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________________ शील ही अर्थात् ब्रह्मचर्य और विज्ञान ही इनके वश करने का एकमात्र उपाय है।" योगीजन इन्द्रिय रूप भयानक सर्पराज के तेजपूर्ण गर्व को शान्त करने के लिए वीर जिनेन्द्र के द्वारा उपदिष्ट सर्वश्रेष्ठ वर्ण (ॐ) का स्मरण किया करते हैं। इन्द्रिय निग्रह करने का उपाय मन की एकाग्रता भी है।' चारित्तपाहुड में कहा गया है कि 'मनोज्ञ और अमनोज्ञ जीव-अजीव पदार्थों में राग-द्वेष न करने से स्पर्शन आदि इन्द्रियों का निरोध हो जाता है।' तत्त्वानुशासन में भी ज्ञान और वैराग्य को इन्द्रियों को जीतने का उपाय निरूपित किया गया है। जीवों की इन्द्रियाँ जैसे-जैसे वश होती हैं, वैसे-वैसे उनके हृदय में विज्ञान रूपी सूर्य उच्चता से प्रकाशमान होता है। जिस प्रकार जीवों का चित्त विषयसेवन में निराकुल रूप तल्लीन होता है, उसी प्रकार यदि आत्मतत्त्व में लीन हो जाय तो ऐसी कौन-सी बाधा है, जिससे मोक्ष प्राप्त न हो ? - इन्द्रियजनित सुख का स्वरूप और उनका फल - आचार्य शुभचन्द्र की दृष्टि से इन्द्रिय सुख विनाशीक एवं उनका फल दुखदायी ही है। वे कहते हैं - 'इन्द्रियजनित सुख को अतृप्ति को उत्पन्न करने वाला कहा गया है, क्योंकि जैसे-जैसे वह सेवन किया जाता है वैसे-वैसे भोगलालसा बढ़ती जाती है तथा यह इन्द्रियजनित सुख मोह रूपी दावानल की वृद्धि के लिए ईन्धन के समान है। यह आगामी काल में दुःख की सन्तति का बीज है। ... इन्द्रियविषयों के स्वरूप के विषय में आचार्य पूज्यपाद ने कितनी सटीक टिप्पणी की है - 'ये इंन्द्रियविषय आरम्भ में सन्ताप के कारण और प्राप्त होने पर अतृप्ति के करने वाले तथा अन्त में जो बड़ी मुश्किलों से भी छोड़े नहीं जा सकते, ऐसे भोगोपभोगों को कौन विद्वान् - समझदार आसक्ति के साथ सेवन करेगा।' इन्द्रियविषयों का फल दिखाते हुए आचार्य शुभचन्द्र लिखते हैं - 'इन्द्रियों के विषय से उत्पन्न हुआ सुख नरक का तो सोपान है और उस नरक के मार्ग में जाने के लिए पाथेय (नाश्ता) भी यही है। तथा मोक्ष नगर के दार बन्द करने वाला दृढ़ कपाट (किवाड़ों 1. ज्ञानार्णव, 20/6. 2. वही, 20/7.. 3. योगसार, 4/34. 4. चारित्तपाहुड, गाथा 29. 5. तत्त्वानुशासन, 77. 6. ज्ञानार्णव, 20/11. 7. वही, 20/13. 8. इष्टोपदेश, 17. 187
SR No.004283
Book TitleBhartiya Yog Parampara aur Gnanarnav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendra Jain
PublisherDigambar Jain Trishala Mahila Mandal
Publication Year2004
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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