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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक-१६३ कथं पूर्वोत्तरविवर्तयोरेकत्वस्य संवित्तिरबाधिता या संवादनमिति चेत्। भेदस्य कथमिति समः पर्यनुयोगः। तस्य प्रमाणांतरत्वादतद्विषयेण बाधनासंभवादबाधिता संवित्तिरिति चेत् / तोकत्वस्य प्रत्यभिज्ञानविषयत्वस्याध्यक्षादेरगोचरत्वात्तेन बाधनासंभवादबाधिता संवित्तिः किं न भवेत्? कथं प्रत्यभिज्ञानविषयः प्रत्यक्षेणापरिच्छेद्यः? प्रत्यभिज्ञानेन प्रत्यक्षविषयः कथमिति समान। तथा योग्यताप्रतिनियमादिति चेत्तर्हि वर्तमानार्थविज्ञानं न पूर्वापरगोचरम् / योग्यतानियमात्सिद्धं प्रत्यक्षं व्यावहारिकम् // 156 // यथा तथैव संज्ञानमेकत्वविषयं मतम् / न वर्तमानपर्यायमात्रगोचरमीक्ष्यते // 157 // शंका- (बौद्ध) पूर्व और उत्तर पर्यायों में रहने वाले एकत्व का ज्ञान बाधारहित या संवादन कैसे है? समाधान- प्रत्यक्ष ज्ञान के विषयभूत पदार्थों में तथा अन्वित रूप से रहने वाले पूर्व-उत्तर परिणामों में सर्वथा भेद की प्रतीति बाधा रहित कैसे है? यह बताओ। दोनों में प्रश्न समान है। - बौद्ध कहता है कि वस्तुभूत विशेष स्वरूप भेदों को जानने वाला वह प्रत्यक्ष ज्ञान स्वतंत्र-न्यारा है। भेद के जानने में प्रत्यक्ष की ही प्रवृत्ति है। दूसरे प्रमाण भेद को विषय नहीं करते हैं- अतः प्रत्यक्ष को विषय नहीं करने वाले प्रमाण के द्वारा बाधा की असंभावना होने से प्रत्यक्ष ज्ञान अबाधित है। जैनाचार्य कहते हैं, तब तो प्रत्यभिज्ञान के विषयभूत एकत्व के भी प्रत्यक्षज्ञान के अगोचर होने से बाधा की असंभवता है, अत: एकत्व प्रत्यभिज्ञान अबाधित क्यों नहीं होगा? अर्थात् प्रत्यभिज्ञान भी संवाद युक्त होने से समीचीन है। . शंका- (बौद्ध) प्रत्यभिज्ञान का विषय प्रत्यक्ष ज्ञान के गोचर क्यों नहीं है? उत्तर- (जैन पूछते हैं कि) प्रत्यक्ष ज्ञान का विषय प्रत्यभिज्ञान प्रमाण के गोचर क्यों नहीं है? दोनों में प्रश्न और उत्तर समान हैं। बौद्ध कहता है कि उस प्रकार भेद के जानने में प्रत्यक्ष की ही योग्यता प्रतीति अनुसार नियत हो रही है अतः प्रत्यक्ष के विषय में प्रत्यभिज्ञान नहीं चलता है। ऐसी योग्यता प्रत्यभिज्ञान में नहीं है- जो प्रत्यक्ष ज्ञान . को विषय कर सके? इस पर जैनाचार्य कहते हैं कि. जैसे वर्तमान काल के अर्थ को विशेष रूप से जानने वाला सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष पूर्व-उत्तरवर्ती पर्यायों में रहने वाले एकत्व को विषय नहीं करता है क्योंकि इन्द्रियजन्य सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष ज्ञान की योग्यता वर्तमानकालीन पदार्थों को जानने में ही नियमित है, उसी प्रकार प्रत्यभिज्ञान प्रमाण भी एकत्व को विषय करने में नियमित है। एकत्व को ही विषय करता है, यह प्रमाण प्रसिद्ध है। इसलिये वह केवल वर्तमान पर्याय (प्रत्यक्ष ज्ञान) का विषय करने वाला (जानने वाला) नहीं देखा जाता है। वर्तमान काल मात्र का विषय करता हुआ अनुभव में नहीं आ रहा है।।१५६-१५७॥ - भावार्थ- जिस प्रकार प्रत्यक्ष के विषय में प्रत्यभिज्ञान बाधा नहीं देता है, उसी प्रकार प्रत्यभिज्ञान के विषय में भी प्रत्यक्ष बाधा नहीं देता है- क्योंकि दोनों का विषय पृथक्-पृथक् है, जो जिसका विषय ही नहीं है वह उसका साधक या बाधक भी नहीं हो सकता है।
SR No.004284
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2007
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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