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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक-७३ तदेवं सदुपलंभक प्रमाणपंचकवदभावप्रमाणमपि न सर्वज्ञज्ञापकोपलंभस्य सर्वप्रमातृसंबंधितो संभवसाधनं तत्र तस्योत्थानसामग्र्यभावात् / ननु च विवादापन्नेष्वशेषप्रमातृषु तदुपगमादेव सिद्धः सर्वज्ञज्ञापकोपलंभो नास्तीति साध्यते ततो नाभावप्रमाणस्य तत्रोत्थानसामग्र्यभाव इत्यारेकायां परोपगमस्य प्रमाणत्वाप्रमाणत्वयोर्दूषणमाह; परोपगमतः सिद्धस्स चेन्नास्तीति गम्यते। व्याघातस्तत्प्रमाणत्वेऽन्योऽन्यं सिद्धो न सोऽन्यथा // 27 // अर्थात् मीमांसकों को ज्ञापक प्रमाण ज्ञात ही नहीं है तो अभाव जानते समय उनका स्मरण भी नहीं हो सकता है। इस प्रकार जैसे पदार्थों की सत्ता जानने वाले प्रत्यक्ष, अनुमान, आगम, उपमान और अर्थापत्ति इन पाँच प्रमाणों के द्वारा ज्ञापकानुपलभ सिद्ध नहीं है, उसी प्रकार अभाव प्रमाण भी सर्व प्रमाताओं से सम्बन्धित सर्वज्ञ ज्ञापकोपलम्भ के अभाव का असंभव साधन है। अर्थात् अभाव प्रमाण भी सर्वज्ञ ज्ञापकोपलंभ के अभाव को सिद्ध नहीं कर सकता। क्योंकि अभाव प्रमाण के उत्पन्न होने में आधारभूत प्रत्यक्ष और प्रतियोगी का स्मरण आवश्यक है- उसकी सामग्री अभाव में नहीं है। अर्थात् अभाव प्रमाण में सम्पूर्ण मनुष्यों का ज्ञान और सर्वज्ञ के ज्ञापक प्रमाणों का स्मरण है नहीं, बिना कारण के कार्य कैसे उत्पन्न हो सकता है ? .. मीमांसक दर्शन - विवादापन सर्व प्रमाता (सर्वज्ञ भगवान्) में सर्वज्ञ-ज्ञापकोपलंभ नहीं है, यह उस अभाव प्रमाण से ही जाना जाता है, ऐसा सिद्ध है। इसीलिए वहाँ अभाव प्रमाण की उत्पत्ति कराने वाली सामग्री का अभाव नहीं है। इस प्रकार मीमांसक की शंका वा कथन होने पर अन्य सर्वज्ञवादियों का मन्तव्य प्रमाण है या अप्रमाण है? ऐसा पक्ष उठाकर जैनाचार्य दूषण देते हैं _____ पर (सर्वज्ञवादी) के स्वीकार करने से सर्वज्ञज्ञापकप्रमाण सिद्ध हैं। तथा ज्ञापकोपलंभ का नास्तिपना अभाव प्रमाण से जान लेते हैं, ऐसा कहने पर यदि सर्वज्ञवादियों के ज्ञापकोपलंभ का स्वीकार करना यदि आपको प्रमाण है तब तो मीमांसक के कथन में परस्पर में व्याघात दोष है। अर्थात् सर्वज्ञवादी के मत को प्रमाण मानने पर तो ज्ञापकोपलंभ का नास्तिपना सिद्ध नहीं कर सकते और यदि ज्ञापकोपलंभ का नास्तिपना सिद्ध करते हो तो सर्वज्ञवादी के अभ्युपगम (कथन) को प्रमाण नहीं मान सकते, दोनों के मानने में व्याघात दोष आता है और स्ववचन बाधित भी होता है। यदि सर्वज्ञवादियों के कथन को प्रमाण नहीं मानते हो- तो सम्पूर्ण आत्माओं का ज्ञान और ज्ञापकोपलंभन के स्मरण रूप सामग्री का अभाव होने से अभाव प्रमाण का उत्थान नहीं हो सकता। तथा अभाव प्रमाण से ज्ञापकानुपलंभन हेतु जब जान नहीं सकते तो सर्वज्ञ के अभाव की सिद्धि अनुमान से नहीं कर सकते॥२७॥
SR No.004284
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2007
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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