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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक - 94 प्रधानाश्रयि विज्ञानं न पुंसो ज्ञत्वसाधनम् / यदि भिन्नं कथं पुंसस्तत्तथेष्टं जडात्मभिः // 18 // प्रधानाश्रितं ज्ञानं नात्मनो ज्ञत्वसाधनं ततो भिन्नाश्रयत्वात्पुरुषांतरसंसर्गिज्ञानवदिति चेत्? तर्हि न ज्ञानमीश्वरस्य ज्ञत्वसाधनं ततो भिन्नपदार्थत्वादनीश्वरज्ञानवदिति किं नानुमन्यसे। ज्ञानाश्रयत्वतो वेधा नित्यं ज्ञो यदि कथ्यते। तदेव किं कृतं तस्य ततो भेदेऽपि तत्त्वतः / / 69 // स्रष्टा जो नित्यं ज्ञानाश्रयत्वात् / यस्तु न ज्ञः स न नित्यं ज्ञानाश्रयो यथा व्योमादिः, न च तथा स्रष्टा ततो नित्यं ज्ञ इति चेत् / किं कृतं तदा स्रष्टुर्ज्ञानाश्रयत्वं ज्ञानाद्भेदेऽपि वस्तुत इति चिंत्यम्। समवायकृतमितिचेत् / समवायः किमविशिष्टो विशिष्टो वा? प्रथमविकल्पोऽनुपपन्नः। यदि नैयायिक यह कहें कि सांख्यों के मत से आधारभूत प्रधान के आश्रित रहने वाला विज्ञान सर्वथा भिन्न होने से पुरुष-आत्मा को ज्ञातापना सिद्ध नहीं कर सकता है, तब तो स्वभाव से जड़ स्वरूप आत्मा को मानने वाले नैयायिकों के द्वारा स्वीकृत पुरुष (आत्मा) से सर्वथा भिन्न ज्ञान आत्मा को चेतन कैसे कर सकता है?॥६८॥ कपिलमत का खण्डन करने के लिए नैयायिक कहता है प्रकृति के आश्रित रहने वाला ज्ञान आत्मा को ज्ञाता नहीं बना सकता। क्योंकि वह ज्ञान उस आत्मा से सर्वथा भिन्न हो रही प्रकृति के आश्रित है। जो ज्ञान भिन्न पुरुषान्तर के आश्रित होता है, वह दूसरे को ज्ञाता नहीं बना सकता-जैसे ज्ञानचन्द का ज्ञान धर्मचन्द को ज्ञानी नहीं बना सकता। नैयायिक की इस स्थापना के उत्तर में जैनाचार्य कपिल की ओर से कहते हैं कि तब तो ईश्वर से भिन्न ज्ञान ईश्वर को भी जाता नहीं बना सकता। क्योंकि अनीश्वर (ईश्वर से न्यारे अन्य सा जीव) के जान के समान ईश्वर का ज्ञान भी ईश्वर से सर्वथा भिन्न पदार्थ है। ऐसा आप क्यों नहीं मानते हैं। अर्थात् जैसे प्रकृति आश्रित ज्ञान आत्मा को (पुरुष को) ज्ञानी नहीं बना सकता वैसे ईश्वर से भिन्न ज्ञान ईश्वर को ज्ञाता नहीं बना सकता है। ऐसा नैयायिक क्यों नहीं मानते हैं। यदि नैयायिकों के अनुसार सृष्टि की रचना करने वाला ईश्वर अनादिकाल से ज्ञान का आश्रय होने से नित्य ज्ञाता कहा जाता है, तो वास्तव में उस ज्ञान से सर्वथा भिन्न होने पर भी उस ईश्वर के वह नित्यज्ञातापना कैसे सिद्ध होता है? // 69 / / (अनादिकाल से) ज्ञान का आश्रय होने से स्रष्टा (ईश्वर) नित्य ज्ञाता है। क्योंकि जो नित्य ज्ञाता नहीं है वह सर्वदा से ज्ञान का आश्रय नहीं होता- जैसे आकाश। परन्तु आकाश आदि के समान सृष्टिकर्ता ईश्वर नित्यज्ञान से रहित नहीं है। वह ईश्वर नित्य ज्ञाता है। जैनाचार्य कहते हैं कि वास्तव में, ज्ञान से भिन्न होने पर भी सृष्टि का रचयिता ईश्वर ज्ञान का आश्रय कैसे कर दिया गया है, जिससे वह नित्य ज्ञाता है- इसका विचार करना चाहिए।
SR No.004284
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2007
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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