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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक - 383 तस्याशून्यत्वेऽनेकांतादेव शून्यवादप्रवृत्तिः, शून्यस्य नि:स्वभावत्वात् / न स्वभावेनाशून्यता नापि परस्वभावेन शून्यता, खरविषाणादेरिव तस्य सर्वथा निर्णेतुमशक्तेः कुतोऽनेकांतसिद्धिरिति चेत्, तर्हि तत्त्वोपप्लवमात्रमेतदायातं शून्यतत्त्वस्याप्यप्रतिष्ठानात् / न तदपि सिद्ध्यत्यनेकांतमंतरेण तत्त्वोपप्लवमानेनुपप्लवसिद्धेः। तत्राप्युपप्लवे कथमखिलं तत्त्वमनुपप्लुतं न भवेत् ? ननूपप्लवमात्रेऽनुपप्लव इत्ययुक्तं, व्याघातादभावे भाववत् / तथोपप्लवो न तत्र साधीयांस्तत एवाभावेऽभाववत् / ततो यथा न सन्नाप्यसन्नभावः सर्वथा व्यवस्थापयितुमशक्तेः किं तहभाव एव, तथा तत्त्वोपप्लवोपि विचारात् कुतशिद्यदि सिद्धस्तदा न तत्र केनचिद्रूपेणोपप्लवो यदि निषेध रूप उस शून्य को अशून्यपना स्वीकार करते हैं तब शून्यवाद तो बन जायेगा किन्तु अशून्यपना भी आपके कहने से ही सिद्ध हो जावेगा। इस प्रकार अनेकान्तवाद से ही शून्यमत की प्रवृत्ति हो सकेगी। शंका- शून्यतत्त्व का गधे के सींग के समान निर्णय करना अशक्य होने से न तो तत्त्व स्व स्वभाव से अशून्य है और न परस्वभाव से शून्य है अतः अनेकान्तवाद की सिद्धि कैसे हो सकती है? उत्तर - जैनाचार्य कहते हैं कि ऐसा मानने पर तो केवल तत्त्वों का उपप्लव करना ही सिद्ध होता है। शून्यत्व की विधि (अस्ति) रूप से प्रतिष्ठा नहीं हो सकती। तथा तत्त्वों का अपलाप (उपप्लव) भी अनेकान्त के बिना सिद्ध नहीं हो सकता। क्योंकि तत्त्वों का अपलाप मात्र भी अनुपप्लव (खण्डित नहीं होता है, अस्ति स्वरूप है) है, ऐसा मानना ही पड़ेगा। यदि उपप्लव का भी उपप्लव (अपलाप अभाव) मानोगे तो सर्व तत्त्व अनुपप्लुत क्यों नहीं हो जायेंगे। अर्थात् सभी पदार्थों के उपप्लव का अपलाप है, अभाव है- तो स्वयं वस्तु अनुपप्लव सिद्ध हो जाती है। जैसे घट का अभाव रूप अघट अस्ति रूप है। अतः सर्वत्र अघटत्व की सिद्धि हो जाती उपप्लव मात्र में अनुपप्लव मानना युक्ति से रहित है- जैसे तुच्छाभाव को भाव स्वरूप मानने पर व्याघात दोष लगता है, वैसे उपप्लव को अनुपप्लव मानना व्याघात दोष से युक्त है। तथा उपप्लव यहाँ साध्य नहीं है। जैसे अभाव में अभाव की सिद्धि नहीं है। क्योंकि अभाव का पुनः अभाव नहीं कहा जा सकता है, उसी प्रकार उपप्लव को उपप्लव नहीं कहा जा सकता है। जैसे तुच्छाभाव न सत् रूप है और न असत् रूप है वह तुच्छाभाव रूप है। तुच्छाभाव को सर्वथा सत् वा असत् रूप से व्यवस्थापन करना शक्य नहीं है। शंका- जैनाचार्य कहते हैं कि तुच्छाभाव का स्वरूप क्या है? उत्तर - अभाव, अभाव स्वरूप ही है। उसमें अन्य विशेषणों का अभाव है। उसी प्रकार उपप्लव भी किसी विचार से (कारण से) सिद्ध हो जाता है तब तो वहाँ किसी भी चिद्रूप (स्वभाव) से उपप्लव नहीं है, अनुपप्लव भी नहीं है। अन्यथा (उपप्लव वा अनुपप्लव मानने पर) व्याघात दोष
SR No.004284
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2007
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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