________________ वह मालिनी छन्द है / ' ज्ञानार्णव में निम्न छन्द मालिनी हैं - 2/47, 118, 139, 177, 190, 6/58, 7/22, 8/34, 10/20, 11/48, 12/55, 13/24, 14/37, 15/40-42, 46, 16/39, 17/21, 18/20,84, 142, 146, 19/10, 20/34, 23/ 23, 24/8, 11, 30, 42, 29/103, 31/17, 32/29, 33/179, 35/10, 84, 37/ 31, 38/21, 39/74,811 . सग्धरा - जिसके प्रत्येक पाद में मगण,रगण, भगण, नगण और तीन यगण हों तो, उसे स्रग्धरा छन्द माना जाता है। इसमें सात-सात पर यति होती है। प्रस्तुत ग्रन्थ . के निम्न छन्द सग्धरा हैं - 2/62, 65, 5/22, 27, 7/23, 8/57, 14/38, 39, 45, 18/149, 20/33, 22/26, 29, 23/32, 33, 24/7, 26/16, 34/ 32, 36/46, 39/791 वंशस्थ -जिसके प्रत्येक पाद में जगण और तगण पाए जाते हैं और अन्त में जगण और रगण होता है वह वंशस्थ छन्द है / यथा - 1/14, 4/11, 12, 13, 9/11, 41, 18/67, 68, 18/109, 118, 24/20, 38/11 शिखरिणी - जिसके प्रत्येक पाद में यगण, मगण, नगण, सगण और भगण तथा एक लघु तथा एक गुरु होता है वह शिखरिणी छन्द है। ज्ञानार्णव के निम्न छन्द शिखरिणी हैं - 1/49, 2/127, 148, 3/35-41,5/23, 18/83, 28/37 / . शार्दूलविक्रीड़ित - जिसके प्रत्येक पाद में मगण, सगण, जगण, सगण, दो तगण एवं एक गुरु होता है वहाँ शार्दूलविक्रीडित छन्द होता है। यथा - 2/1, 63, 64,6 6,83, 105, 169,193, 4/4, 59, 60,5/20, 21, 24-26, 28-29, 42, 12/54, 59, 15/43-45, 16/40, 41, 18/36, 37, 82, 84, 147, 148, 22/24, 28, 33, 23/27, 30, 41, 24/6, 23, 27, 28/17, 30/19-21, 32/3, 5, 30, 35/116, 37/10, 38/15 / मन्दाक्रान्ता - जिसके प्रत्येक चरण में मगण, भगण, नगण और दो तगण तथा अन्त में दो गुरु हों तो वह मन्दाक्रान्ता छन्द है। ज्ञानार्णव के निम्न पद्य इसके अन्तर्गत हैं - 2/93,5/28, 22/25, 27, 27/3 / आर्या - आर्या छन्द के पूर्वार्ध में गुरु सहित सात गण होते हैं। विषम स्थान में तृतीय, पञ्चम प्रभृति स्थान में जगण नहीं होता है। छठे स्थान में जगण अथवा नगण और एक लघु होना विकल्प से जानना चाहिए। यथा - 2/117, 192,8/55, 56, 10/19, 1. वही, 3/104 2.वृत्तरत्नाकर, 3/46. 3. वही, 3/98. 4. वही, 3/101. 5. वही, 3/97. 6. वृत्तरत्नाकर, 2/1. 34