________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक-८७ -- न हि तत्त्वज्ञानमेव संस्कारक्षये कारणमवस्थानविरोधस्य तदवस्थत्वात् / संस्कारस्यायुराख्यस्य परिक्षयनिबंधनम्। धर्ममेव समाधि: स्यादिति केचित्प्रचक्षते // 55 // विज्ञानात्सोपि यद्यन्यः प्रतिज्ञाव्याहतिस्तदा। स चारित्रविशेषो हि मुक्तेर्मार्गः स्थितो भवेत् // 56 // तत्त्वज्ञानादन्यत एव संप्रज्ञातयोगात्संसारक्षये मुक्तिसिद्धिस्तत्त्वज्ञानान्मुक्तिरिति प्रतिज्ञा हीयते। समाधिविशेषश चारित्रविशेषः स्याद्वादिनां मुक्तिमार्गो व्यवस्थितः स्यात् / . तत्त्वज्ञान ही आयुनामक संस्कार के क्षय का कारण है, ऐसा आप (सांख्य) नहीं कह सकते। क्योंकि तत्त्वज्ञान के होते ही अतिशीघ्र मुक्त हो जाने से संसार में अवस्थान का विरोध तो वैसे का वैसा ही बना रहेगा। अर्थात् उपदेश के लिए तत्त्वज्ञानी संसार में ठहर नहीं सकता। ____ कोई (सांख्य) कहता है कि “यहाँ चित्त का एक अर्थ में कुछ देर तक स्थिर रहने रूप समाधि नामक धर्म ही आयु संज्ञक संस्कार के पूर्ण क्षय का कारण है।" जैनाचार्य कहते हैं कि वह समाधि यदि प्रकृति पुरुष के भेदज्ञान स्वरूप तत्त्वज्ञान से भिन्न है, तब तो 'तत्त्वज्ञान से मोक्ष प्राप्त होता है' इस प्रतिज्ञा का व्याघात होता है। क्योंकि एक तो तत्त्वों का प्रत्यक्ष ज्ञान और दूसरा समाधि रूप विशेष चारित्र इन दो को मोक्षमार्ग का कारणपना प्राप्त होता है। एक तत्त्वज्ञान ही मोक्षमार्ग में स्थिति नहीं कराता है।।५५-५६॥ ... सांख्य मत में दो प्रकार के योग माने हैं। एक संप्रज्ञात योग, दूसरा असंप्रज्ञात योग। तत्त्वज्ञान से भिन्न स्वरूप से संप्रज्ञात समाधि योग से संस्कार के (आयु कर्म के) क्षय हो जाने पर मुक्ति सिद्ध होती है। ऐसा मानने पर 'तत्त्वज्ञान से मुक्ति होती है, इस प्रतिज्ञा की हानि होगी। . स्याद्वादियों के समाधिविशेष (व्युपरतक्रियानिवृत्ति नामक शुक्ल ध्यान) पूर्ण चारित्र है। वह व्युपरतक्रियानिवृत्ति ध्यान चौदहवें गुणस्थान में होता है। उसी चारित्र की पूर्णता से मुक्तिमार्ग व्यवस्थित है। अर्थात् सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यग्चारित्र की पूर्णता से मोक्षमार्ग निश्चित है।