________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्त्तिक - 304 तत्सम्यग्दर्शनादीनि मोक्षमार्गो विशेषतः / सूत्रकारमतारूढो न तु सामान्यत: स्थितः // 37 // कालादेरपि तद्धेतुसामान्यस्याविरोधतः / सर्वकार्यजनौ तस्य व्यापारादन्यथास्थितेः // 38 // साधारणकारणापेक्षया हि सम्यग्दर्शनादित्रयात्मकं मोक्षमार्गमाचक्षाणो न सकलमोक्षकारणसंग्रहपरः स्यात् कालादीनामवचनात् / न च कालादयो मोक्षस्योत्पत्तौ न व्याप्रियन्ते, सर्वकार्यजनने तेषां व्यापारात्, तत्र व्यापारे विरोधाभावात् / यदि पुनः सम्यग्दर्शनादीन्येवेत्यवधारणाभावान्न कालादीनामसंग्रहस्तदा सम्यग्दर्शनं मोक्षमार्ग इति वक्तव्यं, सम्यग्दर्शनमेवेत्यवधारणा भावादेव ज्ञानादीनां कालादीनामिव संग्रहसिद्धेस्तत्तद्वचनाद्विशेषकारणापेक्षयायं त्रयात्मको मोक्षमार्गः सूत्रित इति बुद्ध्यामहे। पूर्वावधारणं तेन कार्यं नाऽन्यावधारणम् / यथैव तानि मोक्षस्य मार्गस्तद्वद्धि संपदः॥३९ / / सम्यग्दर्शनादि को मोक्षमार्ग विशेष है, सामान्य नहीं; ऐसा सूत्रकार का मत है क्योंकि सर्वकार्यों की उत्पत्ति में अविरोध रूप से व्यापार होने से काल आदि के सामान्य हेतु की व्यवस्था है। अर्थात् काल, द्रव्य, क्षेत्र आदि मोक्षमार्ग के सामान्य हेतु व्यवस्थित हैं, यह विशेष है।।३७-३८॥ सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र रूप त्रयात्मक मोक्षमार्ग को साधारण की अपेक्षा कहने वाले काल आदि का कथन न होने से सकल मोक्ष-कारणों का संग्रह करने वाला नहीं है। काल आदि मोक्ष की उत्पत्ति में कारण नहीं होते हैं, ऐसा भी नहीं है क्योंकि काल आदि का सर्व कार्यों की उत्पत्ति में व्यापार होने से मोक्षमार्ग में भी व्यापार होने में विरोध का अभाव है, अर्थात् सर्व कार्यों की उत्पत्ति में सहकारी कारण होने से मोक्षमार्ग की उत्पत्ति में भी सहकारी कारण मानने में कोई विरोध नहीं है। यदि पुनः, सम्यग्दर्शन आदि ही मोक्ष के कारण हैं, ऐसी अवधारणा नहीं होने से कालादि का असंग्रह नहीं है (कालादि का ग्रहण होता ही है) ऐसा कहते हो तो 'सम्यग्दर्शन' ही मोक्ष का मार्ग है ऐसी अवधारणा नहीं होने से 'सम्यग्दर्शन' मोक्षमार्ग है ऐसा भी कह सकते हैं क्योंकि जैसे अवधारणा न होने से कालादि का ग्रहण होता है उसी प्रकार 'सम्यग्दर्शन' ही मोक्ष का कारण है ऐसी अवधारणा न होने से ज्ञानादि का संग्रह होना सिद्ध होता है। अतः “सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र मोक्षमार्ग है" यह विशेष की अपेक्षा होने से त्रयात्मक मोक्षमार्ग है, ऐसा सूत्र में कथित है। ऐसा मैं समझता हूँ। सम्यग्दर्शनादि स्वर्गादि अभ्युदय के भी कारण हैं सम्यग्दर्शनादि ही मोक्ष के मार्ग हैं, ऐसी पूर्व के साथ अवधारणा करनी चाहिए, ये मोक्ष के ही मार्ग हैं, ऐसी अवधारणा नहीं करनी चाहिए- क्योंकि जिस प्रकार ये मोक्ष के मार्ग हैं उसी प्रकार ये अन्य के भी कारण माने गये हैं।।३९ / /