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________________ + 4 + स्थलों तक आर्यिका इन्दुमतीजी के नेतृत्व में आर्यिका सुपार्श्वमतीजी ने धर्मध्वजा फहराई। 'रमता जोगी बहता पानी' सूक्ति को चरितार्थ करते हुए यह संघ पुनः तीर्थराज पर आ विराजा। कर्म-रेख में परिवर्तन ! गुरुमाता आर्यिका इन्दुमतीजी के महाप्रयाण का समय आ गया। उनकी यम सल्लेखना, उनकी वैय्यावृत्ति आर्यिका सुपार्श्वमतीजी द्वारा जिस लगन और श्रद्धा-भक्तिपूर्वक की गई उसकी मिसाल शायद आज के युग में संभव नहीं है। गुरु का वियोग क्षण भर के लिए तो असह्य हुआ परन्तु 'संसार का यही नियम है,' इस सत्य ने उन्हें ढाढ़स बंधाया और आर्यिका सुपार्श्वमतीजी ने आर्यिकाप्रमुख का भार ग्रहण करते हुए धर्मप्रचार अभियान जारी रखा। एक बार पुनः पूर्वांचल की यात्रा। अनेक स्थानों पर वर्षायोग सम्पन्न करते हुए आर्यिका सुपार्श्वमतीजी ने बुंदेलखंड की ओर कदम बढ़ाए। दुर्गम रास्तों को पार करते हुए, आर्यिकाश्री ने मेरे गृहनगर-जबलपुर में प्रवेश किया। मेरी माँ मानों उनकी प्रतीक्षा में ही थी। आर्यिका सुपार्श्वमतीजी के सान्निध्य में माँ ने आर्यिका दीक्षा लेकर आर्यिका निश्चलमती नाम से अलंकृत हो समाधिपूर्वक देहविसर्जन किया। 'भक्त के यहाँ भगवान' की उक्ति चरितार्थ हुई। बुंदेलखंड के तीर्थों की वंदना के बाद आर्यिका सुपार्श्वमतीजी ने अतिशयक्षेत्र श्रीमहावीरजी में संवत् 2055 में वर्षायोग किया जहाँ अनेक धार्मिक आयोजनों के बीच महती धर्मप्रभावना हुई। आचार्य वर्धमानसागरजी का ससंघ सान्निध्य प्राप्त हुआ। वर्षायोग समाप्त होते ही आर्यिकाश्री ने विहार किया और संघ ने अतिशयक्षेत्र श्री चांदखेड़ी जी में प्रवेश किया। विधि की विडंबना ! इसी क्षेत्र में संघस्थ आर्यिका भक्तिमतीजी का स्वास्थ्य डगमगाया और रास्ते में विहार करते हुए उनका समाधिपूर्वक महाप्रयाण हुआ। आर्यिकाश्री सुपार्श्वमती माताजी ने समता भाव रखते हुए राजस्थान की माटी को पवित्र करते हुए आगे गमन किया। शताधिक मंदिरों की नगरी, गुलाबीनगरी, ऐतिहासिक धरोहरों की नगरी जयपुर में पूज्य आर्यिकाश्री का मंगल प्रवेश हुआ। यह प्रवेश भी इतिहास में एक कड़ी बन गया क्योंकि यहीं आर्यिकासंघ को परम पूज्य आचार्य वर्धमानसागर जी के संघ का सान्निध्य मिला। 42 वर्षों का अंतराल, आचार्यश्री. एवं आर्यिकाश्री के दीक्षाकाल का स्वर्णिम काल, ज्ञानपिपासा की उत्कृष्ट अभिलाषा को संवारने मानों प्रतीक्षारत था। _ ज्ञानसुधा प्रवाहित होने लगी। शंकाओं का समाधान, गूढ विषयों के उलझे रहस्यों का सुलझा अर्थ सामने आया। ज्ञानपिपासु मुनियों, आर्यिकाओं को आचार्यश्री एवं आर्यिकाश्री के ज्ञानकोष का अनमोल खजाना प्राप्त हुआ सरस्वती के भंडार की, बड़ी अपूरब बात। ज्यों खरचे त्यों-त्यों बढ़े, बिन खरचे घट जात / / गुरुओं के लिए तो यह जाँची-परखी बात थी। उन्होंने अपना ज्ञान रूपी खजाना रुचिपूर्वक लुटाया और सानिध्य में रहे साधुओं, आर्यिकाओं, श्रावकों ने भी यह खजाना जी-भरकर लूटा। जयपुर नगरी का चातुर्मास ज्ञानवर्षा से परिपूर्ण रहा। ऐतिहासिक नगरी के ऐतिहासिक वर्षायोग में आर्यिकाश्री के संघस्थ बालब्रह्मचारी कैलाशचन्दजी द्वारा ऐलक दीक्षा लेकर मानव-जीवन की सार्थकता प्रकट की गई। आर्यिका सुपार्श्वमतीजी के चरणसान्निध्य में
SR No.004284
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2007
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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