________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्त्तिक- 348 कारणकारणविरुद्धोपलब्धिः, कस्यचिदात्मनो नास्ति दुःखमशेषं मुख्यसम्यग्दर्शनादिसद्भावादिति निक्षीयते, सकलदुःखाभावस्यात्यंतिकसुखस्वभावत्वात्तस्य च संसारनिवृत्तिफलत्वात् / यदा मोक्षः क्वचिद्विधीयते तदा कारणोपलब्धिरियं, क्वचिन्मोक्षोऽवश्यंभावी सम्यग्दर्शनादियोगात् / इति न कथमपि सूत्रमिदमयुक्त्यात्मकं, आगमात्मकत्वं तु निरूपितमेवं सत्यलं प्रपंचेन / _बंधप्रत्ययपाञ्चध्यसूत्रं न च विरुध्यते। प्रमादादित्रयस्यांतर्भावात्सामान्यतोऽयमे // 107 // त्रयात्मकमोक्षकारणसूत्रसामर्थ्यात्त्रयात्मकसंसारकारणसिद्धौ युक्त्यनुग्रहाभिधाने बंधप्रत्ययपंचविधत्वं 'मिथ्यादर्शनाविरतिप्रमादकषाययोगा बंधहेतव' इति सूत्रनिर्दिष्टं न विरुध्यत जब मोक्ष संसार की निवृत्ति का कार्य माना जाता है, तब यह हेतु कारणकारण विरुद्धोपलब्धिरूप है, क्योंकि किसी-न-किसी आत्मा के सम्पूर्ण दु:ख नहीं हैं क्योंकि उस आत्मा में प्रधानरूप से सम्यग्दर्शन आदि तीन गुण विद्यमान हैं। इस प्रकार प्रकृत हेतु कारणकारण विरुद्धोपलब्धि रूप निश्चित किया जाता है। सम्पूर्ण दुःखों के अभाव को आत्यन्तिक सुखस्वभावपना है और आत्मा का अनंत काल - तक सुखस्वभाव हो जाना संसार की निवृत्ति का फल है। तथा जब किसी आत्मा में सीधा मोक्ष का विधान किया जाता है तब तो यह विधिसाधक कारणोपलब्धि हेतु है कि किसी आत्मा में मोक्ष अवश्य होने वाला है क्योंकि उसमें सम्यग्दर्शन आदि गुणों का संबंध हो गया है। (वहाँ मोक्ष के कारण सम्यग्दर्शन आदि हैं। मोक्ष के सम्यग्दर्शन आदि कारक हेतु हैं और ज्ञापक हेतु भी हैं) इस प्रकार कैसे भी गृद्धपिच्छ महाराज का यह सूत्र अयुक्ति रूप नहीं है अर्थात् अनेक हेतुओं से सिद्ध होकर युक्तियों से परिपूर्ण है। और यह पहला सूत्र सर्वज्ञोक्त आगम स्वरूप तो है ही। इस बात का पहले प्रकरण में निरूपण कर चुके हैं। ऐसे भले प्रकार सूत्र की सिद्धि हो जाने पर अधिक विस्तार करने से कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं होता है। सामान्यपने में प्रमाद कषाय और योग अचारित्र में गर्भित हैं शंका - जब आप संसार और मोक्ष के कारण तीन मानते हैं तो आठवें अध्याय में पाँच प्रकार के बन्ध के कारणों वाले सूत्र से विरोध होगा? उत्तर में आचार्य कहते हैं कि- बंध के कारणों को पाँच प्रकार का कहने वाले सूत्र से विरोध भी नहीं आता है। क्योंकि बंध के कारणों को कहने वाले सूत्र में पड़े हुए प्रमाद, कषाय और योग तीनों का सामान्यरूप से असंयम (अचारित्र) में अन्तर्भाव हो जाता है। अतः मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान और मिथ्याचारित्र ये तीन ही संसार के कारण सिद्ध हैं॥१०७॥ सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र तीनों की एकता-स्वरूप मोक्ष के कारण को निरूपण करने वाले सूत्र के सामर्थ्य से तीन स्वरूप ही संसार के कारणों की सिद्धि में युक्तियों की सहायता का कथन करने पर मिथ्यादर्शन, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग ये पाँच बंध के कारण हैं। इस प्रकार सूत्र में कहे गये बंध के कारणों का पाँच प्रकारपना विरुद्ध नहीं होता है। क्योंकि प्रमाद आदि तीन (यानी प्रमाद, कषाय और योग) का सामान्यपने से अचारित्र में समावेश हो जाता है। अर्थात्- जैसे पहले गुणस्थान