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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक - 108 सुगतत्वहेतुर्यतः सुगतो व्यवतिष्ठते। भवतु वा सुगतस्य विद्यावैतृष्ण्संप्राप्तिस्तथापि न शास्तृत्वं व्यवस्थानाभावात्। तथाहि / 'सुगतो न मार्गस्य शास्ता व्यवस्थानविकलत्वात् खड्गिवत् / व्यवस्थानविकलोऽसावविधातृष्णाविनिर्मुक्तत्वात्तद्वत् / ' जगद्धितैषितासक्तेर्बुद्धो यद्यवतिष्ठते। तथैवात्महितैषित्वबलात् खड्गीह तिष्ठतु / / 78 // "बुद्धो भवेयं जगतो हितायेति" भावनासामर्थ्यादविद्यातृष्णाप्रक्षयेऽपि सुगतस्य व्यवस्थाने खड्गिनोप्यात्मानं शमयिष्यामीति भावनाबलाद्व्यवस्थानमस्तु विशेषाभावात् / सुगत मोक्षमार्ग का उपदेष्टा नहीं अथवा- बौद्ध के कथनानुसार सुगत के विद्या (केवलज्ञान) और तृष्णा के अभाव की प्राप्ति मान भी ली जाये तो भी सुगत के मोक्षमार्ग के शास्तृत्व (उपदेष्टा) की व्यवस्था का तो अभाव ही है। अर्थात्- सुगत मोक्षमार्ग का उपदेष्टा नहीं हो सकता। तथाहि-सुगत मोक्षमार्ग का उपदेष्टा नहीं हैक्योंकि वह संसार में स्थिति के कारणों से रहित है। जैसे बौद्धों के द्वारा स्वीकृत खड्गी (मुक्तावस्था में स्थित) अविद्या और तृष्णा से रहित होने से मोक्षमार्ग के उपदेष्टा नहीं है। संसार में रखने के कारण की विकलता यह अविद्यातृष्णारहितता है। जैसे तृष्णा और अविद्या से रहित होने से मुक्त जीव संसार में ठहर कर उपदेश नहीं देते हैं, वैसे ही सुगत अविद्या और तृष्णा से रहित होने से संसार में रह नहीं सकता और संसार में रहने का अभाव होने से मोक्षमार्ग का उपदेष्टा नहीं हो सकता। सुगत और खड्गी में साम्य-वैषम्य यदि जगत् के हित की अभिलाषा में आसक्त होने से बुद्ध कुछ काल तक संसार में रहता है और मोक्षमार्ग का उपदेश देता है तो उसी प्रकार खड्गी (जिस प्रकार जैन सिद्धान्त में अन्तकृत केवली है, उसी प्रकार बौद्ध मत में तलवार आदि के प्रहार से जिनका मरण होकर मुक्ति होती है उनको खड्गी कहते हैं। उनके आत्महित की अभिलाषा शान्त नहीं होती है।) भी आत्म-हित की इच्छा के बल से संसार में रह सकेगा॥७८॥ 'मैं जगत् का हित करने के लिए बुद्ध हो जाऊँ' इस प्रकार पूर्व में भावित भावना की शक्ति से अविद्या और तृष्णा का क्षय हो जाने पर भी सुगत की स्थिति संसार में उपदेश देने के लिए हो जाती है, ऐसा मानने पर तो उसी प्रकार ‘आत्मा का हित करूं' इस पूर्व भावित भावना के सामर्थ्य से खड्गी का भी कुछ समय तक संसार में अवस्थान होना चाहिए। दोनों भावनाओं में कोई विशेषता नहीं है। यदि कहो कि बुद्ध द्वारा उपकृत होने वाला जगत् अनन्त काल तक स्थिर रहेगा क्योंकि जगत् की सर्वदा स्थिति में सुगत की संतान को हेतु माना है, इस अपेक्षा सुगत भी सर्वदा संसार में बने रहेंगेतब तो खड्गी की संतान (ज्ञानसंतान) भी खड्गी के द्वारा शान्तिलाभ से उपकृत होकर अनन्तकाल तक क्यों नहीं रहेगी यानी वह भी रहेगी जबकि दीपक के बुझने के समान निरन्वय नाश हो जाने रूप मुक्ति खड्गी की मोक्ष मानी गई है।
SR No.004284
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2007
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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