृष्टमविप्रतिषेधात् / तद्यथार्थं ब्रवीति न तदा वितथार्थाभिधायि। यदा तु बाधकप्रत्ययोत्पत्तौ वितथार्थाभिधायि न तदा यथार्थं ब्रवीत्यविप्रतिषेधे वेदवचनेऽपि तथा विप्रतिषेधो मा भूत्, तत्र बाधकप्रत्ययोत्पत्तेरसंभवाद्विप्रतिषेध एवेति चेत्, नामिहोत्रात्स्वर्गो भवतीति चोदनायां बाधकसद्भावात् / तथाहि "नाग्निहोत्रं स्वर्गसाधनं हिंसाहेतुत्वात्सधनवधवत् सधनवधो वा न स्वर्गसाधनस्तत एवाग्निहोत्रवत्।" इस लोक में लौकिक जनों के वचन भी अर्थ को कहते हैं अर्थात् उन लौकिक शब्दों के द्वारा अर्थ का ज्ञान कराया जाता है। अर्थ को जानने वाले के लौकिक वचन निमित्त कारण होते हैं। अर्थात् उच्चारण किये गये शब्द श्रोता. के अर्थज्ञान में निमित्तकारण होते हैं। अतः शब्द की सत्यार्थ वाचकता को निमित्तपने के नियम का व्यभिचार है, तभी तो वे शब्द असत्यार्थ को कहने वाले भी देखे जाते हैं। अतः जैसे लौकिक वचनों में सत्यार्थ का नियम नहीं है, उसी प्रकार वेदवाक्यों में भी सत्यार्थ का नियम नहीं है। : जिस समय लौकिक जन यथार्थ कहते हैं, उस समय उनके वचन असत्य अर्थ को कहने वाले नहीं हैं और जिस समय लौकिक वचनों में बाधक कारणों की उत्पत्ति हो जाती है तब वे लौकिक वचन असत्य अर्थ को कहने वाले होते हैं, उस समय सत्य अर्थ को नहीं कहते हैं। इस प्रकार यदि विप्रतिषेध दोष का वारण किया जाय तो वेदवचन में भी उसी प्रकार विप्रतिषेध नहीं होगा अर्थात् वेदवाक्यों में भी लौकिक वचन के अनुसार वक्ता के कारण सत्यार्थपना और असत्यार्थपना होगा। .' लौकिक वचनों के समान वेदवाक्यों में बाधक कारणों की उत्पत्ति की असंभवता होने से वेदवाक्य असत्य अर्थ के वाचक हैं इसका विप्रतिषेध (निषेध) ही है (वेदवाक्य सत्यार्थ ही हैं) ऐसा कहना उचित नहीं है, क्योंकि ‘अग्निहोत्र नामक यज्ञ करने से स्वर्ग मिलता है' इस प्रेरक वेदवाक्य में बाधक प्रमाण का सद्भाव है- अर्थात् यह वेदवाक्य अनुमानबाधित है। 'तथाहिं' जैसे- धनवान का वध (घात) करने के समान हिंसा का कारण होने से अग्निहोत्र नामक यज्ञ स्वर्ग का साधन नहीं है। अथवा अग्निहोत्र के समान हिंसा का कारण होने से धनवान का वध करना स्वर्ग का कारण नहीं है। अर्थात् वेदवाक्य में अग्नि में पशुओं का होम करना स्वर्ग का कारण बताया है और खारपटिक मत में धनवानों का वध करना स्वर्ग का कारण लिखा है- परन्तु यह कथन अनुमानबाधित है क्योंकि हिंसा से स्वर्ग की प्राप्ति नहीं हो सकती है जैसे धनवानों को मारने से। अग्निहोत्र हिंसा का कारण है। उसमें हिंसा होती है- अतः हिंसा के कारणों को स्वर्ग का साधन बताने वाला वेदवाक्य अनुमान से बाधित है।
SR No.004284
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2007
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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