________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक - 2 घातिसंघातघातनोऽसौ, विद्यास्पदत्वात् / विद्यैकदेशास्पदेनाऽस्मदादिनाऽनैकान्तिक इति चेत्, न, सकलविद्यास्पदत्वस्य हेतुत्वाद् व्यभिचारानुपपत्तेः। प्रसिद्धं च सकलविद्यास्पदत्वं भगवतः सर्वज्ञत्वसाधनादतो नान्यः परमगुरुरेकान्ततत्त्वप्रकाशनाद् / दृष्टेष्ट-विरुद्ध-वचनत्वाद् अविद्यास्पदत्वादक्षीणकल्मषसमूहत्वाच्चेति न तस्याऽऽध्यानं युक्तम् / एतेनापरगुरुर्गणधरादिः सूरकारपर्यन्तो व्याख्यातस्तस्यैकदेशविद्यास्पदत्वेन देशतो घातिसंघात घातनत्व सिद्धेस्सामर्थ्यादपरगुरुत्वोपपत्तेः / का नाश कर देने से तीर्थंकरत्वश्री (समवसरण की विभूति एवं अनन्तचतुष्टयरूप श्री) से शोभायमान होने से वर्द्धमान भगवान तो परम गुरु हैं। जो परम गुरु नहीं है, वह घातिया कर्मों का नाशक भी नहीं है, जैसे - हम लोग। महावीर भगवान ने घातिया कर्मों का विनाश किया है, क्योंकि वे केवलज्ञानरूप विद्या के आश्रयस्थान हैं। शंका - एकदेश विद्या के स्वामी तो हम लोग भी हैं, परन्तु घातिया कर्मों के विनाशक नहीं हैं अत: घातिया कर्मों के विनाशक ही विद्या के स्वामी होते हैं, यह हेतु अनैकान्तिक (पक्ष', सपक्ष', विपक्ष तीनों में जाने से व्यभिचारी) है। समाधान - आपका ऐसा कहना उपयुक्त नहीं है, क्योंकि यहाँ सकल विद्यास्पदत्व को हेतु माना गया है, अत: व्यभिचार दोष नहीं बन सकता है। प्रभु परम गुरु हैं, मुनीन्द्र अपर गुरु हैं सर्वज्ञत्व की सिद्धि होने से वर्द्धमान भगवान के ही सर्वविद्या का आधारपना प्रसिद्ध है इसलिए वीतराग प्रभु ही परम गुरु हैं। एकान्त तत्त्व के प्रकाशक होने से, प्रत्यक्ष एवं अनुमान प्रमाण से विरुद्ध वचन वाले होने से, अविद्या के स्थान होने से और कर्म/कषाय क्षीण न होने से अन्य रागी-द्वेषी परम गुरु नहीं हैं। अत: श्लोकवार्तिक के प्रारम्भ में इन रागी-द्वेषी देवों का चिन्तन करना उपयुक्त नहीं है। ____ इस प्रकार गणधरदेव से लेकर सूत्रकार (उमास्वामी) पर्यन्त मुनीन्द्र अपर गुरु हैं क्योंकि उनके एकदेश विद्यास्पदत्व एवं एकदेश घातिकर्म के घातन का सामर्थ्य है - इसलिए अपर गुरु गणधरादि भी श्लोकवार्तिक के प्रारम्भ में ध्यान करने योग्य हैं। - . 1. जहाँ साध्य को सिद्ध करना अभिप्रेत है वह पक्ष कहलाता है क्योंकि साध्य को पक्ष कहते हैं। 2. साध्य के सदृश को सपक्ष कहते हैं। 3. साध्य से विपरीत को विपक्ष कहते हैं। पक्ष-सपक्ष-विपक्ष में जाने वाले हेतु को अनैकान्तिक हेत्वाभास कहते हैं।