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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक - 306 तस्यैवोत्कृष्टस्याभ्यन्तरसमुच्छिन्नक्रियाप्रतिपातिध्यानलक्षणस्य कृत्स्नकर्मविप्रमोक्षकारणत्वव्यवस्थितेः। सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रतपांसि मोक्षमार्ग इति सूत्रे क्रियमाणे तु युज्येत पूर्वावधारणं। अनुत्पन्नतादृक्तपोविशेषस्य च सयोगके वलिनः समुत्पन्नरत्नत्रयस्यापि धर्मदेशना न विरुध्यतेऽवस्थानस्य सिद्धेः। ततः सकलचोद्यावतारणनिवृत्तये चतुष्टयं मोक्षमार्गो वक्तव्यः / तदुक्तं / 'दर्शनज्ञानचारित्रतपसामाराधना भणितेति केचित् / तदप्यचोधं; तपसश्चारित्रात्मकत्वेन व्यवस्थानात् सम्यग्दर्शनादित्रयस्यैव मोक्षकारणत्वसिद्धेः। . ननु रत्नत्रयस्यैव मोक्षहेतुत्वसूचने। किं वार्हतः क्षणादूर्ध्व मुक्तिं संपादयेन्न तत् // 41 // प्रागेवेदं चोदितं परिहतं च न पुनः शंकनीयमिति चेत् न, परिहारांतरोपदर्शनार्थत्वात् पुनश्चोधकरणस्य। तथाहि(श्रेष्ठ) नहीं है. क्योंकि ऐसी अवधारणा करने पर तप के मोक्षमार्गत्व के अभाव का प्रसंग आता है। तथा 'तप मोक्षप्राप्ति का असाधारण कारण नहीं है', ऐसा भी नहीं कह सकते- क्योंकि उत्कृष्ट अभ्यन्तर समुच्छिन्नक्रियाप्रतिपाति ध्यान लक्षण वाले तप के ही सम्पूर्ण कर्मों का नाश रूप मोक्ष-कारणत्व व्यवस्थित है। 'सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रतपांसि मोक्षमार्गः' इस प्रकार से सूत्र की रचना करने पर तो पूर्व की अवधारणा (सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र और तप ही मोक्षमार्ग है यह कथन) करना ठीक हो सकता है। तथा समुच्छिन्नक्रियाप्रतिपाति ध्यान जिसके नहीं है परन्तु रत्नत्रय से परिपूर्ण है ऐसे सयोगकेवली के धर्मदेशना भी विरुद्ध नहीं पड़ती- क्योंकि समुच्छिन्नक्रियाप्रतिपाति ध्यान रूप तप का अभाव होने से सयोगकेवली का संसार में अवस्थान सिद्ध ही है। अत: सारी शंकाओं का परिहार करने के लिए सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र तप रूप चतुष्टय ही मोक्षमार्ग मानना चाहिए। ऐसी 'सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रतप' की आराधना कही भी है अर्थात् आराधना ग्रन्थों में सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र और सम्यक् तप स्वरूप चार आराधना मानी भी है? उत्तर- इस प्रकार कहना उचित नहीं है। तप के चारित्रात्मकत्व से व्यवस्थित होने से सम्यग्दर्शन आदि तीन रत्नत्रय के ही मोक्ष के कारणत्व की सिद्धि है- अर्थात् तप का चारित्र में अन्तर्भाव हो जाता है। तप चारित्र का ही भेद है अतः रत्नत्रय ही मोक्ष का मार्ग है। रत्नत्रय की परिपूर्णता के उत्तर समय में मुक्ति की प्राप्ति क्यों नहीं होती? शंका - रत्नत्रय को ही मोक्ष का कारण सूचित करने पर अर्हन्त भगवान को उत्तर समय में ही मुक्ति प्राप्त क्यों नहीं होती है? // 41 // उत्तर - इस शंका का निराकरण पूर्व में कर दिया है इसलिए यह प्रश्न पुनः उठना नहीं चाहिए, किन्तु ऐसा कहना तो ठीक नहीं है क्योंकि पूर्व में निराकरण किया उससे भिन्न दूसरा शंका-परिहार रूप समाधान दिखाने के लिए पुनः शंका की जा रही है। उसी को आचार्य स्पष्ट करते हैं
SR No.004284
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2007
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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