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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक - 286 लौकिको देशभेदश्चेद्युतसिद्धिः परस्परम् / प्राप्ता रूपरसादीनामेकत्रायुतसिद्धता // 19 // विभूनां च समस्तानां समवायस्तथा न किम् / कथंचिदर्थतादात्म्यान्नाविष्वग्भवनं परम् // 20 // लौकिको देशभेदो युतसिद्धिर्न शास्त्रीयो यतः समवायिनां युतसिद्धिः स्यादित्येतस्मिन्नपि पक्षे रूपादीनामेकत्र द्रव्ये विभूनां च समस्तानां लौकिकदेशभेदाभावाद्युतसिद्धेरभावप्रसंगात् समवायप्रसक्तिः। __ अविष्वग्भवनमेवायुतसिद्धिर्विष्वग्भवनं युतसिद्धिरिति चेत्, तत्समवायिनां कथंचित्तादात्म्यमेव सिद्धं ततः परस्याविष्वग्भवनस्याप्रतीतेः। यदि कहो कि जिसमें प्रदेश भेद है, वह लौकिक युतसिद्ध है और परस्पर एकत्र प्राप्त रूपरसादि की अयुतसिद्धता है तो समस्त विभुओं का समवाय कथंचित् अर्थ के तादात्म्य से सिद्ध क्यों नहीं होगा। तथा तादात्म्य सम्बन्ध से भिन्न (दूसरा) 'अविष्वग्भवन' (कभी पृथक् था अब पृथक् नहीं होगा) समवाय सम्बन्ध कैसे होगा // 19-20 // ___ कोई कहता है- देशभेद युतसिद्धि लौकिक है, उस लौकिक युतसिद्धि से शास्त्रीय समवायियों के युतसिद्धि नहीं हो सकती? उत्तर- इस पक्ष में (अर्थात् समवायियों की शास्त्रीय युतसिद्धि रूप पक्ष में) भी देशभेद का अभाव होने से युतसिद्धि का अभाव हो जाने पर विभु सारे रूपादि का एक द्रव्य में समवाय होने का प्रसंग आयेगा। क्योंकि उनमें लौकिक देशभेद नहीं है- अतः सारे रूप रसादि का एक द्रव्य में समवाय सम्बन्ध हो जायेगा। शंका- हम तो अविष्वग्भवन (पृथक् नहीं होने) को अयुतसिद्ध और विष्वाभवन (पृथक्-पृथक् पदार्थों का मेल होकर फिर पृथक् हो जाने) को युतसिद्ध कहते हैं। उत्तर- अविष्वग्भवन समवायी कहने पर तो समवायियों का सम्बन्ध कथंचित् तादात्म्य ही है अर्थात् देशभेद न होने से अभेद और संज्ञा, लक्षण आदि की अपेक्षा भेद रूप कथंचित् तादात्म्य है। इस तादात्म्य सम्बन्ध से पृथक् समवाय सम्बन्ध की प्रतीति नहीं होती है। (अतः संयोग सम्बन्ध और तादात्म्य सम्बन्ध को छोड़कर तीसरा कोई सम्बन्ध नहीं है। दधि कुण्ड आदि का सम्बन्ध संयोग सम्बन्ध है और गुण-गुणी का सम्बन्ध तादात्म्य सम्बन्ध है, इससे ज्ञान के करणत्व कर्ता (आत्मा) से कथंचित् भेद मानने में कोई विरोध नहीं है।)
SR No.004284
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2007
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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