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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक - 267 कुतो व्याप्ते ग्रहः? न तावत्प्रत्यक्षतो, भाविनोऽतीतस्य वा सूर्यादिग्रहणाकारभेदस्यास्मदाद्यप्रत्यक्षत्वात् / नाप्यनुमानादनवस्थानुषंगात् / यदि पुनरागमात्तव्याप्तिग्रहस्तदा युक्त्यनुगृहीतात्तदननुगृहीताद्वा? न तावदाद्यः पक्षस्तत्र युक्तरप्रवृत्तेस्तदसंभवात्। द्वितीयपक्षे स्वत: सिद्धप्रामाण्यात् परतो वा? न तावत्स्वतः स्वयमनभ्यस्तविषयेऽत्यंतपरोक्षे स्वत:प्रामाण्यासिद्धेरन्यथा तदप्रामाण्यस्यापि स्वतः सिद्धिप्रसंगात् / परतः सिद्धप्रामाण्यादागमात्तव्याप्तिग्रह इति चेत् / किं तत्परं प्रवृत्तिसामर्थ्य बाधकाभावो वा? आकार भेद साध्य में अंकमाला का अविनाभाव किस प्रमाण से ग्रहण होता है? प्रत्यक्ष प्रमाण से तो इस व्याप्ति का ग्रहण नहीं हो सकता। क्योंकि भविष्य और भूतकाल में होने वाले ग्रहणों के आकारों का भेद हमारे जैसे चर्म चक्षु वाले मानवों के प्रत्यक्ष ज्ञान का विषय नहीं है। (अतः साध्य और हेतु के प्रत्यक्ष किये बिना दोनों में रहने वाले अविनाभाव सम्बन्ध को हम जान नहीं सकते हैं।) अनुमान प्रमाण से भी अंकमाला की ग्रहणों के आकारभेदों के साथ होने वाली व्याप्ति को ग्रहण नहीं कर सकते। क्योंकि अनुमान का उत्थान व्याप्तिग्रहण पूर्वक होता है। अतः उस अनुमान को ग्रहण करने के लिए दूसरी व्याप्ति की आवश्यकता होगी और उसको जानने के लिये तीसरे अनुमान की आवश्यकता होगी। इस प्रकार अनवस्था दोष आयेगा (अत: व्याप्ति के अभाव में अनुमान ज्ञान से व्याप्ति का ग्रहण करना नहीं हो सकता)। ___ यदि आगमज्ञान से व्याप्ति का ग्रहण करना स्वीकार करते हैं- तो प्रश्न है कि युक्तियों से युक्त हो रहे आगम में व्याप्ति का ग्रहण होता है? या युक्तियों के कृपाभार से रहित भी आगम से सम्बन्ध का ग्रहण कर लेते हैं? इसमें प्रथम पक्ष (युक्तियुक्त आगम से व्याप्ति का ग्रहण होता है) तो ठीक नहीं है। क्योंकि अत्यन्त परोक्ष विषय का प्रतिपादन करने वाले आगम में युक्तियों की प्रवृत्ति होना असंभव है। अर्थात् ज्योतिष शास्त्र में युक्तियाँ प्रवृत्त नहीं हो सकतीं। द्वितीय पक्ष (युक्तियों से अननुगृहीत आगम से व्याप्ति का ग्रहण होता है) में भी वह आगम स्वतःप्रमाण से सिद्ध है कि परत:प्रमाण से सिद्ध है? उस आगम की प्रमाणता स्वत:सिद्ध नहीं है क्योंकि जिस विषय का हमें स्वयं अभ्यास नहीं है, उन अत्यन्त परोक्ष पुण्य, पाप, स्वर्ग, नरक आदि का कथन करने वाले वेद, स्मृति, पुराण आदि ग्रन्थों को स्वत:प्रमाणता सिद्ध नहीं हो सकती। अन्यथा (यदि अत्यन्त परोक्ष पदार्थ का प्रतिपादन करने वाले आगम को स्वतः प्रमाण मानोगे तो) प्रमाणता के समान अप्रमाणता के भी स्वतः सिद्ध होने का प्रसंग आयेगा। ___ यदि परत:सिद्ध प्रमाण वाले आगम से व्याप्ति का ग्रहण होता है, ऐसा कहते हैं तो आगम में प्रमाणता का उत्पादक वह पर-पदार्थ क्या है? प्रवृत्ति का सामर्थ्य आगम में प्रमाणता का उत्पादक है, या बाधक कारणों का अभाव आगम में प्रमाणता का उत्पादक है? यदि कहो कि प्रवृत्ति का सामर्थ्य प्रमाणता का उत्पादक है (अर्थात् जैसे जल को जानकर जल में स्नान-पान आदि प्रवृत्ति के सामर्थ्य से जलज्ञान में प्रमाणता आती है) तो वह इस प्रवृत्ति का सामर्थ्य फल के साथ सम्बन्ध युक्त हो जाना है कि उस ज्ञान में सजातीय ज्ञान का उत्पाद हो जाना है?
SR No.004284
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2007
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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