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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक- 15 न किंचिदनिष्टं, सूत्रकारेण तस्याप्रयोगात् सामर्थ्यागम्यमानस्यैव सूत्रसंदर्भेण समर्थनात् / द्वितीयपक्षे तु तस्याप्रयोगे प्रतिज्ञोपनयनिगमनप्रयोगविरोधः। प्रतिज्ञानिगमनयोरप्रयोग एवेति चेत्, तद्वत्पक्षधर्मोपसंहारस्यापि प्रयोगो मा भूत् / यत्सत्तत्सर्वं क्षणिकमित्युक्ते शब्दादौ सत्त्वस्य सामर्थ्यागम्यमानत्वात् / तस्यापि क्वचिदप्रयोगोऽभीष्ट एव “विदुषां वाच्यो हेतुरेव हि केवल" इति वचनात् / तर्हि सविस्तरवचने गम्यमानस्यापि सिद्धः प्रयोगः, संक्षिप्तवचनप्रवृत्तावेव तस्याप्रयोगात् / ततः क्वचिद्गम्यमानं सप्रयोजनत्वसाधनमप्रयुक्तमपि सकलशास्त्रव्याख्यानेन समर्थ्यते क्वचित्प्रयुज्यमानमिति नैकांतः, स्याद्वादिनामविरोधात् / सर्वथैकांतवादिनां तु न प्रयोजनवाक्योपन्यासो युक्तस्तस्याप्रमाणत्वात् / तदागमः प्रमाणमिति चेत् / प्रश्न - सर्वत्र गम्यमान (बिना कहे, अर्थापत्ति से जाने गये) प्रयोजन वाक्य का समर्थन सिद्ध हो जाने से उसको सिद्ध करने के लिए क्या हेतु का प्रयोग करने की आवश्यकता नहीं है ? उत्तर - संक्षिप्त (सूत्र रूप) से कथित शास्त्र की प्रवृत्ति में साधन के प्रयोग की आवश्यकता नहीं है कि सविस्तर शास्त्र की प्रवृत्ति में? यदि प्रथम पक्ष (संक्षिप्त शास्त्र की प्रवृत्ति में साधन के प्रयोग की आवश्यकता नहीं है ऐसा) स्वीकार करते हो तो हमें कोई बाधा नहीं है (हमको इष्ट ही हैं) क्योंकि सामर्थ्य से गम्यमान प्रयोजन वाक्य का सूत्र के संदर्भ से समर्थन हो जाने से सूत्रकार उमास्वामी आचार्य ने तत्त्वार्थसूत्र में कहीं पर भी प्रयोजनवाक्य का वचनों से प्रयोग नहीं किया है। परन्तु सविस्तर शास्त्र की प्रवृत्ति में यदि प्रयोजनवाक्य का प्रयोग नहीं किया जाता है तो उसमें प्रतिज्ञा, उपनय, निगमन के प्रयोग की विधि का भी विरोध आता है। प्रश्न - (बौद्ध) यदि प्रतिज्ञा और निगमन का विरोध आता है, तो प्रतिज्ञा और निगमन का ‘प्रयोग नहीं करना चाहिए? उत्तर - यदि तुम अनुमान ज्ञान का अंग प्रतिज्ञा और निगमन नहीं मानते हो तो 'प्रतिज्ञा और निगमन के समान पक्ष धर्म के उपसंहार (उपनय) का भी प्रयोग नहीं करना चाहिए।' 'जो सत् है वह सर्व क्षणिक है' इस प्रकार के शब्दादि के उच्चारण करने पर सत्त्व हेतु के सामर्थ्य से सत्त्व के क्षणिकपने का ज्ञान हो जाने से पुन: जो-जो सत्त्व होता है वह क्षणिक होता है, जैसे - विद्युत् आदि। इसमें विद्युत् आदि के द्वारा हेतु का उपसंहार क्यों किया जाता है। अर्थात् उपनय के कथन के बिना भी क्षणिकपना जाना जा सकता है। प्रश्न- (बौद्ध) कहीं-कहीं उपनय का भी अनुमान ज्ञान में प्रयोग नहीं करना इष्ट ही है? क्योंकि बौद्ध ग्रन्थों में लिखा है कि - 'विदुषां वाच्यो हेतुरेव हि केवलं' अनुमान के प्रयोग में विद्वानों के प्रति केवल हेतु का ही प्रयोग करना चाहिए। उत्तर - यदि विद्वानों के प्रति उपनय का कथन करना इष्ट नहीं है तो इस हेतु से सविस्तरित शास्त्र की प्रवृत्ति में गम्यमान प्रयोजन वाक्य का प्रयोग सिद्ध होता है और संक्षिप्त प्रवचन की प्रवृत्ति में उपनय के कथन का प्रयोग नहीं किया जाता है। यह हम (जैनधर्मावलम्बियों) को इष्ट ही है। अत: क्वचित् (संक्षिप्तग्रन्थ में) प्रकरण से गम्यमान (जाना हुआ) अकथित (मुख से नहीं कहे गये) सप्रयोजनत्व
SR No.004284
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2007
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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