________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक-४ तदप्यसारं, श्रेयोमार्गसमर्थनादेव वक्तुर्नास्तिकतापरिहारघटनात् / तदभावे सत्यपि शास्त्रारंभे परमात्मानुध्यानवचने तदनुपपत्तेः। 14. .. "शिष्टाचारपरिपालनसाधनत्वात्तदनुध्यानवचनं तत्सिद्धिनिबन्धनमिति केचित्।" तदपि तादृशमेव / स्वाध्यायादेरेव सकलशिष्टाचारपरिपालनसाधनत्वनिर्णयात् / ___ ततः शास्त्रस्योत्पत्तिहेतुत्वात्-तदर्थनिर्णयसाधनत्वाच्च परापरगुरुप्रवाहस्तत्सिद्धिनिबंधनमिति धीमतिकरम्। सम्यग्बोध एव वक्तुः शास्त्रोत्पत्तिज्ञप्ति निमित्तमिति चेन्न, तस्य गुरूपदेशायत्तत्वात्। श्रुतज्ञानावरणक्षयोपशमाद् गुरूपदेशस्यापायेऽपि श्रुतज्ञानस्योत्पत्तेर्न तत्तदायत्तमिति चेन्न, द्रव्यभावश्रुतस्याप्तोपदेशविरहे कस्यचिदभावात् / द्रव्यश्रुतं हि द्वादशांगं वचनात्मकमाप्तोपदेशरूपमेव, तदर्थज्ञानं तु भावश्रुतं, तदुभयमपि गणधरदेवानां भगवदर्हत्सर्वज्ञवचनातिशयप्रसादात् ऐसा कहना भी निस्सार है क्योंकि श्रेयोमार्ग के समर्थन से ही ग्रन्थकार के नास्तिकता का परिहार हो जाता है - क्योंकि श्रेयोमार्ग के समर्थन का अभाव होने पर परमात्मा के ध्यान करने का वचन कहने पर भी नास्तिकता का परिहार सम्भव नहीं था। कोई अन्य वादी कहते हैं कि शिष्टाचार के परिपालन का साधन होने से शास्त्र के प्रारम्भ में आप्त गुरुओं का ध्यान शास्त्र की सिद्धि का कारण है। इसके उत्तर में कहते हैं कि यह कथन भी उक्त कथन के समान निस्सार है, क्योंकि स्वाध्याय आदि से भी सकल शिष्टाचार पालन के साधनपने का निर्णय होता है। अब उक्त चारों उत्तरों में असन्तोष बतलाकर टीकाकार स्वयं उक्त शंका का समाधान करते हैं कि शास्त्र की उत्पत्ति का कारण होने से और शास्त्र के अर्थ के निर्णय का कारण होने से पर-गुरुओं और अपर-गुरुओं के प्रवाह का ध्यान शास्त्र की सिद्धि में कारण है, यह (समाधान) बुद्धिमानों को धैर्य उत्पन्न करने वाला है। शंका - वक्ता का सम्यग् (समीचीन) ज्ञान ही शास्त्र की उत्पत्ति और उसकी ज्ञप्ति (अर्थनिर्णय) का कारण है अर्थात् वक्ता के सम्यग्ज्ञान से ही शास्त्र की उत्पत्ति और शास्त्र का ज्ञान होता है (गुरुओं के ध्यान से नहीं)। उत्तर - यह कथन भी ठीक नहीं है क्योंकि वक्ता का सम्यग्ज्ञान भी गुरु के उपदेश के आधीन है, गुरूपदेश से ही ज्ञान की उत्पत्ति होती है। पुनः शंकाकार कहता है - श्रुतज्ञानावरण कर्म का क्षयोपशम होने पर गुरूपदेश के अभाव में भी श्रुतज्ञान की उत्पत्ति हो जाती है अतः वक्ता का सम्यग्ज्ञान गुरु के उपदेश के आधीन नहीं है। आचार्य उत्तर देते हैं - इस प्रकार