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________________ मनुष्य के चिरन्तन संस्कार उसे विषय और वासनाओं की ओर ही ले जाते हैं। और इन संस्कारों की जनिका एवं उदबोधिका पाँचों इन्द्रियाँ तो हैं ही, मन तो उन्हें ऐसी प्रेरणा देता है कि उन्हें न जाने योग्य स्थान में भी जाना पड़ता है। फलत: मनुष्य सदा इन्द्रियों और मन का अपने को गुलाम बनाकर तदनुसार उचित-अनुचित सब प्रकार की प्रवृत्ति करता है। परिणाम यह होता है कि वह निरन्तर रागद्वेष की भट्टी में जलता और कष्ट उठाता है। यह सच है कि इन्द्रियों और मन पर नियंत्रण करना सरल नहीं है, अति दुष्कर है / परन्तु यह भी सच है कि वह असम्भव नहीं है। सामान्य मनुष्य और असामान्य मनुष्य में यही अन्तर है कि जो कार्य सामान्य मनुष्य के लिए अतिदुष्कर होता है वह असामान्य मनुष्य के लिए सम्भव होता है। और वह उसे कर भी डालता है। अत: इन्द्रियों और मन पर नियंत्रण करने में आरम्भ में भले ही कठिनाई दिखे, पर संकल्प और दृढ़ता के साथ निरन्तर प्रयत्न करने पर उस कठिनाई पर विजय पाई जा सकती है। इन्द्रियों और मन पर काबू पाने के लिए अनेक उपाय बताये गये हैं। उनमें प्रधान दो उपाय हैं - 1. परमात्मभक्ति और 2. शास्त्रज्ञान / परमात्मभक्ति के लिए पंचपरमेष्ठी का जप, स्मरण और गुणकीर्तन आवश्यक है। उसे ही अपना शरण माना जाय। इससे आत्मा में निर्मलता आयेगी। मन और वाणी में निर्मलता आयेगी। और उनके निर्मल होने पर वह ध्यान की ओर सहजतया झुकेगा तथा ध्यान दारा उपर्युक्त दिविध मोक्षमार्ग को प्राप्त करेगा। परमात्मभक्ति में उन सब मन्त्रों का जाप किया जाता है, जिनमें केवल अर्हत्, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय या साधु का भी स्मरण होता है या संयोग के साथ दो, तीन या इससे भी अधिक पदों का जाप किया जाता है।' __ आचार्य विद्यानन्दि ने लिखा है कि परमेष्ठी की भक्ति, स्मरण, कीर्तन और ध्यान से निश्चय ही श्रेयोमार्ग की संसिद्धि होती है। इसी से उनका स्तवन करना बड़े-बड़े मुनिश्रेष्ठों ने बतलाया है। - इन्द्रियों और मन को वश में करने का दूसरा उपाय श्रुतज्ञान है। यह श्रुतज्ञान सम्यक् शास्त्रों के अनुशीलन, मनन और सतत् अभ्यास से प्राप्त होता है। वास्तव में जब मन का व्यापार शास्त्र-स्वाध्याय में लगा होगा - उसके शब्द और अर्थ के चिन्तन में संलग्न होगा तो वह अन्यत्र जायेगा ही कैसे ? और जब वह नहीं जायेगा तो इन्द्रियाँ उस अग्नि की तरह ठंडी (राख) हो जायेगी, जो ईंधन के अभाव में राख हो जाती हैं। वस्तुत: इन्द्रियों को मन के व्यापार से ही खुराक मिलती है। इसलिए मन को ही बन्ध और मोक्ष का कारण कहा गया है। शास्त्र-स्वाध्याय मन को नियंत्रित करने के लिए एक अमोक्ष 1. द्रव्यसंग्रह, गाथा 49. 2. आप्तपरीक्षा, 2. 201
SR No.004283
Book TitleBhartiya Yog Parampara aur Gnanarnav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendra Jain
PublisherDigambar Jain Trishala Mahila Mandal
Publication Year2004
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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