________________ किया, पर मुंज को मन्त्री की बातें अच्छी नहीं लगीं। फलत: मन्त्री राजाज्ञा स्वीकार कर / चला गया। मन्त्री ने एकान्त में बैठकर ऊहापोह किया। और अन्त में वह इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि कुमारों को इस समाचार से अवगत करा देना चाहिए, अन्यथा बड़ा भारी अनर्थ हो जाएगा। उसने शुभचन्द्र और भर्तृहरि को एकान्त में बुलाया और राजा के निन्द्य विचार कह सुनाए / साथ ही यह भी कहा कि आप लोग उज्जयिनी छोड़कर चले जाइए अन्यथा प्राणरक्षा नहीं हो सकेगी। राजकुमार अपने पिता सिंहल के पास गए और राजा मुंज की गुप्त मन्त्रणा प्रकट कर दी। सिंहल को मुंज की नीचता पर बड़ा क्रोध आया और उसने पुत्रों से कहा मुंज द्वारा षड्यन्त्र पूरा करने के पहले ही तुम उसे यमराज के यहाँ पहुँचा दो। कुमारों ने बहुत विचार किया और वे संसार से विरक्त हो वन की ओर चले गए। महामति शुभचन्द्र ने किसी वन में जाकर जैन मुनिराज के समक्ष दैगम्बरी दीक्षा . धारण कर ली और तेरह प्रकार के चारित्र का पालन करते हुए घोर तपश्चरण करने लगे। पर भर्तृहरि एक कौल तपस्वी के निकट जाकर उसकी सेवा में संलग्न हो गया। उसने जटाएँ बढालीं. तन में भस्म लगा ली.कमण्डल. चिमटा लेकर कन्दमल भक्षण ढारा उढर पोषण करने लगा। बारह वर्ष तक भर्तृहरि ने अनेक विद्याओं की साधना की। उसने योगी दारा शतविद्या और रसतुम्बी प्राप्त की। इस रस के संसर्ग से ताँबा सुवर्ण हो जाता था। भर्तृहरि ने स्वतन्त्र स्थान में रस तुम्बी के प्रभाव से अपना महत्त्व प्रकट किया। एक दिन भर्तृहरि को चिन्ता हुई कि उसका भाई शुभचन्द्र किस स्थिति में है। अत: उसने अपने एक शिष्य को उसका समाचार जानने के लिए भेजा। शिष्य जंगलों में घूमता हुआ उस स्थान पर आया, जहाँ शुभचन्द्र तपस्या कर रहे थे / देखा कि उनके शरीर पर अंगुल भर भी वस्त्र नहीं है और न पिच्छी-कमण्डलु के अतिरिक्त अन्य कुछ भी परिग्रह ही है। शिष्य दो दिन निवास कर वहाँ से लौट आया और भर्तृहरि को समस्त समाचार आकर सुना दिया। भर्तृहरि ने अपनी तुम्बी का आधा रस दूसरी तुम्बी में निकालकर शिष्य को दिया और कहा कि इसे ले जाकर शुभचन्द्र को दे आओ, जिससे उसकी दरिद्रता दूर हो जाए और वह सुखपूर्वक अपना जीवन-यापन करे। जब शिष्य रसतुम्बी लेकर मुनिराज शुभचन्द्र के समक्ष पहुँचा, तो उन्होंने उसे पत्थर की शिला पर डलवा दिया। शिष्य ने वापस लौटकर भर्तृहरि को रसतुम्बी की घटना सुनाई, तो वे स्वयं भाई की ममतावश शेष रसतुम्बी को लेकर शुभचन्द्र के निकट आए। शुभचन्द्र ने शेष रस को भी पाषाण शिला पर डलवा दिया, जिससे भर्तृहरि को बहुत दुःख हुआ। शुभचन्द्र ने भर्तृहरि को समझाते हए कहा - आई यदि सोना बनाना ही अभीष्ट था. तो क्यों घर छोडा. घर में क्या सोना-चाँदी, मणि-माणिक्य की कमी थी। इन वस्तुओं की प्राप्ति तो गृहस्थी में सुलभ थी। अत: सांसारिक वस्तुओं की प्राप्ति के लिए इतना प्रयास करना व्यर्थ है। 48