________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक-१५८ .. आत्मनोऽनैकांतानादिपर्यंततायाः साध्यत्ववचनात् / यथैव हि घटादेरनाद्यनंतेतररूपत्वे सति सत्त्वं तथात्मन्यपीष्टमिति क्व विरुद्धत्वं? कथं तर्हि सत्त्वमनेकांत कांतेन व्याप्त येनात्मनोनाद्यनंतेतररूपतया साध्यत्वमिप्यत इति चेत् / सर्वथैकांतरूपेण तस्य व्याप्त्यासिद्धेः। बहिरंतशानेकांततयोपलंभात्, अनेकांतं वस्तु सत्त्वस्य व्यापकमिति निवेदयिष्यते॥ . . बृहस्पतिमतास्थित्या व्यभिचारो घटादिभिः / न युक्तोऽतस्तदुच्छित्तिप्रसिद्धः परमार्थतः // 150 // जायेगा तो बुद्धि (ज्ञान) का संचार नहीं होगा। कूटस्थ नित्य ज्ञान में 'यह' वर्तमानकालीन ज्ञान, 'वह' भूतकालीन ज्ञान है, दोनों का सामञ्जस्य नहीं हो सकता। या तो 'यह' ऐसा ज्ञान रहेगा, या 'वह' ऐसा ज्ञान रहेगा। 'वह' नित्य का ज्ञान कराता है। अत: वस्तु नित्यानित्यात्मक है। शंका- इस प्रकार सम्पूर्ण पदार्थों के अनादि अनन्तता और सादि सान्तता के द्वारा सत्त्व हेतु के व्याप्त होने से यह सत्त्व हेतु विरुद्ध हेत्वाभास है। क्योंकि यह हेतु सादि अनादि, सान्त और अनन्त इन दोनों पक्षों में व्याप्त है। उत्तर- ऐसा कहना उचित नहीं है क्योंकि एकान्त से आत्मा के अनादि अनन्तता और सादि सान्तता साध्य नहीं है- अपितु अनेकान्त (कथंचित्) अनादि अनन्तता साध्य है। जिस प्रकार घटादि में कथंचित् अनादि अनन्तता और कथंचित् सादि सान्तता होने पर ही सत्त्व है (वे सत्त्व रूप पदार्थ हैं।) उसी प्रकार आत्मा में भी अनादि अनन्तता और सादि सान्तता होने पर ही सत्त्व इष्ट है। अतः सत्त्व हेतु में विरुद्धता कैसे आ सकती है। अर्थात् जो उत्पाद-व्यय (सादिसान्त) ध्रौव्य (अनादि अनन्त) युक्त है, वही सत्त्व है। अतः सत्त्व हेतु विरुद्ध नहीं है। . शंका- स्याद्वाद मत में सत्त्व हेतु अनेकान्त रूप एकान्त के साथ व्याप्त कैसे हो सकता है? जिससे आत्मा को अनादि अनन्त और सादि सान्त साध्यत्व इष्ट कर सकते हो? उत्तर- जैनाचार्य कहते हैं कि - सर्वथा एकान्त रूप से अनादि अनन्त या सादि सान्त रूप के साथ सत्त्व हेतु की व्याप्ति सिद्ध नहीं है। परन्तु बहिरंग और अंतरंग पदार्थ अनेकान्त रूप से उपलब्ध होते हैं। इसलिए द्रव्यपर्यायात्मक अनेक धर्मों से युक्त वस्तु ही सत्त्व हेतु की व्यापक है। अर्थात् अनेकान्त भी एकान्त नहीं है। प्रमाण दृष्टि से अनेकान्त है और नय दृष्टि से एकान्त है। इसको आगे निवेदन करेंगे। कथंचित् नित्य को सिद्ध करने वाले सत्त्व हेतु को वृहस्पति मत के अनुयायी चार्वाक की परिस्थिति से घट आदि के द्वारा व्यभिचार देना (अनेकान्त हेत्वाभास कहना) युक्तिसंगत नहीं है। क्योंकि परमार्थ से विचार किया जाय तो अनुमान के द्वारा घटादिक में सर्वथा नित्य और अनित्य स्वरूप का उच्छेद प्रसिद्ध है। अर्थात् घटादिक सर्वथा नित्य वा अनित्य सिद्ध नहीं हैं॥१५०॥