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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक - 49 तदयं प्रतिपत्ता स्वस्मिन् व्याहारादिकार्य रागित्वारागित्वयोः संकीर्णमुपलभ्य परत्र रागित्वनियमभावं साधयति न पुनररागित्वं / रागित्वं चेति ब्रुवाणः परीक्षकत्वमभिमन्यत इति किमपि महाद्भुतं / यथैव हि रागित्वाद्यतींद्रियं तथा तदनियतत्वमपीति / कुतशित्तत्साधने वीतरागित्वाधतिशयसाधनं साधीयः। ततोयमस्य प्रवचनस्य प्रणेताप्त इति ज्ञातुं शक्यत्वादाप्तमूलत्वं तत्प्रामाण्यनिबंधनं सिद्ध्यत्येव। ____ अथवानुमानमिदं सूत्रमविनाभाविनो मोक्षमार्गत्वलिंगान्मोक्षमार्गधर्मिणि सम्यग्दर्शनादित्रयात्मकत्वस्य साध्यस्य निर्णयात् / तथाहि, सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रात्मको मोक्षमार्गो मोक्षमार्गत्वान्यथानुपपत्तेः, न तावदत्राप्रसिद्धो धर्मी हेतुर्वा मोक्षवादिनामशेषाणामविप्रतिपत्तेः / मोक्षाभाववादिनस्तु प्रति तत्सिद्धेः प्रमाणतः करिष्यमाणत्वात् / यह वह संवेदन सत्ता का ज्ञाता अपने आप में रागसहितपने और वीतरागसहितपने से मिले हुए व्यवहारादि कार्य को जानकर दूसरे पुरुषों में केवल रागीपने के नियम का अभाव तो सिद्ध करता है परन्तु रागित्व एवं वीतरागित्व के अस्तित्व का नियम नहीं मानता है, ऐसा कहने वाला बौद्ध अपने परीक्षकपने का अभिमान करता है, यह भी एक बड़ा भारी आश्चर्य है। क्योंकि जिस प्रकार रागित्व और वीतरागित्व बहिरंग इन्द्रियों के द्वारा जानने योग्य नहीं है उसी प्रकार उनके अभाव का नियम करना भी अतीन्द्रिय है, अर्थात् जो पदार्थ इन्द्रियों के अगोचर है उनका अभाव भी इन्द्रियों का विषय नहीं है। फिर भी यदि किसी साधन से अतीन्द्रिय अभाव की सिद्धि की जाती है तो वीतरागित्व आदि अतिशयों का साधन करना भी सिद्ध होता है। इसलिए इस प्रवचन के प्रणेता आप्त हैं, ऐसा जानना शक्य होने से, आप्तमूल के होने से आगमप्रमाणपना सिद्ध हो ही जाता है, जो इसकी प्रमाणता का कारण है- अर्थात् यह तत्त्वार्थ सूत्र आप्तमूलक होने से इसके आगमप्रमाणपना सिद्ध है। अथवा- यह सूत्र अनुमान ज्ञान से भी प्रमाणभूत है, क्योंकि अविनाभावी मोक्षमार्गत्व हेतु से साध्यरूप मोक्षमार्ग रूप धर्मी में सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्वारित्र की एकता रूप साध्य का निश्चय किया जाता है। तथाहि-मोक्ष का मार्ग सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र रूप है, अन्यथा उसके मोक्षमार्गपना नहीं बन सकता; इस अनुमान में मोक्षमार्ग पने रूप हेतु अप्रसिद्ध भी नहीं हैं क्योंकि इस हेतु में (मोक्षमार्गपने में) मोक्ष को मानने वाले दार्शनिकों का विवाद नहीं है और जो मोक्ष को सर्वथा मानने वाले नहीं हैं, उनके प्रति तो मोक्ष की सिद्धि प्रमाणपूर्वक आगे करेंगे।
SR No.004284
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2007
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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