________________ को परमार्थ के लिए संकल्पवान बनाता है। सर्वज्ञ पुरुषों ने प्रकट किया है कि आत्मा के मौलिक निर्मल स्वरूपों के आलेख पहले तो लेश्या वर्णों में, तदनन्तर अलेश्य वर्गों में प्रकट होते हैं, जो आनन्दमग्न कर देते हैं। अर्हत्पुरुषों के संकल्प साधकों को आज भी वर्ण और अवर्ण रूपों में बिम्बित हुए अनुभव में आते हैं और इनकी अनुभूतियाँ ही जीवन की सबसे बड़ी सम्पदा के रूप में होती है। योगचर्या से ही मानव मानसिक-शारीरिक व्याधियों, चिन्ताओं तथा तनावों से मुक्त होकर चेतना के निर्मलतर स्वभाव में आरोहण कर लेता है। इसकी सन्तचर्या में उन प्रशान्त रागद्वेष-मोह-कषाय विवर्जित प्रकंपनों का आकर्षण होता है जो वीतराग निर्ग्रन्थ सर्वज्ञ पुरुषों तथा तीर्थंकरों की अध्यात्म साधना के नि:श्वास रूप अन्तरिक्षों में अद्यावधि विद्यमान है। व्यक्ति और समाज दोनों को ही योगमार्ग कल्याणकारी है। यह व्यक्ति और समाज की टकराहट को दूर करके दोनों में समता के भाव देता है। इस योग शासन के लक्ष्य, स्वरूप, उपलब्धि, उपलब्धियों की विधियों तथा अनुभव की विलक्षणताओं से सब ही उल्लसित हो सकते हैं - यदि इसकी शिक्षाओं का अनुपालन करें। आधुनिक विज्ञान प्रसार से उन्मुक्त हुए बौद्धिक स्वतन्त्र वातावरण में तथा युग चेतना की मांग और प्यास के सन्दर्भो में यह आवश्यक ही है कि इस ज्ञान की शिक्षाओं को आगमीय व शास्त्रीय बस्तों के बंधन से बाहर लाकर पठनीय साहित्य के रूप में, प्रायोगिक अभ्यासों के रूप में, एक नई शैली में, शरीर विज्ञान, प्राणी विज्ञान, मनोविज्ञान आदि-आदि विज्ञानों के सन्दर्भो सहित परिभाषित तथा व्याख्यात करके प्रकाशित करें, ताकि इस विद्या का जीवन्त अलौकिक स्वरूप सर्व समाज के समक्ष प्रकट हो। उन आदर्श 'गुरूणां गुरु' अर्हत् तीर्थंकर पुरुषों के उच्च लक्ष्य और प्रकाशमय संकल्पों तथा बिम्बों को रूपायित करने की स्थितियाँ भी इसी पर निर्भर हैं। - उपर्युक्त पुरातन जैन योगपरक चिन्तनाओं तथा साधना पद्धतियों से अनुप्राणित और तत्त्व परिपोषक अन्यान्य यौगिक परम्पराओं से अनुभावित आचार्य शुभचन्द्र का चिन्तन ज्ञानार्णव के रूप में परिस्फुटित हुआ। वह उनकी जैनयोग के क्षेत्र में अनुपम देन है। - आचार्य शुभचन्द्र की दर्शन और योग के क्षेत्र में जो देन है इसे एक असाधारण देन कहा जा सकता है। उन्होंने सरस, कोमलकान्त पदावलिपूर्ण काव्य शैली को दर्शन और योग जैसे विषय में अत्यन्त सफलता के साथ प्रयुक्त किया है। इसकी उपमा हम उस औषधि से दे सकते हैं जो कटु होती है किन्तु बहुत लाभकारी है। जिस पर सर्करा आदि का आवरण है। वैसी औषधि को लेने से रोगी व्यक्ति कठिनाई का अनुभव नहीं करता। वह मधुरता के साथ उदरगत हो जाती है और अद्भुत प्रभाव दिखा पाती है। इस शैली के बीज 221