________________ ॥श्रीमहावीरस्वामिने नमः॥ // श्रीपरमात्मने नमः॥ श्रीमद्विद्यानन्दस्वामिविरचितः तत्त्वार्थ-श्लोकवार्त्तिकालङ्कारः 卐 प्रथमोऽध्यायः // श्रीवर्धमानमाध्याय, घातिसङ्घातघातनम् / विद्यास्पदं प्रवक्ष्यामि, तत्त्वार्थ श्लोकवार्त्तिकम् // 1 // ... श्रेयस्तत्त्वार्थश्लोकवार्त्तिकप्रवचनात्पूर्व परापर-गुरुप्रवाहस्याऽऽध्यानं, तत्सिद्धिनिबन्धनत्वात् / तत्र परमो गुरुस्तीर्थंकरत्वधियोपलक्षितो वर्धमानो भगवान् पातिसंघातघातनत्वात् / यस्तु न परमो गुरुः, स न घातिसंघातयातनो, यथाऽस्मदादिः। मंगलाचरण एवं ग्रन्थ-रचना की प्रतिज्ञा ज्ञानावरणादि चार घातिया कर्मों के समूह के नाशक, विद्या यानी द्वादशाङ्ग वाणी के आस्पद अर्थात् उत्पत्तिस्थान ऐसे श्री वर्द्धमान भगवान का ध्यान/चिन्तन करके मैं तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक कहूंगा // 1 // तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक की सिद्धि का निमित्त होने से तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक की रचना के पूर्व, परगुरु-सर्वोत्कृष्ट तीर्थंकरों का, अपर गुरु-गणधर से लेकर पूरी गुरु-परम्परा का चिन्तन करना, उनके गुणों का चिन्तन करना श्रेयस्कर है। उन गुरुओं में घातिया (ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय, अन्तराय) कर्मों 1. 'तत्त्वार्थसूत्र' पर श्लोक (अनुष्टुप्छन्द) और वार्त्तिक में रचना करना।