________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक - 313 यस्मादुपक्रमविशेषात् कर्मणां फलोपभोगो योगिनोऽभिमतः स समाधिरेव तत्त्वतः संभाव्यते, समाधावुत्थापितधर्मजनितायामृद्धौ नानाशरीरादिनिर्माणद्वारेण संचितकर्मफलानुभवस्येष्टत्वात् / समाधिशारित्रात्मक एवेति चारित्रान्मुक्तिसिद्धेः सिद्धं स्याद्वादिनां मतं सम्यक्त्वज्ञानानंतरीयकत्वाच्चारित्रस्य / सम्यग्ज्ञानं विशिष्टं चेत्समाधिः सा विशिष्टता। तस्य कर्मफलध्वंसशक्तिर्नामांतरं ननु // 53 // मिथ्याभिमाननिर्मुक्तिर्ज्ञानस्येष्टं हि दर्शनम्। ज्ञानत्वं चार्थविज्ञप्तिशर्यात्वं कर्महंतृता // 54 // शक्तित्रयात्मकादेव सम्यग्ज्ञानाददेहता। सिद्धा रत्नत्रयादेव तेषां नामांतरोदितात् // 55 // 'सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः', सम्यग्ज्ञानं मिथ्याभिनिवेशमिथ्याचरणाभावविशिष्टमिति वा न कशिदर्थभेदः, प्रक्रियामात्रस्य भेदान्नामांतरकरणात् / जिस उपक्रम विशेष से कर्मों के फल का उपभोग योगियों को मान्य (इष्ट) है वह उपक्रम विशेष समाधि ही है। “समाधि से उत्थापित धर्म से उत्पन्न ऋद्धि में नाना शरीर निर्माण द्वारा संचित कर्मफल का अनुभव योगियों को इष्ट है अर्थात् योगी (योगवादी ही) कहते हैं कि “समाधि के द्वारा नाना शरीरादि का निर्माण करके कर्मों के फल का अनुभव किया जाता है तो समाधि चारित्रात्मक ही है। इस प्रकार चारित्र से मुक्ति की सिद्धि होने से स्याद्वादियों के मत (सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्र से मुक्ति) की सिद्धि होती है। क्योंकि चारित्र सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान के अनन्तरीक होता है। अर्थात् सम्यक्चारित्र, सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान पूर्वक ही होता है। __ यदि कहो कि सम्यग्ज्ञान विशिष्ट है और उस ज्ञान के कर्मध्वंस करने की शक्ति की विशिष्टता समाधि है, तो यह नामान्तर ही है। अर्थात् समाधि और चारित्र में नामान्तर ही है॥५३॥ . ज्ञान के मिथ्याभिमान की निवृत्ति ही दर्शन है तथा अर्थविज्ञप्ति रूप ज्ञानत्व है। कर्मनाश करने की शक्ति चारित्र है और इन तीन शक्ति युक्त ज्ञान से ही अशरीरी सिद्धत्व की प्राप्ति होती है। इस तीन शक्त्यात्मक ज्ञान वा सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र ये नामान्तर होने से रत्नत्रय से मुक्ति सिद्ध होती है।५४-५५ / / - 'सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र मोक्षमार्ग है' वा मिथ्याभिनिवेश और मिथ्याचारित्र से रहित सम्यग्ज्ञान मोक्षमार्ग है। इन दोनों कथनों में कोई अर्थभेद नहीं है, प्रक्रिया मात्र का भेद होने से नामान्तरकरण ही है।